1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने 6-1 बहुमत से ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुसूचित जातियां सामाजिक रूप से समरूप वर्ग नहीं हैं और राज्यों द्वारा उनमें से कम सुविधा प्राप्त लोगों को आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से उन्हें उप-वर्गीकृत किया जा सकता है. इस फैसले को चार जजों का समर्थन मिला था. इस फैसले के कुछ दिनों बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने SC के फैसले को खारिज कर दिया है. शुक्रवार भाजपा सांसदों की प्रधानमंत्री से मुलाकात के कुछ घंटों बाद कैबिनेट ने कहा, संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.
वहीं केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने शुक्रवार रात मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णयों के बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण के संबंध में जो फैसला सुनाया गया था और जो सुझाव दिया था उसपर मंत्रिमंडल में विस्तृत चर्चा हुई हैं. उन्होंने आगे कहा कि, एनडीए सरकार बीआर अंबेडकर द्वारा बनाए संविधान के प्रति कटिबद्ध है और उनका कहना है कि, इस संविधान के अनुसार एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है.
अगस्त महीने के पहले दिन मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की सात जजो की बेंच ने बीते हफ्ते 6:1 के बहुमत वाले फैसले में SC/ST के कोटे में आरक्षण दिए जाने को मंजूरी दी थी. कोर्ट के इस फैसले के बाद एससी और एसटी की जातियों के इसी 22.5 फीसदी के आरक्षण में ही राज्य सरकारें एससी और एसटी के कमजोर वर्गों का अलग से कोटा तय कर सकेंगी. इस दौरान कोर्ट ने कहा था कि, SC/ST कैटगरी के भीतर नई सब कैटगरी बना सकते हैं और इसके तहत पिछड़े तबके को अलग से आरक्षण दे सकते हैं. बता दें कि, देश में अबी SC जाती को 15 फीसदी और ST को 7.5 फीसदी आरक्षण मिलता है.
First Updated : Saturday, 10 August 2024