Explainer : कौन थीं सावित्रीबाई फुले जो बनी भारत की प्रथम महिला शिक्षक, लड़कियों को पढ़ाने पर मारे लोगों ने पत्थर

Explainer: आज के समय में भारत के हर के बच्चे का सपना हैं पढ़ना और लिखना, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण दुनिया में आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो अपनी लड़कियों को पढ़ना नहीं चाहते हैं. क्या आप ने कभी सोचा है कि लड़कियों को पढ़ाने के लिए आंदोलन और कितना जुल्म सहना पड़ा था.

Shweta Bharti
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हाइलाइट

  • रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ना चाहती थीं सावित्रीबाई फुल.
  • सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले थे.

Explainer: 3 जनवरी 1831 यानी आज सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित नायगांव नामक एक छोटे से परिवार में हुआ था. इनके बारे में कम ही लोग जानते हैं यह वह महिला थी जिन्होंने लड़कियों को पढ़ाने के लिए कई जुल्मों को सहा, 19वीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा–विवाह जैसी कुरीरियों पर आवाज उठाने वाली देश की पहली महिला शिक्षिका बनीं.

रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ना चाहती थीं सावित्रीबाई फुले

सावित्रीबाई फुल महाराष्ट्र में जन्मी थी, इन्होंने अपने पति दलित चिंतक समाज सुधारक ज्योति राव फुले से पढ़कर सामाजिक चेतना फैलाई. उन्होंने अंधविश्वास और रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ने के लिए लंबा संघर्ष किया. सावित्रीबाई फुले देश की लड़कियों को पढ़ाना, लिखाना साथ ही उन्हें आत्मसम्मान और उनके आधिकारों को दिलाना चाहती थीं.

लड़कियों के लिए खोले 18 स्कूल 

सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले थे. उन्होंने साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश का सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना की, वहीं 18वां स्कूल भी पुणे में ही खोला था. उन्होंने 28 जनवरी, 1853 को गर्भवती बलात्कार पीड़ितों के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की भी स्थापना की थी.

स्कूल जाने पर लोगों ने मारे पत्थर 

बताया जाता है कि सावित्रीबाई फुले जब लड़कियों को पढ़ाने स्कूल जाती थी तो पुणे में स्त्री शिक्षा के विरोधी उन पर गोबर फेंक देते थे. पत्थर मारते थे. वे हर दिन बैग में एक्सट्रा साड़ी लेकर जाती थी और स्कूल पहुंचकर अपनी साड़ी बदलती थीं, सावित्रीबाई ने उस दौर में लड़कियों को लिए स्कूल खोला लेकिन तब बालिकाओं को पढ़ाना-लिखाना सही नहीं माना जाता था. सावित्रीबाई फुले एक कवियत्री भी थीं. उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था.

काशीबाई के बेटे को लिया गोद

सावित्रीबाई ने 19वीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों के विरुद्ध अपने पति के साथ मिलकर काम किया. सावित्रीबाई ने आत्महत्या करने जाती हुई एक विधवा ब्राह्मण महिला काशीबाई की अपने घर में डिलीवरी करवा उसके बच्चे यंशवत को अपने दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया. दत्तक पुत्र यशंवत राव को पाल-पोसकर इन्होंने डॉक्टर बनाया था.

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03 January 2024, 11:53 AM IST

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