देश की पहली नॉन-हार्मोनल गर्भनिरोधक गोली विकसित करने वाले डॉ. नित्या आनंद का दो दिन पहले ही लखनऊ में निधन हो गया. डॉ. आनंद 99 साल के थे और लंबे समय से उनका पीजीआई में इलाज चल रहा था. डॉ. नित्या आनंद की गिनती देश के शीर्ष मेडिकल साइंटिस्टों में होती है. गर्भरोधक गोली के अलावा उन्होंने मलेरिया, टीबी और कुष्ठ रोग जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में मददगार दवाएं बनाने का काम किया था. चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें 2012 में पद्मश्री से सम्मानित किया था. आइए आज हम आपको डॉक्टर नित्या आनंद की कहानी बताते हैं.
डॉ. नित्या आनंद का जन्म अविभाजित भारत में 1 जनवरी 1925 को पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था. उनकी शुरुआती पढ़ाई लायलपुर में हुई. साल 1943 में उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी से बीएससी की डिग्री की. सेंट स्टीफंस कॉलेज से केमेस्ट्री में मास्टर डिग्री हासिल की. 1948 में मुंबई की यूनिवर्सिटी ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी ने उन्हें पीएचडी डिग्री दी, जिसके बाद वो कैम्ब्रिज, यूके चले गए और दूसरी पीएचडी (1950) में की.
डॉ. आनंद 1951 में भारत वापस लौटे और लखनऊ के सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CSIR) में वैज्ञानिक के तौर पर काम शुरू कर दिया. इस संस्थान का काम नई दवाओं की खोज करना रहा है. साल 1963 में डॉ. नित्या आनंद को मेडिसिनल केमिस्ट्री डिवीजन का हेड बना दिया गया. इसकके बाद 1974 में वो इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर बने. CSIR से अलग होने के बाद भी डॉ. आनंद दशकों तक भारत सरकार की विभिन्न दवा नीति निर्माण निकायों से जुड़े रहे. उन्होंने कई वैज्ञानिक संस्थानों में सलाहकार के तौर भी काम किया.
डॉ. नित्या आनंद को गर्भनिरोधक गोली 'सहेली' बनाने के लिए जाना जाता है. इस गोली को बहुत सारे लोग छाया नाम से भी जानते हैं. साल 1960 के दशक में भारत सरकार को एक स्वदेशी और प्रभावी बर्थ कंट्रोल गोली की जरूरत थी. उस समय डॉक्टर नित्या आनंद और लखनऊ के CSIR-CDRI की उनकी टीम ने सहेली गोली को बनाने की शुरुआत की. कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद 1971 में भारत की पहली नॉन-स्टेरॉयड और नॉन-हार्मोनल गर्भनिरोधक गोली बनकर तैयार हुई.
कई तरह के क्लिनिकल टेस्ट के बाद सहेली टैबलेट को बाजार में उतारा गया. हर हफ्ते इसकी एक तय खुराक लेने से अनचाही प्रेग्नेंसी को रोकने में सफलता मिली. इस दवा का कोई गंभीर साइड-इफेक्ट भी नहीं दिखा. इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने साल 1986 में सहेली टैबलेट को लॉन्च किया. बाद में सरकार के राष्ट्रीय परिवार कार्यक्रम में इसे शामिल कर लिया और सरकारी अधिकारियों के द्वारा इसका प्रचार-प्रसार किया गया. 1995 में सहेली को पूरे भारत में प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर और विभिन्न फार्मेसी स्टोरों पर मुफ्त में उपलब्ध कराया गया.
डॉ. नित्या आनंद से आने वाली पीढ़ी काफी प्रभावित हुई. इसको इसको ऐसे समझ सकते हैं कि उनके लगभग 90 छात्रों को पीएचडी की उपाधि से सम्मानित किया गया है. अपने जीवन में नित्या आनंद ने लगभग 400 रिसर्च पेपर प्रकाशित किए, दो पुस्तकों के संपादक रहे और लगभग 130 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट हासिल किए. उन्हें 2012 में प्रतिष्ठित सम्मान पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. First Updated : Monday, 29 January 2024