दिसंबर महीने के आखिर सप्ताह में क्रिसमस के बाद से उत्तर भारत में खासकर हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश में ठंड लगातार बढ़ने लगी, जो अब तक जारी है. पिछले कई दिनों से ठंड और शीत लहर ने लोगों की कंपकंपी छुड़ा दी है. कई लेयर में कपड़े पहनने के बाद भी ठिठुरन महसूस हो रही है. पहाड़ों से ज्यादा ठंड मैदानी इलाकों में पड़ रही है. ऐसे में आपके दिमाग में दो तरह के सवाल आए होंगे कि पहाड़ों से ज्यादा मैदानी भागों में ठंड क्यों पड़ रही है. दूसरा सवाल यह आया होगा कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह जब पूरी दुनिया का तापमान बढ़ रहा है ऐसे में वैश्विक स्तर पर इतनी ज्यादा ठंड क्यों पड़ रही है? आज हम आपके इन्हीं सवालों के जवाब देंगे.
मौसम वैज्ञानियों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के बाद भी बढ़ने वाली ठंड के लिए दुनियाभर में हो रही कुछ प्राकृतिक घटनाएं जिम्मेदार हैं. धरती के अलग-अलग हिस्सों का तापमान एक ही समय में अलग-अलग रहता है. कहीं बहुत ज्यादा गर्मी और कहीं हाड़कंपाती ठंड पड़ती होती है. दरअसल, धरती पर सूर्य की किरणें अलग-अलग हिस्सों पर अलग तरह से पड़ती हैं. ऐसे में उनका असर भी अलग होता है. धरती के पोलर जोन्स पर सूर्य की किरणें सीधे नहीं पड़ती हैं. सर्दियों में 24 घंटे इन इलाकों में रात रहती है. ऐसे में यहां पूरे साल बर्फ जमी रहती है. वहीं, धरती के बीच के हिस्से में सूर्य की किरणें सीधी पड़ने से गर्मी ज्यादा रहती है.
धरती के पोलर जोन्स में हवा गोलाकार आकार में बहुत तेजी से बहती है. ऐसे में धरती के जिस भी इलाके से होकर यह हवा बहती है, वो हिस्सा बेहद ठंडा रहता है. वहीं, गर्म क्षेत्र में सब-ट्रॉपिकल जेटस्ट्रीम बहती है. अगर धरती ग्लोबल वार्मिंग की चपेट में ना हो तो दोनों तरह की हवाओं के बीच के इलाकों में हवाओं की रफ्तार संतुलित रहेगी. इससे वे अपने-अपने इलाकों में सामान्य तौर पर बहती रहेंगी. लेकिन, जैसे ही पृथ्वी का तापमान सामान्य से ज्यादा होता है, धरती के पोलर जोन्स में ठंडी हवाओं की रफ्तार कम होने लगती है.
पोलर जोन्स के उलट गर्म क्षेत्र की हवाओं में फैलाव आने लगता है और ये पोलर जोन्स में पहुंचने लगती हैं. पोलर जोन की सर्द हवा कमजोर पड़कर गर्म क्षेत्र की तरफ बहने लगती है. इससे पोलर जोन में तो गर्मी बढ़ती है, लेकिन गर्म क्षेत्र में कड़ाके की सर्दी पड़ने लगती है. जलवायु की इस व्यवस्था को पोलर वॉर्टेक्स यानी ध्रुवीय भंवर कहा जाता है. अब समझते हैं कि इस व्यवस्था से भारत के मौसम पर क्या असर पड़ता है? दरअसल, पोलर वॉर्टेक्स के कारण पश्चिमी विक्षोभ मध्य एशिया में ठंडी हवा का वो दबाव है, जो पश्चिम से भारत में प्रवेश करता है. इसके कारण पश्चिमी से उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है.
मौसम की पोलर जोन्स वाली व्यवस्था ही हिमालय और उत्तर भारत में देखने को मिल रही है. इसी कारण भारत के पहाड़ी इलाकों से ज्यादा ठंड दिल्ली, पंजाब समेत उत्तर भारत के ज्यादातर मैदानी इलाकों में पड़ रही है. वहीं, उत्तर भारत की गर्म हवाएं हिमालय की तरफ जा रही हैं. यही ग्लोबल वार्मिंग का बुरा असर है, जिसके कारण हमें मौसम में अजीब तरह के बदलाव देखने के लिए मिलते हैं.
मौसम वैज्ञानियों के मुताबिक, इसके अलावा समताप मंडल में बहुत ऊपर जेट स्ट्रीम के स्तर से ऊपर उत्तरी ध्रुव के आसपास स्थित तेज हवाओं की एक बेल्ट भी भीषण ठंड के लिए जिम्मेदार हो सकती है. इसे ध्रुवीय भंवर कहा जाता है. ध्रुवीय भंवर एक घूमते हुए शीर्ष की तरह है. अपनी सामान्य अवस्था में यह बहुत तेजी से घूमता है, जिससे आर्कटिक क्षेत्र में भयंकर ठंडी हवा बंद रहती है, लेकिन यह बाधित हो सकता है और अपने रास्ते से भटक सकता है, खिंच सकता है और विकृत हो सकता है. ठंडी हवा बाहर निकाल सकता है और जेट स्ट्रीम के रास्ते पर असर डाल सकता है.
आर्कटिक ध्रुवीय भंवर बहुत ठंडी हवा को घेरने वाली तेज हवाओं की एक पेटी है, जो उत्तरी ध्रुव के ऊपर समताप मंडल में ऊंचाई पर है. आमतौर पर ध्रुवीय भंवर स्थिर होता है, जिससे ठंडी हवा नियंत्रित रहती है. जब इसमें किसी वजह से हलचल होती है, तो यह कम स्थिर हो जाता है और फैलता है, जिससे ठंडी हवा दक्षिण की ओर बहने लगती है. यह जेट स्ट्रीम के मार्ग को प्रभावित करता है, जो वायुमंडल में नीचे बैठता है और हमारे मौसम के लिए जिम्मेदार है. यह 2021 में हुआ, जिससे टेक्सास में भयंकर ठंड आई, जिससे लगभग 250 मौतें हुईं और राज्य के बड़े हिस्से में बिजली गुल हो गई. First Updated : Thursday, 18 January 2024