मौत के 30 साल बाद क्यों छपे मौलाना आज़ाद की आत्मकथा के 30 पन्ने, ऐसा क्या लिखा था उसमें?
Maulana Azad: देश के पहले शिक्षा मंत्री माैलाना अबुल कलाम आजाद की 22 फरवरी को पुण्य तिथि है. वह वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद, पत्रकार और लेखक थे. मौलाना आजाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का सऊदी अरब में हुआ था.
Maulana Abul Kalam Azad Death Anniversary: देश के पहले शिक्षा मंत्री माैलाना अबुल कलाम आजाद की 22 फरवरी को पुण्य तिथि है. वह स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद, पत्रकार और लेखक थे. मौलाना आजाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को मक्का सऊदी अरब में हुआ था. उनका असल नाम अब्दुल कलाम गुलाम मोहिउद्दीन अहमद था. लेकिन वह मौलाना आजाद के नाम से मशहूर हुए. उनके जन्मदिन को भारत में नेशनल एजुकेशन डे यानी राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है. बता दें कि 22 फरवरी, 1958 को हृदयाघात से मौलाना अबुल कलाम आजाद का निधन हो गया था. उनके पुण्य तिथि पर हम उनके जीवन से जुड़े ऐसी जानकारी के बारे में बात करने जा रहे हैं जो शायद कम ही लोग जानते होंगे.
मौलाना आज़ाद की मृत्यु के क़रीब 10 महीने के बाद इंडिया विन्स फ्रीडम जनवरी 1959 में छपी. पर पांडुलिपि के 30 पन्ने नहीं छापे गए, क्योंकि वे यही चाहते थे. उन्हें नेशनल आर्काइव्ज़, दिल्ली और कोलकाता की नेशनल लाइब्रेरी में रखवा दिया गया, ताकि उन्हें मौलाना आज़ाद की मौत के सन 1988 में 30 साल पूरा होने पर आत्मकथा के नए एडिशन के साथ जोड़कर छापा जाएगा.
मौलाना गांधी जी को मानते थे विभाजन का जिम्मेदार
मौलाना आज़ाद इंडिया विन्स फ्रीडम में देश के विभाजन के लिए पंडित नेहरु की महत्वाकांक्षा, कृष्ण मेनन और तो और गांधी जी को भी ज़िम्मेदार ठहराते हैं. वे यहां तक कहते हैं कि क्या पानी का बंटवारा हो सकता है? राजमोहन गांधी ने 'पटेल ए लाइफ़' में लिखा है, "कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर मौलाना आज़ाद का कार्यकाल 6 साल तक खिंच गया. दूसरे विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन में पूरी वर्किंग कमेटी के जेल में रहने के कारण ऐसा हुआ.
विभाजन को लेकर सदमे में थे मौलाना आजाद
मशहूर लेखक राज ख़न्ना की चर्चित किताब 'आज़ादी के पहले, आज़ादी के बाद' में कांग्रेस की नई दिल्ली के 7, जंतर- मंतर पर स्थित कांग्रेस मुख्यालय में 15 जून, 1947 को ब्रिटिश सरकार की विभाजन योजना के मसले पर हुई बैठक की विस्तार से चर्चा की है. उन्होंने राम मनोहर लोहिया की किताब 'गिल्टी मेन ऑफ़ इंडियाज़ पार्टिशन' के हवाले से लिखा है, "कांग्रेस की इस बैठक के दौरान पूरे दो दिनों तक, लोगों से ठसाठस भरे हाल के एक कोने में एक कुर्सी पर बैठे मौलाना आज़ाद लगातार अबाध गति से सिगरेट का धुँआ उड़ाते रहे. एक शब्द भी नहीं बोले.
उन्होंने अपनी किताब में आगे लिखा कि संभव है कि उन्हें (देश विभाजन) का दर्द हो. लेकिन उनका यह जताने का प्रयास करना कि वे बंटवारे का विरोध करने वाले अकेले थे, यह मजाक लगेगा (लोहिया ने यह प्रतिवाद आज़ाद की आत्मकथा इंडिया विन्स फ्रीडम में किए दावो के उत्तर में लिखा). पूरी बैठक के दौरान उन पर अटूट खामोशी छाई रही."