जब इंदिरा गांधी की वजह से CJI नहीं बन पाए थे Sanjiv Khanna के चाचा, जानें पूरा किस्सा
Chief Justice Of India: सोमवार 11 नवंबर को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में जस्टिस संजीव खन्ना ने शपथ ली. एक समय सीजेआई बनने का मौका उनके चाचा, जस्टिस एचआर खन्ना को भी मिल सकता था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के फैसले के चलते उन्हें यह पद नहीं मिल सका.
Chief Justice Of India: जस्टिस संजीव खन्ना ने सोमवार 11 नवंबर को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ली. दिलचस्प बात यह है कि सीजेआई बनने का मौका एक समय उनके चाचा, जस्टिस एचआर खन्ना को भी मिल सकता था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के फैसले के चलते उन्हें यह पद नहीं मिला. यह घटना न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच के उस संघर्ष का प्रतीक बन गई, जब सरकार ने परंपरा के खिलाफ जाते हुए वरिष्ठता को नजरअंदाज किया.
इससे पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं जब सबसे वरिष्ठ जज को सीजेआई बनाने के बजाय सरकार ने दूसरे जज का चयन किया. आइए वरिष्ठता की इस परंपरा को तोड़ने के पूरे इतिहास और जस्टिस संजीव खन्ना के परिवार का न्यायपालिका में योगदान को जानते हैं.
सीजेआई की नियुक्ति प्रक्रिया
भारत में सीजेआई की नियुक्ति के लिए संविधान में कोई विशेष प्रक्रिया नहीं है. अनुच्छेद 124(1) में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का उल्लेख है, लेकिन नियुक्ति का तरीका तय नहीं है. परंपरा के अनुसार, रिटायर होने वाले सीजेआई के बाद वरिष्ठतम जज को यह पद दिया जाता है, लेकिन कई बार सरकार ने इससे अलग निर्णय लिया है.
वरिष्ठता के बजाय जूनियर जज बने CJI
1973 में सीजेआई सर्व मित्र सीकरी के रिटायर होने पर सरकार ने जस्टिस अजीत नाथ रे (एएन रे) को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया, जबकि वह वरिष्ठता सूची में चौथे स्थान पर थे. जस्टिस जेएम शेलट, जस्टिस केएल हेगड़े और जस्टिस एएन ग्रोवर उनसे वरिष्ठ थे, लेकिन उन्हें अनदेखा किया गया. इसकी वजह केशवानंद भारती केस में दिया गया उनका फैसला था, जिसमें उन्होंने संसद को संविधान के मूलभूत ढांचे में संशोधन करने से रोका था. यह निर्णय सरकार के लिए असहज था, और इसे देखते हुए वरिष्ठ जजों की जगह जस्टिस एएन रे को चुना गया.
जस्टिस एचआर खन्ना को नहीं बनाया गया CJI
1977 में जब जस्टिस एचआर खन्ना की सीजेआई बनने की बारी आई, तब भी सरकार ने परंपरा का पालन नहीं किया. जस्टिस खन्ना ने जबलपुर के एडीएम मामले में सरकार के आपातकाल के फैसले का विरोध करते हुए कहा था कि आपातकाल के दौरान भी किसी की हिरासत को चुनौती देना संभव होना चाहिए. यह फैसला इंदिरा गांधी सरकार को असहज कर गया था, जिसके चलते जस्टिस खन्ना की जगह जस्टिस एमएच बेग को सीजेआई बना दिया गया.
1964 में भी वरिष्ठता को किया गया था दरकिनार
इससे पहले 1964 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में भी वरिष्ठता को दरकिनार करते हुए जस्टिस गजेंद्र गडकर को सीजेआई नियुक्त किया गया था. उस समय जस्टिस इमाम अधिक वरिष्ठ थे, लेकिन गंभीर बीमारी के चलते उनकी मानसिक स्थिति प्रभावित हो रही थी, इसलिए जस्टिस गडकर को चुना गया.
जस्टिस संजीव खन्ना का सफर
जस्टिस संजीव खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को हुआ. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की और 1983 में वकील के रूप में पंजीकरण कराया. तीस हजारी कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने के बाद उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट में जज नियुक्त किया गया. सुप्रीम कोर्ट में उनकी पदोन्नति 2019 में हुई, लेकिन उस समय भी विवाद हुआ क्योंकि उनकी वरिष्ठता क्रम में 33वीं रैंकिंग थी और उनके ऊपर के 32 जजों को अनदेखा किया गया था.