अयोध्या के राम मंदिर में 22 जनवरी को राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा होनी है. इसको लेकर अयोध्या नगरी को सजाया जा रहा है. राम मंदिर में इस दिन के लिए 500 साल की लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. इस आंदोलन का ना केवल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) और विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने आगे रहकर नेतृत्व किया, बल्कि कई साधु-संतों ने इसमें बढ़चढ़कर भाग लिया. लेकिन इन साधु-संतों की चर्चा कम ही हुई. आज के समय में ऐसा भी है कि राम मंदिर के लिए काम करने वाले असली हीरो के बारे में लोगों को कम ही बताया जा रहा है.
ज्यादातर लोग गुमनाम हो रहे हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे संत के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने 22-23 दिसंबर 1949 की रात की रात बाबरी गुंबद के नीचे राम लला की मूर्ति को स्थापित किया था. इनका नाम बाबा अभिराम दास था. पत्रकार हेमंत शर्मा ने अपनी किताब "युद्ध में अयोध्या" में इनके बार में विस्तार से बताया है. बाबा अभिराम दास का ताल्लुक मधुबनी जिले के मैथिल ब्राह्मण परिवार से था.
बाबा अभिराम दास छह फुट लंबे, बलिष्ठ हट्टे- कट्टे और बलिस्ट युवा थे. बाबा काफी हठी स्वभाव के थे. बाबा अभिराम दास अयोध्या के उन साधुओं में शुमार किया जाता था जो लड़ने भिड़ने में माहिर थे. अभिराम दास शिक्षित नहीं थे, इसलिए उन्होंने शारीरिक शक्ति को अपनी ताकत बनाया. अभिराम दास कई घंटे अखाड़ों में बिताते थे. 45 साल की उम्र में भी कुश्ती लड़ते थे. अभिराम दास नागा वैरागी थे.
बाबा अभिराम दास हमेशा रामजन्म भूमि में राम लला की मूर्ति स्थापित करने की बात करते थे. वह हठी और लड़नेृ- भिड़ने में माहिर थे. राम लला के लिए कोई मौका चूकना नहीं चाहते थे. 22-23 दिसंबर 1949 की रात बाबरी ढांचे के नीचे वो राम लाल की मूर्ति को टोकरी में लेकर पहुंचे और स्थापित कर दिया. इसके बाद उन्होंने फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह से मुलाकात की थी. अपनी योजना को सफल बनाने के लिए बाबा अभिराम दास ने स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों और अन्य सरकारी कर्मचारियों को इसका हिस्सा बनाने पर काम करना शुरू किया.
बाबा अभिराम दास साल भर बिना एक दिन चूके सरयू नदी में स्नान किया करते थे. उनके स्नान में कोई भी मौसम आड़े नहीं आता था. उनके पास भगवान राम के बाल रूप की एक अष्टधातु की मूर्ति थी. वह इस मूर्ति को कपड़े से ढककर टोकरी में रखते थे और सिर पर उठाकर चल देते हैं. उनके साथ रामचंद्र परमहंस तांबे के कलश में सरयू का जल लेकर रामधुन गाते हुए चल देते हैं.
पत्रकार हेमंत शर्मा की किताब के अनुसार रामजन्म भूमि में स्थित चबूतरे पर अखंड भजन कीर्तन किया जा रहा था. तब वहां पुलिस के जवानों को तैनात कर दिया गया था. उस रात पुलिस वाले तंबू में सो गए. तब रामजन्म भूमि पर दो सिपाहियों की ड्यूटी लगाई गई थी. वह रामचरित मानस के नवाह्न पाठ (रामचरित मानस का नौ दिन चलने वाला पाठ) का अंतिम दिन था. अंतिम दिन हवन-पूजन होना था. बाबा अभिराम दास ने गर्भगृह में प्रवेश कर उसे सरयू के जल से धोया. वो अपने साथ सरयू का जल भी लेकर आए थे. फिर लकड़ी के पटल पर चांदी का एक सिंहासन रखा. उस पर कपड़ा बिछाकर मूर्ति रख दी. फिर दीप-अगरबत्ती जलाकर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर दी.
पत्रकार हेमंत शर्मा की किताब "युद्ध में अयोध्या" के अनुसार , राम चबूतरे के पास तैनात कांस्टेबल शेर सिंह की डयूटी रात 12 बजे खत्म हो गई थी. अगली डयूटी सिपाही अब्दुल बरकत की थी, वह एक घंटे की देरी से आया. अब्दुल बरकत ने राम लला के प्रकट होने की बात का समर्थन किया. अब्दुल बरकत इस मामले में दर्ज एफआईआर में बतौर गवाह था. अब्दुल बरकत ने अपनी गवाही में कहा, “रात 12 बजे गुंबद के नीचे अलौकिक रोशनी हुई. जब रोशनी कम हुई तो नजर आया कि राम लला के बाल रूप वाली मूर्ति वहां पर विराजमान थी.” उस समय प्रशासन ने जो FIR दर्ज की थी उसमें बाबा अभिराम दास मुख्य आरोपी थे. 1981 में बाबा की मृत्यु हो गई. First Updated : Tuesday, 16 January 2024