Explainer : जानें कौन थे कुमारप्पा? जिन्होंने लिया महात्मा गांधी से पाई-पाई का हिसाब

Explainer : कुमारप्पा बिहार में बदलाव करने चाहते थे उनका सबसे पहले काम धन की बर्बादी को किसी भी हालत में रोकना था, पैसे क दुरुपयोग के जितने भी लीकेज थे, उन्हें बंद करने का प्रयास भी किया गया था.

Shweta Bharti
Edited By: Shweta Bharti

हाइलाइट

  • कुमारप्पा का लोगों के बीच बढ़ा सम्मान.  
  • कुमारप्पा का बिहार में पहला काम.

Explainer : कुमारप्पा का पूरा नाम जेसी कुमारप्पा था इनका जन्म 4 जनवरी 1892 का तंजौर में हुआ था, वह तमिलनाडु के एक मध्यम वर्गीय,रुढ़िवादी, ईसाई परिवार से थे, उनके पिता एसडी कॉर्नेलियल थे जो कि उस समय पर मद्रास सरकार के लोक निमार्ण विभाग में एक अधिकारी थे, उनकी मां, एस्तरे राजनायकमस, दक्षिण भारत के एक कट्टर ईसाई परिवार से थीं, उन्होंने अपनी पीढ़ी के लिए व्यापक रूप से तमिल में पढ़ा था, लेकिन विश्वविद्यालय शिक्षा के मानकों के अनुसार वह एक विद्वान महिला नहीं थी, बल्कि उन्होंने ईसा महीह के सिद्धातों के अनुरूप तुलनात्मक सादगी का जीवन जीया.  

कुमारप्पा का बिहार में पहला काम 

15 जनवरी 1934 को सुबह-सुबह तेज भूकंप आया. इसका असर बिहार और नेपाल में हुआ. जगह-जगह जमीन धंस गई, घर तबाह हो गए खाने–पीने का घोर संकट हो गया. इस भूकंप से कई जिंदगियां तबाह हुईं. कई परिवार उजड़ गए. चारों ओर तबाही का मंजर था, राजेद्र प्रसाद, श्री बाबू, अनुग्रह बाबू जैसे प्रभावशाली लोगों ने खुद को मदद में झोंक दिया. लेकिन सब अपर्याप्त साबित हो रहा था. तब राजेद्र प्रसाद ने जमना लाल बजाज से मदद मांगी, उन्होंने अपने विश्वासपात्र जेसी कुमारप्पा को भरोसे में लिया और उन्हें वित्तीय सलाहकार के रूप में बिहार भेज दिया गया. बिहार पहुंचते ही कुमारप्पा ने जो पहला काम किया वह था कि बर्बादी को रोकना, पैसे के दुरुपयोग के जितने भी लीकेज थे, उन्हें बंद करने का प्रयास किया. उनके आने के बाद राजेद्र शासन को भी हिला दिया था.

 सेवकों को दिए जाते थे रूपये

फंड मैनेजमेंट का काम कुमारप्पा देख रहे थे, तो उन्होंने स्वंय सेवकों के लिए कुछ नियम तय कर दिया था. इसके मुताबिक हर सेवक को दिन के हिसाब से जेब खर्च करने के लिए रूपये दिए जाते थे. यह भुगतान केवल  सेवकों के लिए था, जो दिन-रात मेहनत करते हुए पीड़ितों को मदद पहुंचा रहे थे और किसी को यह सुविधा नहीं मिली थी.

कुमारप्पा का लोगों के बीच बढ़ा सम्मान  

जब यह चर्चा आम हुई तो जिसने भी सुना उसने दांतों तले उंगली दबा ली और मन ही मन कुमापप्पा के प्रति लोगों के मन में सम्मान और बढ़ गया. इसकी चर्चा गांधी ने जमना लाल बजाज समेत अपने अन्य सहयोगियों से की थी, कुमारप्पा का लोगों के बीच सम्मान बढ़ता गया.

कुमारप्पा थे अपनी बात के पक्के

गांधी जी से पैसों के  बारें में हिसाब –किताब पर बात कर लेना उस समय असाधारण काम था,  कुमारप्पा भी साधारण व्यक्तित्व के स्वामी नहीं थे, वे तब के मद्रास प्रांत में पैदा हुए थे. उम्र में गांधी से 23 साल छोटे थे लेकिन अपनी धुन के पक्के थे. उनके पिता लोक निर्माण विभाग के कर्मचारी थे. ईमानदारी और साफगोई उन्हें अपने पिता से मिली थी. कुमारप्पा लंदन और अमेरिका कि कोलम्बिया यूनिवर्सिटी से पढे थे.

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30 January 2024, 07:26 AM IST

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