क्या अब दोषी सांसदों/विधायकों पर आजीवन प्रतिबंध लगेगा? सुप्रीम कोर्ट ने जांच पर सहमति जताई

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह संसद और राज्य विधानसभाओं के दोषी सदस्यों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग पर विचार करेगा और इस पर विस्तृत सुनवाई करेगा. फिलहाल, दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों पर केवल छह साल के प्रतिबंध का प्रावधान है

Suraj Mishra
Edited By: Suraj Mishra

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह संसद और राज्य विधानसभाओं के दोषी सदस्यों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग पर विचार करेगा और इस पर विस्तृत सुनवाई करेगा. फिलहाल, दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों पर केवल छह साल के प्रतिबंध का प्रावधान है, जो उस दिन से लागू होता है जब दोषी अपनी सजा पूरी करता है.

अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई

अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार से नए सिरे से जवाब मांगा है. कोर्ट ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से भी सहायता लेने का निर्णय लिया है. आगामी सुनवाई 4 मार्च को होगी.

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता का अहम बयान

न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने सुनवाई के दौरान कहा, "अगर एक सरकारी कर्मचारी, जैसे कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, किसी गंभीर अपराध में दोषी ठहराया जाता है, तो उसे उसकी नौकरी से निकाला जा सकता है, लेकिन एक सांसद या विधायक दोषी होने के बावजूद फिर से चुनाव लड़ सकता है और मंत्री भी बन सकता है. हम जन प्रतिनिधि कानून की धारा 8 और 9 की जांच करेंगे।" इस बयान से यह साफ हुआ कि कोर्ट इस मामले में गहरी छानबीन करना चाहता है.

राजनीति और अपराधीकरण का मुद्दा

यह याचिका जनहित में दायर की गई थी, जिसमें तर्क दिया गया कि सरकारी कर्मचारियों पर अपराध सिद्ध होने के बाद आजीवन प्रतिबंध लगा दिया जाता है, जबकि राजनेताओं के लिए यह प्रतिबंध केवल छह साल का होता है. इससे पहले, 2020 में केंद्र सरकार ने हलफनामे के जरिए यह विचार खारिज किया था कि दोषी व्यक्तियों को आजीवन चुनाव लड़ने या किसी राजनीतिक दल का सदस्य बनने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. चुनाव आयोग ने इस विचार का समर्थन किया था, लेकिन सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया था.

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और चुनाव आयोग

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत, दोषी ठहराए गए नेताओं को छह साल तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाता है. इस समय लगभग 5,000 मामले सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया, जो इस मामले में एमिकस क्यूरी हैं, ने अदालत से इस पर विचार करने की अपील की और कहा कि यह मुद्दा राजनीति के अपराधीकरण से जुड़ा है, क्योंकि कुछ दोषी नेता राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के अध्यक्ष बन सकते हैं.

कोर्ट की टिप्पणी और आगे की कार्रवाई

अधिवक्ता सिद्धांत कुमार ने भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) का प्रतिनिधित्व करते हुए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 और 9 को चुनौती देने के लिए अदालत से अनुमति मांगी. अदालत ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए कहा कि राजनीति का अपराधीकरण एक गंभीर मुद्दा है और चुनाव आयोग को इस पर बेहतर समाधान प्रस्तुत करना चाहिए. कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि वह इस मुद्दे पर व्यापक निर्णय पारित करेगा.

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10 February 2025, 05:59 PM IST

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