राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा के बीच सोमनाथ मंदिर की क्यों हो रही है चर्चा? नेहरू और राजेंद्र प्रसाद से क्या है कनेक्शन?
बीजेपी ने सात दशक पहले की सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन की घटना से इसको जोड़ दिया है. बीजेपी ने इस मामले में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी लपेट लिया है.
कांग्रेस ने अयोध्या में राम मंदिर के कार्यक्रम के आमंत्रण को ठुकरा दिया है. इस फैसले ने मंदिर समर्थकों को पवित्र सोमनाथ मंदिर के पुनुरुद्धार कार्यक्रम को याद करने का मौका दिया है. दरअसल, आजादी के बाद सरदार पटेल ने सोमनाथ मन्दिर के पुनरुद्धार का संकल्प लिया था. जिसका पंडित नेहरू ने कड़ा विरोध किया था. दरअसल इस बार कांग्रेस ने इसे बीजेपी और आरएसएस का इवेंट बताकर अस्वीकार कर दिया है.
न्योते को ठुकराने के बाद सियासत गरमा गई है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इसका कनेक्शन 73 साल पहले सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन से जोड़ दिया है. इसको लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बीच सियासी वार-पलटवार शुरू हो गया है. बीजेपी ने कांग्रेस पर राम विरोधी होने का आरोप लगाया है.
बीजेपी ने सोमनाथ मंदिर से मामले को जोड़ा
बीजेपी ने सात दशक पहले की सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन की घटना से इसको जोड़ दिया है. बीजेपी ने इस मामले में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी लपेटा है. उस समय पंडित नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल होने से रोका था. दोनों के बीच इसे लेकर खुलकर मतभेद सामने आ गए थे. वो पूरी कहानी क्या है जिसको लेकर अब चर्चा शुरू हो गई है.
अब कहानी पर नजर डालते हैं
आज से 7 दशक पहले भी माहौल आज की तरह की बन गया था. तारीख थी 11 मई 1951. गुजरात में सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन होना था. यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. आक्रांताओं ने इस मंदिर को कई बार तहस-नहस किया था. औरंगजेब के आदेश पर इसे ढहा दिया गया था. आजादी के बाद इसका दोबारा पुनर्निर्माण हुआ था.
11 मई 1951 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इस मंदिर में ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया था. तब नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद के कार्यक्रम में शामिल होने पर आपत्ति जताई थी. साथ ही नेहरू ने इस कार्यक्रम में शामिल होने से साफ मना कर दिया था. नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद को चिट्ठी लिखकर मामले में नाराजगी जताई थी. साथ ही उनसे यह भी कहा था कि वह भी कार्यक्रम में शिरकत नहीं करें. बीजेपी अब इस मुद्दे को जोर से उठा रही है.
नेहरू ने प्रसाद को लिखी थी चिट्ठी
सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम से करीब तीन महीने पहले पंड़ित नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति को 13 मार्च 1951 को लिखी गई थी. उन्होंने लिखा था- अगर आपको लगता है कि निमंत्रण अस्वीकार करना आपके लिए सही नहीं होगा तो मैं दबाव नहीं डालूंगा. नेहरू ने लिखा था कि प्रसाद की सोमनाथ मंदिर यात्रा राजनीतिक महत्व ले रही है. यह सरकारी कार्यक्रम नहीं है. लिहाजा, उन्हें इसमें नहीं जाना चाहिए.
तब नेहरू नहीं चाहते थे कि राष्ट्रपति पद पर रहते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद किसी धार्मिक कार्यक्रम का हिस्सा बनें. नेहरू को लगता था कि इससे जनता में गलत मैसेज जा सकता है. इसी के चलते नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति को रोकने की कोशिश की थी. यह अलग बात है कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू की एक नहीं सुनी और सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए.
राजेंद्र प्रसाद ने चिट्ठी के जवाब में लिखी चिट्ठी
पंड़ित नेहरू ने इसको लेकर राजेंद्र प्रसाद को चिट्ठी लिखी, जिसके जवाब में डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी पत्र लिखा. प्रसाद ने अपने पत्र में लिखा, 'मैं अपने धर्म को बहुत मानता हूं और इससे खुद को अलग नहीं कर सकता. फिर न केवल वह उद्घाटन में शामिल हुए. अलबत्ता कार्यक्रम के अनुसार, शिवलिंग की स्थापना भी की. तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव रखा था. इसे लेकर उन्होंने महात्मा गांधी को पत्र लिखा था. गांधी ने इस प्रस्ताव की सराहना की थी. लेकिन, शर्त रखी थी कि इसमें सरकारी धन खर्च नहीं होना चाहिए. पटेल ने इस शर्त का अक्षरश: पालन किया था.