प्रभु राम और माता सीता की कुलदेवी कौन हैं अयोध्या में राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा से क्या है इनका नाता

अयोध्यानामा : ऐसी मान्‍यता है कि माता सीता विवाह के बाद जब जनकपुरी से अयोध्‍या आईं तो माता पार्वती की प्रतिमा अपने साथ में लेकर आईं थीं. माता सीता प्रतिदिन मां पार्वती की पूजा करती थीं.

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अयोध्या के राम मंदिर में राम लला की प्राण- प्रतिष्ठा के लिए अनुष्ठान शुरू हो चुका है. आज चौथे दिन राम मंदिर में अनुष्ठान जारी है, मंत्रोउच्चार के बीच पूजा-अर्चना की जा रही है. ऐसे में रामलला की कुलदेवी की बात ना की जाए तो श्रद्धालुओं के साथ बड़ी नाइंसाफी होगी. लेकिन आपके दिमाग में यह सवाल भी आ रहा होगा कि प्रभु राम की प्राण-प्रतिष्ठा के बीच भगवान राम और माता सीता की कुलदेवी का जिक्र क्यों किया जा रही है. तो इसके पीछे की वजह भी है. प्रभु राम और माता सीता दोनों की कुलदेवी का मंदिर अयोध्या में है. ऐसे में इन मंदिरों में क्या चल रहा है और इनकी क्या मान्यता है हम आपको इसके बारे में बताएंगे. आइए आपको बताते हैं कि प्रभु श्री राम और माता सीता की कुलदेवी कौन हैं.

कौन हैं प्रभु श्री राम और माता सीता की कुलदेवी

माता सीता की कुलदेवी छोटी देवकाली और भगवान राम की कुलदेवी बड़ी देवकाली माता हैं. छोटी देवकाली और बड़ी देवकाली के बारे में रोचक मान्यताएं हैं. इनकी पूजा-अर्चना आज भी त्रेता युग जैसी होती थी. अयोध्‍या के बीचों बीच छोटी देवकाली का मंदिर स्थित है. यहां माता पार्वती सर्वमंगला महागौरी के रूप में विराजमान हैं. ये मंदिर यहां के प्रमुख शक्ति उपासना केंद्र में से एक है.

स्‍कंदपुराण में मिलता है इनका उल्लेख

ऐसी मान्‍यता है कि माता सीता विवाह के बाद जब जनकपुरी से अयोध्‍या आईं तो माता पार्वती की प्रतिमा अपने साथ में लेकर आईं थीं. माता सीता प्रतिदिन मां पार्वती की पूजा करती थीं. राजा दशरथ को जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने अयोध्‍या स्थिति सप्‍तसागर के ईशानकोण में इस प्रतिमा को स्‍थापित करके माता पार्वती का भव्‍य मंदिर बनवा दिया. मुगलों ने इस मंदिर को दो बार क्षति पहुंचाई, लेकिन इन मंदिर को दोनों बार बनवा दिया गया. बता दें कि रूद्रयामल और स्‍कंदपुराण में भी इस मंदिर का उल्‍लेख मिलता है. 

अयोध्या में यहां है बड़ी देवकाली माता का मंदिर

माता सीता की कुलदेवी बड़ी देवकाली माता हैं का मंदिर अयोध्या के भीतरी हिस्से पर है. वहीं भगवान राम की कुलदेवी माता बड़ी देवकाली का मंदिर अयोध्‍या में पश्चिम दिशा की ओर है. माना जाता है कि इस मंदिर की स्‍थापना इश्‍वाकु वंश के राजा ने करवाई थी. मान्‍यता है कि भगवान राम के जन्‍म के बाद माता कौशिल्‍या उन्‍हें सबसे पहले रघुवंशियों की कुलदेवी मानी जाने वाली बड़ी देवकाली के दर्शन कराने लाई थीं. इसलिए, यहां भगवान राम पालने में विराजमान हैं.

कुलदेवी की पूजा कर वनवास गए थे श्रीराम

देवी भागवत के तीसरे अध्याय में बड़ी देवकाली जी के महत्त्व का वर्णन है. एक ही शिला में विराजमान देवी के तीनों रूपों का दर्शन करने की रघुकुल की परंपरा रही है. महाराजा सुदर्शन जो भगवान श्रीराम के पूर्वज थे, उनके समय का यह मंदिर है. कहा जाता है कि श्रीराम को वनवास हुआ था, उस समय प्रभु राम अपनी कुलदेवी मां आदिशक्ति के तीनों रूप में विराजमान बड़ी देवकाली जी की पूजा अर्चना कर अयोध्या की मंगल कामना करते हुए वन गए थे. जब सीता जी का रावन ने हरण किया था, तब भी प्रभु राम ने अपनी कुलदेवी की उपासना कर लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए लंका गए थे और लंका पर विजय प्राप्त कर सीता जी को प्राप्त किया था.

चैत्र व शारदीय नवरात्र में होती है खास पूजा-अर्चना

भगवान राम और माता सीता की कुल देवी की पूजा हर साल चैत्र व शारदीय नवरात्र में बड़ी धूमधाम से होती है, क्योंकि चैत्र रामनवमी के दिन प्रभु श्री राम चन्द्रजी का जन्म हुआ था. इस दिन भक्त जन अपने पापों का प्रायश्चित और पुण्य की प्राप्ति के लिए रघुकुल की कुलदेवी देवकाली जी की पूजा अर्चना करते हैं. कहा जाता है कि नवरात्र में सिद्धि प्राप्त करने के लिए बड़ी देवकाली जी की विशेष पूजा की जाती है. साल भर दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु नवरात्र में जरूर आते हैं. पहले मां के तीनों रूप की पूजा अर्चना करते हैं. मंदिर के बाहर मां शक्ति का वाहन सिंह विराजमान है. First Updated : Friday, 19 January 2024

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