दिल्ली की वो 11 सीटें जहां बीजेपी कभी नहीं खोल पाई खाता, लाख कोशिश कर ली पर जनता नकारती रही..
दिल्ली में 11 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी को आज तक जीत का इंतजार है. यह वे सीटें हैं, जहां पर मुस्लिम और दलित वोट बड़ी संख्या में है. मुस्लिम बहुल सीटें होने के चलते ये बीजेपी के लिए बंजर बनी हुईं हैं. दिल्ली चुनाव में इस बार भी भाजपा को इन सीटों पर जीत का इंतजार है. बीजेपी जनता को लुभाने में कितना सफल रही है. इसका पता 8 फरवरी को ही चलेगा.

दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इस बार हर संभव प्रयास किया है और एग्जिट पोल में पार्टी की मेहनत रंग लाती हुई नजर आ रही है. दिल्ली में बीजेपी की सत्ता में वापसी की संभावना दिख रही है. इस चुनावी दौड़ में बीजेपी 27 सालों से जारी सत्ता के वनवास को समाप्त करने की स्थिति में दिख रही है. हालांकि, यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या बीजेपी उन 11 विधानसभा सीटों पर भी जीत हासिल कर सकेगी, जहां कभी भी उसका 'कमल' नहीं खिला?
दिल्ली की 11 सीटें: जहां कभी नहीं जीत पाई बीजेपी
दिल्ली में 1993 से लेकर 2020 तक सात विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. 2025 में आठवां चुनाव हुआ है. बीजेपी ने सिर्फ एक बार 1993 में दिल्ली में सरकार बनाई थी, लेकिन 11 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी कभी जीत नहीं सकी. इन सीटों में बड़ी संख्या में मुस्लिम और दलित वोटर हैं. इन इलाकों में बीजेपी का प्रभाव हमेशा कम रहा है.
बीजेपी की चुनौती: दलित और मुस्लिम वोट बैंक
दिल्ली में 11 ऐसी सीटें हैं जिन पर बीजेपी कभी भी जीत हासिल नहीं कर सकी. इनमें से कुछ सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, जैसे की कोंडली, अंबेडकर नगर, मंगोलपुरी, सुल्तानपुर माजरा और देवली. इसके अलावा मुस्लिम बहुल सीटें जैसे ओखला, मटिया महल, सीलमपुर, बल्लीमारान और जंगपुरा भी बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण रही हैं. इन सीटों पर मुस्लिम और दलित वोट बैंक के सियासी समीकरण बीजेपी के लिए हमेशा कड़ी परीक्षा साबित हुए हैं.
लोकसभा चुनाव के परिणाम और बीजेपी की स्थिति
दिल्ली में 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सातों सीटें जीतने में सफलता हासिल की थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए कठिनाई बनी रही. 18 विधानसभा सीटों पर विपक्षी दलों से बीजेपी को कम वोट मिले थे, इनमें वही सीटें भी शामिल थीं जहां बीजेपी को कभी जीत नहीं मिली. इन सीटों में सीमापुरी, अंबेडकर नगर, सुल्तानपुर माजरा, ओखला, मटिया महल, सीलमपुर, बल्लीमारान और जंगपुरा सीटें थीं. इन सीटों पर बीजेपी को विपक्ष से ज्यादा वोट नहीं मिल पाए थे, जिन पर बीजेपी ने अब तक कभी जीत हासिल नहीं की थी.
बीजेपी की रणनीति: दलित और मुस्लिम सीटों पर क्या बदल सकता है?
बीजेपी के लिए यह सीटें एक बड़ी चुनौती बनी हुई हैं. पार्टी ने इन सीटों पर अपना फोकस बढ़ाया और जीतने के लिए नए तरीके अपनाए. पार्टी ने दलित वोटों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपने दलित नेताओं को इन क्षेत्रों में सक्रिय किया. पार्टी के नेता और कार्यकर्ता प्रबुद्ध लोगों, आरडब्ल्यूए के सदस्यों, मंदिरों के पुजारियों और अन्य संस्थाओं के साथ बैठक कर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे थे.
वहीं, मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी ने एक नया दांव खेला. ओखला, मटिया महल, सीलमपुर और बल्लीमारान जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को न उतारते हुए हिंदू प्रत्याशी खड़े किए. इस तरह बीजेपी ने मुस्लिम बनाम मुस्लिम की लड़ाई में हिंदू दांव चलकर सियासी समीकरण को बदलने की कोशिश की. इसके अलावा, AIMIM के प्रचार को भी बीजेपी के पक्ष में एक कारक के रूप में देखा जा सकता है.
क्या बीजेपी के लिए ये चुनावी दांव सफल होंगे?
बीजेपी का उद्देश्य दिल्ली की सत्ता में वापसी के साथ ही उन 11 सीटों पर भी कमल खिलाना है जहां पार्टी को कभी जीत नहीं मिली. पार्टी ने दलित और मुस्लिम वोटबैंक को साधने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाई है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी की यह रणनीति इन सीटों पर सफल होगी और पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनावों में जीत का परचम लहराने में कामयाब हो सकेगी.