क्या ममता सरकार धो पाएगी मुर्शिदाबाद हिंसा के दाग? जानें पीड़ितों की दर्दनाक दास्तान
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ संशोधन कानून के विरोध में हुई हिंसा की भयावहता राष्ट्रीय महिला आयोग और राज्यपाल के दौरे के बाद उजागर हुई. पीड़ितों ने अपनी दर्दनाक कहानी साझा की, जिससे स्पष्ट हुआ कि राज्य सरकार हिंसा रोकने में नाकाम रही, और लोग शरणार्थी बन गए.

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ संशोधन कानून के विरोध के नाम पर हाल ही में हिंसा भड़क गई. अब धीरे-धीरे इस हिंसा की असली तस्वीर सामने आ रही है. पहले जितनी जानकारी मिल रही थी, उससे स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगाना मुश्किल था. लेकिन जब राज्यपाल सीवी आनंद बोस और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने हिंसा पीड़ितों से बात की, तो सामने आई बातें बेहद चौंकाने वाली थीं.
इस हिंसा ने कई लोगों को ऐसा नुकसान पहुंचाया कि वे अपने ही राज्य में शरणार्थी जैसे बनकर रह गए हैं. राज्य सरकार इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकती कि वह मुर्शिदाबाद में हिंसा रोकने में पूरी तरह नाकाम रही. इतना ही नहीं, सरकार ने राज्यपाल को पीड़ितों से मिलने से भी मना किया था. लेकिन राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने सरकार की बात नजरअंदाज की और राहत शिविरों में रह रहे लोगों से खुद जाकर मिले.
"हमें सिर्फ सुरक्षा चाहिए" – पीड़ितों की अपील
राज्यपाल से बातचीत के दौरान पीड़ितों ने कहा कि उन्हें सिर्फ एक सुरक्षित माहौल चाहिए. राज्यपाल ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनकी बातें केंद्र और राज्य सरकार के सामने रखी जाएंगी. उन्होंने पीड़ितों को अपना फोन नंबर भी दिया ताकि वे किसी भी समय संपर्क कर सकें.
महिला आयोग भी रह गया हैरान
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर और उनकी टीम ने पीड़ितों से मुलाकात की. वहां उन्होंने जो हालात देखे, उससे वो भी हैरान रह गईं. कई महिलाओं ने बताया कि उनके पति या बेटे मारे गए. किसी को घर से खींचकर बेरहमी से मारा गया. विजया रहाटकर ने कहा, "मैं निशब्द हूं, उनके दुख को बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं."
सरकार की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए
NCW की सदस्य अर्चना मजूमदार ने भी इस हिंसा को अमानवीय और बेहद खतरनाक बताया. उन्होंने साफ कहा कि सरकार को इस हिंसा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए.
ममता सरकार सवालों के घेरे में
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस हिंसा को "साजिश" बता रही हैं, लेकिन सवाल ये है कि अगर ये साजिश थी तो उसे रोकना किसकी जिम्मेदारी थी? सरकार दंगाइयों को रोकने में पूरी तरह विफल रही. इस बार लोगों को अपने घरों से बेदखल होना पड़ा, ये किसी भी सरकार के लिए बहुत बड़ी असफलता है.
लोग मांग रहे BSF से सुरक्षा
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिन बीएसएफ (BSF) पर ममता सरकार सवाल उठा रही थी, आज वही पीड़ित लोग BSF से स्थायी सुरक्षा की मांग कर रहे हैं. इससे साफ है कि लोगों को राज्य की पुलिस पर भरोसा नहीं रहा.


