भारत सरकार ने गुरुवार को भारत और म्यांमार (India and Myanmar) के बीच मुक्त आवाजाही व्यवस्था को खत्म कर दिया है. अभी तक मुक्त आवाजाही व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय सीमा के दोनों ओर रहने वाले लोगों को बिना वीजा के एक-दूसरे के क्षेत्र में 16 किलोमीटर अंदर तक यात्रा करने की अनुमति देती थी. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने एक्स कहा कि पीएम मोदी का संकल्प है देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने का है. इसको देखते हुए गृह मंत्रालय ने फैसला लिया है.
गृह मंत्री अमित शाह ने बताया है कि भारत सरकार म्यांमार से लगी अपनी 1643 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ लगाने जा रही है. अभी तक 10 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा हो चुका है. देश की सीमा पर बाड़ लगाने के साथ ही एक पट्रोलिंग ट्रैक भी बनाया जाएगा. भारत सरकार ने म्यांमार की सीमा पर बाड़ लगाने का जो फैसला किया है दोनों देशों के संबंधों मं क्या असप पड़ेगा. आखिर देश आदाज होने के 77 साल बाद ऐसा क्यों करना पड़ा.
'मुक्त आवाजाही समझौते' यानी फ्री मूवमेंट रेजीम के तहत अभी तक भारत और म्यांमार के नागरिक बिना पासपोर्ट और वीजा के महज एक परमिट के सहारे एक-दूसरे की सीमा में आ-जा सकते थे. इसके कारण दोनों तरफ के नागरिकों को दूसरे देश की सीमा में 16 किलोमीटर दूर तक जाकर वहां अधिकतम दो सप्ताह रहने की अनुमति थी. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने असम में कुछ दिन पहले कहा था कि केंद्र सरकार ने अब तक खुली भारत-मिजोरम सीमा पर बांग्लादेश की तर्ज पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने का फैसला किया है. इसके साथ ही म्यांमार के साथ दशकों पुराने मुक्त आवाजाही समझौते को भी खत्म कर दिया जाएगा.
अरुणाचल प्रदेश में 520 किमी, नागालैंड में 215 किमी, मणिपुर में 398 किमी और मिजोरम में 510 किमी मतलब कुल 1,643 किमी लंबी सीमा म्यांमार से लगी है. इसमें से 1,472 किमी लंबी सीमा की शिनाख्त का काम पूरा हो गया है. मोरे में बाड़ लगाने का काम भी शुरू हो गया है. इस काम में चार से पांच साल का समय लगने की संभावना है. बाड़ लगाने का काम पूरा होने के बाद सीमा पार से आने वाले लोगों के लिए भारत का वीजा लेना अनिवार्य होगा.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार ने मुख्य दो वजहों को देखकर यह कदम उठाया है. पहली वजह है कि हाल ही में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट हुआ है जिसके बाद सीमावर्ती इलाकों में म्यांमार की सेना और विद्रोही गुटों में हिंसक झड़पें बढ़ी हैं. इसका असर भारतीय इलाकों पर भी देखने के लिए मिल रहा है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, म्यांमार में जारी हिंसा के कारण 20 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं. इसके कारण 40 हजार के करीब लोग, पुलिस और सैन्य अधिकारियों ने मिजोरम और मणिपुर में शरण ली है.
दूसरी वजह के बारे में कहा जा रहा है कि बीते साल मई में मणिपुर में हुई हिंसा के पीछे म्यांमार से आने वाले उग्रवादियों और सशस्त्र गुट जिम्मेदार हैं. इसको देखते हुए भारत सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है. पूर्वोत्तर के चार राज्यों की म्यांमार से लगी सीमा के दोनों ओर रहने वाले लोग एक ही जाति और संस्कृति के हैं. इसलिए सीमा पार से आने वाले लोग आसानी से स्थानीय आबादी में घुलमिल जाते हैं. इसलिए आपराध करने वालों की अलग से पहचान नहीं हो पाती.
बर्मा (अब म्यांमार) के भारत से अलग होने के बाद एक ही जातियों वाले कुछ गांव दोनों देशों के अलग-अलग बंट गए. देश की आजादी के बाद केंद्र सरकार को महसूस हुआ कि अलग-अलग देश में रहने के कारण एक ही जनजाति के लोगों के जीवन और रहन-सहन में कई तरह की दिक्कतें आ रही हैं. इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 26 सितंबर, 1950 को एक गजट अधिसूचना के जरिए पासपोर्ट नियमों में संशोधन करते हुए दोनों देशों के नागरिकों को बिना पासपोर्ट और वीजा के एक-दूसरे के देश में 40 किमी भीतर तक आने की छूट दे दी थी. First Updated : Thursday, 08 February 2024