Explainer: कौन हैं अरुण योगीराज जिन्होंने अयोध्या राम मंदिर के लिए बनाई रामलला की मूर्ति, यहां जानें सबकुछ

Arun Yogiraj: अरुण योगीराज उन तीन मूर्तिकारों में से एक हैं जिन्होंने राम लला की मूर्तियां बनाई हैं. हालांकि, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने अभी तक यह घोषणा नहीं की है कि तीन मूर्तियों में से किसको गर्भगृह में रखा जाएगा.

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Arun Yogiraj Who Made Ram Lalla's Sculptors: 22 जनवरी को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भगवान श्री राम मंदिर का भव्य उद्घाटन होने जा रहा है. इसी बीच कर्नाटक के भाजपा नेता 1 जनवरी से अरुण योगीराज को बधाई दे रहे हैं, जो उन तीन मूर्तिकारों में से एक हैं जिन्होंने राम लला की मूर्तियां बनाई हैं. हालांकि, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने अभी तक यह घोषणा नहीं की है कि तीन मूर्तियों में से किसको गर्भगृह में रखा जाएगा.

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी सहित कई भाजपा नेताओं ने दावा किया कि अयोध्या राम मंदिर के लिए प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज के मूर्तियों का चयन किया गया है. मैसूर के रहने वाले योगीराज मशहूर मूर्तिकारों के परिवार से हैं. उनका परिवार 250 साल यानी पिछली पांच पीढ़ियों से यह काम करते आ रहा है. 

कौन हैं अरुण योगीराज?

38 वर्षीय अरुण योगीराज का नाम देश के प्रसिद्ध और सबसे अधिक मांग वाले मूर्तिकारों में गिना जाता है. हालांकि उनके पास एमबीए की डिग्री है और उन्होंने कुछ समय के लिए नौकरी भी की, फिर भी वे अपने पारिवारिक पेशे में वापस लौट गए. योगीराज बताते हैं कि, “मैं 11 साल की उम्र से ही मूर्तिकला में अपने पिता की मदद कर रहा हूं. कुछ महीनों तक कहीं और काम करने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मूर्तिकला मेरा जुनून था. मैं 2008 में घर आया. जहां मेरे पिता ने भी मेरे इस फैसले का समर्थन किया, वहीं मेरी मां इस बात से खुश नहीं थीं कि मैंने नौकरी छोड़ दी. आखिरकार मेरी मां 2014 में मेरे फैसले को समर्थन दिया, जब मुझे दक्षिण भारत का युवा प्रतिभा पुरस्कार मिला.'' 

भारत के अलावा विदेशों से मिलते हैं ऑर्डर

योगीराज के दादा, बी बासवन्ना शिल्पी को मैसूर के राजाओं द्वारा संरक्षण प्राप्त था, और उन्हें मैसूर महल के शाही गुरु शिल्पी सिद्धांती सिद्धलिंग स्वामी द्वारा प्रशिक्षित किया गया था. बसवन्ना शिल्पी ने मैसूरु महल परिसर में स्थित गायत्री मंदिर के लिए केवल 11 महीनों में 64 मूर्तियों को बनाया था. अरुण योगीराज के पास 15 कारीगरों और कुछ छात्रों की एक टीम है जो कला सीखने के लिए स्वेच्छा से काम कर रहे हैं. भारत से ऑर्डर के अलावा, उन्हें यूएसए, मलेशिया और अन्य स्थानों से भी कई ऑर्डर मिलते रहते हैं. 

उन्होंने कई छात्रों को निःशुल्क प्रशिक्षण भी दिया है.  वह बच्चों को क्ले मॉडलिंग और अन्य कौशल में प्रशिक्षित करने के लिए मैसूर में ब्रह्मर्षि कश्यप शिल्पकला शाला ट्रस्ट चलाते हैं. 

अरुण योगीराज की कुछ प्रसिद्ध रचनाएं क्या हैं?

योगीराज के कुछ कार्यों में दिल्ली के इंडिया गेट के लिए स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की 28 फीट की अखंड काले ग्रेनाइट पत्थर की मूर्ति शामिल है; केदारनाथ, उत्तराखंड के लिए 12 फीट की आदि शंकराचार्य की मूर्ति, श्री रामकृष्ण परमहंस की भारत की सबसे बड़ी 10 फीट की अखंड सफेद संगमरमर पत्थर की मूर्ति, मैसूरु और भारत भर के विभिन्न मंदिरों में भगवान पंचमुखी गणपति, भगवान महाविष्णु, भगवान बुद्ध, नंदी, स्वामी शिवबाला योगी, स्वामी शिवकुमार और देवी बनशंकरी की मूर्तियां शामिल हैं. 

कैसे तैयार की रामलला की मूर्ति ?

इस बारे में योगीराज ने बताया कि ट्रस्ट ने तीन मूर्तिकारों से कहा था कि मूर्ति पांच साल पुरानी दिखनी चाहिए और लंबाई 51 इंच (4.25 फीट) होनी चाहिए. “हमें कई जगहों से पत्थर दिए गए, जैसे नेपाल, उत्तर कन्नड़ जिले के करकला, मैसूर जिले के एचडी कोटे और राजस्थान के मकराना. मैंने एचडी कोटे से कृष्ण शिला पत्थर का चयन किया. इनमें से कुछ पत्थर भक्तों द्वारा डाले जाने वाले पानी और दूध पर प्रतिक्रिया करते हैं. कृष्ण शिला एक अनोखा पत्थर है जो किसी भी तरल पदार्थ पर प्रतिक्रिया नहीं करता है और इसका उपयोग कर्नाटक में 1,000 वर्षों से किया जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि जहां भगवान कृष्ण (एक बच्चे के रूप में) के संदर्भ हैं, वहीं भगवान राम के बचपन के बारे में ऐसे कुछ विवरण उपलब्ध हैं. “मैंने कुछ स्कूलों का दौरा किया. मैसूरु में बच्चों का एक कार्यक्रम (चिन्नारामेला, रंगायण में एक ग्रीष्मकालीन शिविर) हुआ था. मैं वहां बच्चों को देखने गया था. जहां मैंने देखा कि पांच साल का बच्चा तीन साल या चार साल के बच्चे से बहुत अलग दिखता है. मैंने लगभग 1,200 तस्वीरों के साथ काम करते हुए यह कैद करने की कोशिश की कि पांच साल का बच्चा कैसा दिखता है. मूर्ति में एक बच्चे की मासूमियत के साथ-साथ दिव्यता भी होनी चाहिए. मूर्ति की कल्पना करने में मुझे दो महीने लग गए.

चार महीने की मेहनत के बाद गढ़ी मूर्ती

मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बताया की चार महीनों की मेहनत की बाद उन्होंने मूर्ति गढ़ी. मूर्ति पर काम करने वाले अन्य दो मूर्तिकार बेंगलुरु के जीएल भट्ट और राजस्थान के सत्यनारायण पांडे हैं. ट्रस्ट इन तीन मूर्तियों में से एक को गर्भगृह के अंदर स्थापित करेगा, जबकि अन्य दो को मंदिर के परिसर में रखा जाएगा. First Updated : Wednesday, 03 January 2024