विश्लेषण : बीजेपी की रणनीति के सामने क्यों नहीं टिक पाते विपक्ष के कोई भी मुद्दे क्या भाजपा ने वोटरों का दिमाग पढ़ लिया है

Analysis : हाल में हुए पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने चिर-परिचित वोट बैंक के अलावा बड़ी संख्या में ओबीसी वोट हासिल किया है. अब सवाल यह है कि क्या बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में हालिया तीन राज्यों की तरह ही विजय पताका फहराएगी या विपक्ष बीजेपी को कोई बड़ी चुनौती पेश करेगा.

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देश के पांच राज्यों में हाल ही में सपन्न हुए विधानसभा चुनाव में तीन राज्यों में बीजेपी को मिली बंपर जीत से 2024 के लोकसभा चुनाव की पिक्चर काफी हद तक क्लियर हो गई है. मध्य प्रदेश,  छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी ने बहुमत से ज़्यादा सीटें हासिल की हैं. 2024 में बीजेपी को झटका लग सकता है वाली आशंका भी इन चुनावों के बाद खत्म हो गई. कांग्रेस ने बिहार में हुए जातीय सर्वेक्षण के बाद चार राज्यों में जातिगत जनगणना कराने का दांव खेला था, जो पूरी तरह से फेल हो गया. 
इन चुनावों में बीजेपी ने अपने चिर-परिचित वोट बैंक के अलावा बड़ी संख्या में ओबीसी वोट हासिल किया है. अब सवाल यह है कि क्या बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव में हालिया तीन राज्यों की तरह ही विजय पताका फहराएगी या विपक्ष बीजेपी के सामने कोई बड़ी चुनौती पेश करेगा. 

बीजेपी की क्या रही है रणनीति

ओबीसी समुदाय उत्तर भारत के राज्यो में राजनीति का अहम हिस्सा है और ओबीसी व अगड़ी जाति के वोटर बीजेपी के परंपरागत वोट हैं. जिन राज्यों में ओबीसी की राजनीति करने के लिए क्षत्रप हैं वहां भी बीजेपी ने ओबीसी वोटों पर जमकर सेंध लगाई है. यूपी-बिहार में बीजेपी ने ग़ैर-यादव ओबीसी के बीच एक मज़बूत आधार बनाकर समाजवादी पार्टी और आरजेडी के यादव-मुस्लिम कॉम्बिनेशन पर सेंध लगाने का काम किया है. लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी की जीत के पीछे यह बड़ा कारण था. अगर मध्य प्रदेश की बात करें तो यहां 50 फ़ीसदी ओबीसी मतदाता हैं. मध्य प्रदेश में बीजेपी की जीत में ओबीसी समुदाय के वोटरों की बड़ी भूमिका रही है.

 जातियों को साधने का तारीका

मध्य प्रदेश में बीजेपी ने ओबीसी समुदाय के मोहन यादव को सीएम बनाया, लेकिन साथ में ब्राह्मण राजेंद्र शुक्ला और अनुसूचित जाति से आने वाले जगदीश देवड़ा को डिप्टी सीएम बना दिया. मध्य प्रदेश में ओबीसी 50, आदिवासी 22 और ब्राम्हण आबादी 10 फीसदी के करीब हैं. छत्तीसगढ़ में आदिवासी आबादी 32 से 33 फीसदी है. इसके आलावा उड़ीसा में 40%, राजस्थान 32%,  झारखंड में 26.3. वहीं नॉर्थ ईस्ट के 8 राज्य में आदिवासी बहुसंख्यक हैं. गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक हैं. वहीं राजस्थान में ब्राम्हण 10 फीसदी तो ओबीसी 35%, जाट और गुर्जर मिलाकर 14% आबादी है. राजपूत,  ब्राह्मण,  सिख,  बनिया,  कायस्थ आदि मिलकर 23% आबादी है. 

सोशल इंजीनियरिंग में माहिर है बीजेपी 

हमने तीन राज्यों में जिन जातिगत आंकडों की बात की वह देश के परिपेक्ष में बहुत कम हैं, लेकिन बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग को समझने के लिए काफी है. बीजेपी टिकट बंटवारे से सरकार बनने तक जिम्मेदारी देते समय सभी जातियों वर्गों का ध्यान रखती है. ऐसे में नाराजगी कम नेताओं में होती है. लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का यही फार्म्यूला रहता है. जहकि विपक्ष में परिवारवाद के साथ खास लोगों को टिकट दी जाती है. इसलिए इन पार्टियों में बीजेपी के मुकाबले बगावत ज्यादा होती है. 

मेरा निजी तौर पर मानना है कि मध्य प्रदेश,  छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी ने जिस तरह से तीन नए चेहरों को मुख्यमंत्री बनाया है उससे बीजेपी के दूसरे कार्यकर्ताओं में जोश जगा है. सीधा संदेश गया है कि बीजेपी में किसी को भी बड़ा मौका मिल सकता है. बीजेपी ने अपने नेतृत्व में काफ़ी परिवर्तन किया है, जिसकी वजह से ओबीसी समुदाय में उसकी पैठ बढ़ी है. बीजेपी के पास अगड़ी जातियों का एक स्थायी वोट बैंक है ही. कुल मिलाकर बीजेपी को विजय का फ़ॉर्मूला मिल गया है. उनका 40 से 45 फ़ीसदी वोट बैंक तो कहीं नहीं जा रहा.


विपक्ष बीजेपी के विजय रथ को कैसे रोकेगा?

हाल के पांच राज्यों के चुनाव में मध्य प्रदेश,  छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई थी. लेकिन इन राज्यों में विपक्ष का उठाया जातिगत जनगणना समेत मुफ्त की रेवडी वाले मुद्दों का कोई असर नहीं दिखा. मध्य प्रदेश में सभी को लग रहा था कि कांग्रेस आसानी से बहुमत पा लेगी. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार रहेगी,  और राजस्थान में कड़ा मुकाबला है, लेकिन चुनाव परिणाम इसके उलटे आए.  

विपक्ष के पास 'इंडिया' गठबंधन है 

अब विपक्ष के पास 'इंडिया' गठबंधन है. अगर विपक्ष के सभी दल मिलकर एक सीट पर एक ही उम्मीदवार को मैदान में उतारते हैं और उस उम्मीदवार का सभी दल मिलकर समर्थन करते हैं तो काफी हद तक बीजेपी की सीटों को कम किया जा सकता है. अगर विपक्षी दल ऐसा करने में नाकाम होते हैं तो बीजेपी की तीसरी बार बंपर सीटें आ सकती हैं. इसके साथ ही कांग्रेस को बेरोज़गारी,  ग़रीबी, महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दों पर टिक कर मोदी सरकार का विरोध करना होगा. 

अगर राहुल गांधी पिछड़ी जातियों की राजनीति करेंगे और हिंदुत्व की राजनीति का दिखावा करेंगे तो नहीं चलेगा,  क्योंकि राहुल गांधी पिछड़ी जाति के आईकॉन नहीं हैं और कांग्रेस पार्टी देश की सबसे पुरानी और सभी तरह के दलों के साथ काम करने के लिए जानी जाती है. ऐसे में राहुल गांधी को उदार होने के साथ ही पूरे देश को ध्यान में रखना होगा. हां, हिंदू वोटों को साधने के लिए भी काम करना होगा.  First Updated : Sunday, 17 December 2023