उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने क्यों किया सीजेआई खन्ना के चाचा का जिक्र?, इमरजेंसी से जुड़ा है किस्सा
उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश को यह याद दिलाने की जरूरत है कि संविधान दिवस और संविधान हत्या दिवस क्यों मनाया जाता है. उन्होंने आपातकाल का जिक्र करते हुए कहा, "29 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया गया था और 25 जून 1975 को इसे इमरजेंसी लगाकर खत्म कर दिया गया. वह लोकतंत्र का सबसे काला दौर था."

न्यायपालिका पर निशाना साधते हुए और संसद को "सर्वोच्च" बताते हुए अपने ताजा हमले में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जस्टिस हंस राज खन्ना का उल्लेख किया, जो सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज हैं और जिन्होंने 1975 में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ आवाज उठाई थी. वे सीजेआई संजीव खन्ना के चाचा भी हैं.
लोकतंत्र का सबसे काला दौर 'आपातकाल'
उपराष्ट्रपति ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैम्पस लॉ सेंटर में संविधान को अपनाने के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित व्याख्यान श्रृंखला 'कर्तव्यम' के शुभारंभ पर भाषण दिया. अपने भाषण की शुरुआत में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह द्वारा न्यायमूर्ति एचआर खन्ना को कैंपस लॉ सेंटर के पूर्व छात्र के रूप में उल्लेख किए जाने का उल्लेख किया. इसके बाद उपराष्ट्रपति ने आपातकाल को 'लोकतंत्र का सबसे काला दौर' बताया.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश को यह याद दिलाने की जरूरत है कि संविधान दिवस और संविधान हत्या दिवस क्यों मनाया जाता है. उन्होंने आपातकाल का जिक्र करते हुए कहा, "29 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया गया था और 25 जून 1975 को इसे इमरजेंसी लगाकर खत्म कर दिया गया. वह लोकतंत्र का सबसे काला दौर था." धनखड़ ने कहा कि आपातकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नौ उच्च न्यायालयों की इस सलाह को नज़रअंदाज़ कर दिया था कि मौलिक अधिकारों पर रोक नहीं लगाई जा सकती. जस्टिस हंसराज खन्ना का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, "एक असहमति की आवाज़ थी, और वह यहां के एक पूर्व छात्र की थी."
जस्टिस एचआर खन्ना कौन थे?
जस्टिस हंस राज खन्ना 1971 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने और 1977 में भारत के सीजेआई के लिए उनका नाम आगे था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इंदिरा गांधी सरकार ने 1975 में आपातकाल लागू कर दिया. 1976 में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के निलंबन के एक मामले की सुनवाई की, जिसे एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस के रूप में भी जाना जाता है. संविधान पीठ ने निर्णय दिया कि राज्य के हित में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को खत्म किया जा सकता है. जस्टिस एचआर खन्ना उस पीठ का हिस्सा थे. वह इस फैसले से असहमति जताने वाले एकमात्र जज थे.
जस्टिस एचआर खन्ना से इंदिरा गांधी ने लिया बदला
फैसले के नौ महीने बाद इंदिरा गांधी सरकार ने जस्टिस खन्ना को तरजीह देते हुए जस्टिस एमएच बेग को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया. जस्टिस खन्ना ने शीघ्र बाद इस्तीफा दे दिया. 2008 में उनकी मृत्यु के नौ साल बाद जस्टिस खन्ना तब से राज्य सत्ता के प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में उभरे हैं. भाजपा अक्सर कांग्रेस पर हमला करने के लिए इंदिरा गांधी सरकार के जज के साथ व्यवहार का मुद्दा उठाती रही है.
सीजेआई खन्ना को मिली चाचा से प्रेरणा
सीजेआई संजीव खन्ना अपने चाचा को आदर्श मानने के लिए जाने जाते हैं. परिवार के करीबी सूत्रों के अनुसार, सीजेआई संजीव खन्ना के पिता जस्टिस देव राज खन्ना चाहते थे कि उनका बेटा चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) बने क्योंकि कानून में करियर बनाना अधिक चुनौतीपूर्ण था. लेकिन उन्हें अपने चाचा से प्रेरणा मिली, जिन्होंने राज्य की कमान संभाली. एक सूत्र ने बताया कि वह हमेशा अपने चाचा को अपना आदर्श मानते थे और उनके काम का उत्सुकता से अनुसरण करते थे."
अगले महीने रिटायर होंगे सीजेआई खन्ना
सूत्र ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति एचआर खन्ना के निर्णयों, उनके नोट्स और रजिस्टरों की सभी प्रतियों को सुरक्षित रखा है. 2019 में जस्टिस संजीव खन्ना का सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पहला दिन उसी न्यायालय कक्ष में था, जिसमें उनके चाचा कभी बैठते थे. कमरे में न्यायमूर्ति एचआर खन्ना की एक तस्वीर लगी हुई है. सीजेआई खन्ना अगले महीने रिटायर होने वाले हैं, जिसके बाद जस्टिस बी.आर. गवई शीर्ष पद संभालेंगे.


