OMG : इस देश में धूप नहीं निकली तो गांव वालों ने बना डाला आर्टिफिशियल सूरज, बड़ी रोचक है ये कहानी
इटली में एक गांव विगनेला है, जो एक तरफ घाटी और दूसरी और पहाड़ों से घिरा है. इस कस्बे में ठंड के महीनों में सूरज की रोशनी नहीं पहुंच पाती. पूरे गांव में महीनों तक कड़ाके की ठंड और अंधेरा रहता है.
दिल्ली-एनसीआर समते पूरे उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड और धुंध है, कई दिनों से सूरज नहीं निकला है. ये हाल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के और देशों में भी है. इटली में एक गांव विगनेला है, जो एक तरफ घाटी और दूसरी और पहाड़ों से घिरा है. इस कस्बे में ठंड के महीनों में सूरज की रोशनी नहीं पहुंच पाती. पूरे गांव में महीनों तक कड़ाके की ठंड और अंधेरा रहता है. इस गांव के लोगों ने जिस तरह से मिलकर इसका हल निकाला है वह काबिल-ए-तारीफ है. दुनिया भर में इसकी चर्चा हो रही है. सूरज की धूप गांव के लोगों तक नहीं पहुंची तो गांववालों ने इसका समाधान खोज निकाला.
गांववालों ने अपना सूरज बना डाला
द एटलांटिक की खबर के अनुसार गांववालों ने अपना पर्सनल सूरज बना डाला. इटली के एक छोटे से गांव विगनेला ने ऐसा करके दुनिया के सामने उदाहरण पेश कर दिया. इसके पहले चीन के द्वारा आर्टिफिशियल सूरज बनाने की चर्चा होती थी, जिसमें 1 लाख करोड़ रुपए का खर्चा आया था. अब ऐसा काम इटली ने भी करके दिखा दिया है. इसमें खास बात यह है कि विगनेला ने इसे चीन के मुकाबले 1 प्रतिशत से भी कम लागत में तैयार किया है.
किसने की बदलाव की पहल?
विगनेला में बसावट की शुरुआत 13वीं शताब्दी में हुई थी. इटली के इस गांव के लोग 11 नवंबर को साल का आखिरी सूर्यास्त देखते हैं. इसके बाद 3 महीने बाद 2 फरवरी को यहां सूरज के दर्शन होते हैं. यहां इस दिन जश्न मनाया जाता है. लोग पारंपरिक कपड़े पहनकर सूरज की वापसी का स्वागत करते हैं. यहां के 800 सालों के इतिहास में लोगों ने इन हालातों से समझौता कर लिया था. लेकिन 1999 में चीजों के बदलने की शुरुआत हुई.
चर्च की दीवार पर धूपघड़ी
साल 1999 में, विगनेला के स्थानीय आर्किटेक्ट जियाकोमो बोन्ज़ानी ने चर्च की दीवार पर एक धूपघड़ी लगाने का प्रस्ताव रखा. लेकिन तत्कालीन मेयर फ्रेंको मिडाली ने इस सुझाव को खारिज कर दिया. धूपघड़ी की जगह मेयर ने उस वास्तुकार को कुछ ऐसा बनाने के लिए जिससे गांव में पूरे साल धूप पड़ती रहे.
ऐसे सुलझ गई सालों पुरानी परेशानी
किसी जगह धूप लाना नामुमकिन काम लगता है लेकिन आसानी से सोचा जाए और विज्ञान का सहारा लिया जाए तो ऐसा करना मुमकिन है. यह काम रिफ्लेक्शन ऑफ लाइट के तहत किया गया है. यह सिद्धांत कहता है कि चिकनी पॉलिश वाली सतह से टकराने से लाइट रिफ्लेक्ट होकर लौट जाती है. इसी के आधार पर आर्किटेक्ट जियाकोमो बोन्ज़ानी ने कस्बे के ऊपर की चोटियों में से एक पर विशाल मिरर लगाने की योजना बनाई. जिससे सूरज की किरणें मिरर से रिफ्लेक्ट होकर गांव के मुख्य चौराहे पर पड़े.
एक करोड़ की लागत से बना मिरर
धूप की जद्दोजेहद के लिए आर्किटेक्ट बोन्ज़ानी और इंजीनियर गियानी फेरारी ने मिलकर आठ मीटर चौड़ा और पांच मीटर लंबा एक विशाल मिरर डिजाइन किया. इसे बनाने में 1,00,000 यूरो (लगभग 1 करोड़ रुपए) की लागत आई. 17 दिसंबर, 2006 को इस प्रोजेक्ट का काम पूरा हो गया. मिरर में एक खास सॉफ्टवेयर प्रोग्राम भी लगाया गया है. सॉफ्टवेयर की बदौलत मिरर सूरज के पथ के हिसाब से घूमता है. इस तरह चोटी पर लगे विशाल मिरर से गांव में दिन में छह घंटे तक सूरज की रोशनी रिफ्लेक्ट होकर आने लगी. इस तरह से दिन में 6 घंटे तक गांव में रोशनी रहने लगी. यह आर्टिफिशियल रोशनी प्राकृतिक धूप के बराबर और इतनी शक्तिशाली नहीं है. गर्मी के मौसम में अगर ऐसी व्यवस्था रहेगी, तो विशाल मिरर की वजह से गांव में तेज धूप पड़ेगी. इसलिए, गर्मी के सीजन में मिरर को ढक दिया जाता है.
दुनिया को दिखाई राह
इटली के इस कस्बे के लोगों को जिस तरह से सफलता मिली इसने दुनिया के और देशों को ऐसा साहसिक काम के लिए प्रेरित किया. 2013 में, दक्षिण-मध्य नॉर्वे की एक घाटी में स्थित रजुकन में विगनेला की तरह की एक मिरर लगाया गया था. पूर्व मेयर मिडाली ने 2008 के एक इंटरव्यू में कहा, ‘प्रोजेक्ट के पीछे का विचार किसी वैज्ञानिक आधार पर नहीं है. यह मानवीय आधार पर बना है.