श्रद्धांजलि: सीता राम येचुरी का जन्म एक अधिकारी परिवार में हुआ, जहां उनके माता-पिता दोनों सरकारी अधिकारी थे. वे पढ़ाई में अत्यंत सक्षम थे और एक उच्च सामाजिक स्थिति में पले-बढ़े. लेकिन अभी भी यह सवाल उठता है कि ऐसे परिवार का व्यक्ति वामपंथी कैसे बना और पूरी जिंदगी वामपंथ के लिए समर्पित क्यों रहा?
येचुरी का सार्वजनिक जीवन एक उदाहरण था उनकी सरलता और सामान्य जीवनशैली का. फेसबुक और ट्विटर पर वे नियमित रूप से सक्रिय रहते थे लेकिन अब उनकी अनुपस्थिति इन मंचों पर महसूस की जाएगी. बीस दिन पहले, येचुरी एम्स में भर्ती थे और उन्होंने बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव दासगुप्ता के निधन पर शोक संदेश भेजा था. इस वीडियो में वे कमजोर और धीमी आवाज में बोल रहे थे, जबकि उनकी तेलुगु से प्रभावित बंगला भाषा ने लोगों को आश्चर्यचकित किया.
उनकी तबीयत में अचानक बदलाव और कोविड के बाद उनकी स्थिति में आई गिरावट ने सबको चिंता में डाल दिया. कोविड के दौरान ही उनके बेटे की मृत्यु ने उन्हें गहरा आघात पहुंचाया था.
पार्टी के लिए वफादार थे येचूरी
येचुरी को वामपंथ का एक प्रमुख नेता माना जाता था, जिन्होंने विभिन्न मुद्दों पर अपनी समझ और निष्ठा का प्रदर्शन किया. हालांकि, उनके विचार अक्सर पार्टी के अन्य नेताओं से भिन्न होते थे लेकिन उनकी वफादारी पर कोई सवाल नहीं उठा सकता था. येचुरी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव के रूप में तीन बार कार्य किया और 1992 से पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य रहे. उनके परिवार का पृष्ठभूमि उच्च अधिकारी था—पिता सर्वेश्वर सोमयाजुला येचुरी एक बड़े इंजीनियर थे और मां कल्पकम येचुरी सरकारी अधिकारी थीं.
वामपंथी विचारधारा से हुए प्रभावित
वे हैदराबाद में पढ़ाई के दौरान वामपंथी विचारों से प्रभावित हुए और दिल्ली आकर उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने बीए और एमए (अर्थशास्त्र) की पढ़ाई में उत्कृष्टता प्राप्त की और जेएनयू में पीएचडी के लिए दाखिला लिया, लेकिन आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी के कारण यह रद्द हो गया.
राजनीति में कदम
येचुरी ने 1974 में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) में शामिल होकर राजनीति में कदम रखा और अगले साल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का हिस्सा बने. आपातकाल के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया और वे भूमिगत भी रहे. जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने जाने के बाद, वे एसएफआई के अखिल भारतीय संयुक्त सचिव और फिर अध्यक्ष बने.
1984 में सीपीआई (एम) की केंद्रीय समिति में शामिल हुए और 1992 में पोलित ब्यूरो का सदस्य बने. उन्होंने 2015 में पहली बार पार्टी के महासचिव का पद संभाला और लगातार तीन बार इस पद पर चुने गए.
येचुरी थे शानदार लेखक
वे एक लेखक भी थे और कई किताबें लिखीं. हिंदुस्तान टाइम्स के लिए उनके पाक्षिक कॉलम 'लेफ्ट हैंड ड्राइव' ने भी सबका ध्यान आकर्षित किया. वे 20 वर्षों तक पार्टी के पाक्षिक समाचार पत्र 'पीपुल्स डेमोक्रेसी' के संपादक रहे. 2005 में पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के लिए चुने गए और संसद में विभिन्न मुद्दों को उजागर किया. संसद में व्यवधान को लोकतंत्र की एक वैध प्रक्रिया मानते हुए, वे महत्वपूर्ण मुद्दों पर हमेशा सवाल उठाते रहे.
येचुरी का SFI से जेल तक का सफर और इंदिरा गांधी से मुलाकात
येचुरी का राजनीति में सफर 'स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया' (SFI) से शुरू हुआ.1974 में उन्होंने इस संगठन में शामिल होकर राजनीति में कदम रखा और अगले ही साल पार्टी का सदस्य बन गए. आपातकाल के दौरान उन्हें जेल भेजा गया, लेकिन जेल से बाहर आने के बाद वह जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष बने.
1978 में, वह एसएफआई के अखिल भारतीय संयुक्त सचिव बने और तुरंत ही इसके अध्यक्ष भी बन गए. एक बार उन्होंने और उनके साथियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास तक मार्च किया और उनके इस्तीफे की मांग करते हुए ज्ञापन सौंपा. जब वह प्रधानमंत्री के घर के गेट पर ज्ञापन चिपकाने के लिए पहुंचे, तो उन्हें देखकर इंदिरा गांधी स्वयं उनसे मिलने आईं, जिससे येचुरी भी चकित रह गए. First Updated : Thursday, 12 September 2024