Farmers Protest : एमएसपी की गारंटी समेत कई तरह की मांगों को लेकर पंजाब और हरियाणा के किसान सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. उत्तर भारत के किसान जहां धरना दे रहे हैं वहीं दक्षिण भारत के किसान इस आंदोलन में नजर नहीं आ रहे. फिलहाल हरियाणा और पंजाब के किसानों ने 'दिल्ली चलो मार्च' को दो दिन के लिए टाल दिया है. किसानों ने यह फैसला खनौरी बॉर्डर पर एक युवक की मौत के बाद लिया है.
प्रदर्शन कर रहे किसान MSP की गारंटी समेत कई मांगें कर रहे हैं. एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य किसी फसल की कम से कम कीमत होती है. सरकार एमएसपी पर किसानों से फसल खरीदती है.
हरियाणा-पंजाब में किसानों के आंदोलन के बाद तमिलनाडु के थंजावुर रेलवे स्टेशन पर 100 से ज्यादा किसानों को गिरफ्तार किया गया था. ये किसान दिल्ली में पुलिस कार्रवाई से नाराज थे. इसके बाद उन्होंने थंजावुर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन रोकने की कोशिश की थी. इससे पहले कर्नाटक और तमिलनाडु के कई किसान भी दिल्ली की ओर रवाना हुए थे. लेकिन उन्हें बीच में ही रोक दिया गया.
संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया था कि कर्नाटक के करीब 100 किसानों को भोपाल स्टेशन में रोक लिया गया था. ये किसान 13 फरवरी को दिल्ली चलो मार्च में शामिल होने आ रहे थे. अगर इन्हें छोड़ दिया जाए तो दक्षिण भारत का कोई बड़ा किसान संगठन इस आंदोलन में सक्रिय रूप से फिलहाल शामिल नहीं है.
एमएसपी वाले इस आंदोलन में दक्षिण भारत के किसानों के शामिल न होने का कारण है कि गेहूं और धान की सबसे ज्यादा खरीद पंजाब और हरियाणा जैसे उत्तर भारत के राज्यों से होती है. सरकार ने सबसे ज्यादा धान पंजाब के किसानों से खरीदा था. पंजाब के 9 लाख से ज्यादा किसानों से 2022-23 में 182.11 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा था और इसके लिए 37,514 करोड़ रुपये दिए थे. वहीं, हरियाणा के 2.82 लाख किसानों से 59.36 लाख मीट्रिक टन और यूपी के 9.40 लाख किसानों से 65.50 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद की थी. इसके उलट, दक्षिण के पांच राज्यों- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के किसानों से 214.34 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा था. जो कुल धान की खरीद का 25 फीसदी है. वहीं, दक्षिण के किसी भी राज्य से सरकार एमएसपी पर गेहूं की खरीद नहीं करती है.
दूसरी वजह है कि उत्तर और दक्षिण भारत में फसलों का पैटर्न भी अलग-अलग है. दक्षिण भारत के राज्यों में गन्ना, धान, कॉफी, सुपारी, दालें, काली मिर्च और इलायची जैसी फसलों ज्यादा खेती होती है. इसमें धान छोड़ दिया जाए तो बाकी फसलें ऐसी हैं जिन पर एमएसपी का कोई फर्क नहीं पड़ता. दक्षिण के राज्यों में ज्यादातर किसान अपनी फसल सरकारी मंडियों में बेचते हैं. यहां उन्हें एमएसपी से ज्यादा दाम मिल जाता है. इसके अलावा कॉफी बोर्ड और राज्य सरकारें भी एमएसपी से ज्यादा कीमत पर किसानों से फसल खरीदती हैं. इन राज्यों में अगर सूखा या बाढ़ की स्थिति बनती है और फसलों को नुकसान पहुंचता है तो यहां की राज्य सरकारें किसानों के लिए मुआवजे की व्यवस्था भी करती हैं. उनके कर्ज भी माफ कर दिए जाते हैं.
पंजाब-हरियाणा के किसान संगठनों का आंदोलन करीब दो हफ्ते से जारी है. किसानों एमएसपी पर लीगल गारंटी तो मांग ही रहे हैं. साथ ही उनकी और भी कई मांगें हैं. अब तक किसान नेताओं और सरकार के बीच चार दौर की बातचीत हो चुकी है. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है. 18 फरवरी को चौथे दौर की बातचीत हुई थी. इसमें सरकार ने एक नया प्रस्ताव रखा था, लेकिन किसानों ने इसे खारिज कर दिया था. First Updated : Thursday, 22 February 2024