Wedding Tradition: यूपी में शादी की ऐसी अजीबो-गरीब रस्‍में देख चौंक जाएंगे आप, जरूर जानें क्‍यों करते हैं ऐसा

Wedding Tradition: देश में शादी सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि दो आत्माओं के मिलन का खूबसूरत बंधन माना जाता है. कहा जाता है कि शादी दो परिवारों के मिलन और एक स्थायी बंधन का उत्सव भी है. ऐसे में इंडियन वेडिंग इतनी रंगीन होती है कि दुनियाभर के लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं. ऐसे में लोग वेडिंग को शानदार बनाने के लिए खूब खर्च करते हैं.

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Wedding Tradition: भारत में शादी सिर्फ एक समारोह नहीं, बल्कि दो आत्माओं के मिलन का खूबसूरत बंधन मानी जाती है. यह दो परिवारों के जुड़ने और एक स्थायी रिश्ते की शुरुआत का उत्सव होता है. भारतीय शादियां इतनी रंगीन और धूमधाम से होती हैं कि दुनिया भर के लोग इनकी ओर आकर्षित होते हैं. शादी को खास बनाने के लिए लोग अच्छे से अच्छे कार्ड, मंडप, दूल्हा-दुल्हन की एंट्री, और शानदार दावत तक पर खर्च करते हैं.

भारतीय शादियों में हर रस्म का अपना एक खास मतलब होता है. शादी के दिन होने वाली रस्मों के अलावा कुछ अन्य रस्में भी होती हैं, जो शादी का अहम हिस्सा होती हैं. इन रस्मों का सिलसिला शादी से कई दिन पहले ही शुरू हो जाता है. यूपी के कुछ गांवों में तो शादी की ऐसी अनोखी रस्में निभाई जाती हैं, जो सुनने में थोड़ी अजीब लग सकती हैं, लेकिन इन गांवों में ये परंपराएं बहुत मायने रखती हैं. आइए, जानते हैं कुछ ऐसी ही अनोखी रस्मों के बारे में.

बलिया के नरहीं गांव की खास परंपरा

यूपी के बलिया जिले के नरहीं गांव में एक अनोखी शादी की परंपरा है. यहां, चाहे किसी भी घर में शादी हो, गांव के हर घर में दही जमाया जाता है. यह परंपरा कुछ इस तरह से होती है कि शादी वाले घर से पूरे गांव के लोगों को एक-एक मिट्टी का पात्र दिया जाता है, जिस पर शादी की तारीख और नाम लिखा होता है. फिर, हर घर में लोग उसी पात्र में दही जमाते हैं और शादी की शाम, ये दही सैकड़ों पात्रों में भरकर शादी के घर भेजा जाता है. चाहे रिश्ते अच्छे हों या नहीं, लेकिन दही भेजने की परंपरा कोई भी नहीं भूलता. इस अनोखी परंपरा से गांव के लोग एक दूसरे से जुड़े रहते हैं और सामाजिक ताने-बाने को मजबूत बनाए रखते हैं.

प्रयागराज में दिव्यांगों की सामूहिक शादी

प्रयागराज में पिछले पंद्रह सालों से एक अनोखा सामूहिक विवाह आयोजन हो रहा है, जिसमें दिव्यांग लोगों की शादी एक साथ की जाती है. इस शादी में दुल्हन बग्घी पर बैठकर बारात लाती है और समारोह में खाने-पीने की कोई कमी नहीं होती. यह पहल समाज में दिव्यांगों के लिए प्यार और सम्मान का संदेश देती है.

जूता चुराई की रस्म

शादी में एक और मजेदार परंपरा होती है जिसे "जूता चुराई" कहा जाता है. इस रस्म में दुल्हन की बहनें (सालियां) दूल्हे का जूता चुराने की कोशिश करती हैं, और दूल्हे के दोस्त और भाई जूते को बचाने की कोशिश करते हैं. इस रस्म के दौरान, दूल्हा तब तक जूते वापस नहीं पा सकता जब तक वह सालियों को शगुन के रूप में पैसे या गिफ्ट नहीं देता. यह रस्म शादी में हंसी-खुशी का माहौल बनाती है.

अंगूठी ढूंढने की रस्म

शादी के बाद, दूल्हा-दुल्हन के घर में एक और रस्म होती है जिसे "अंगूठी ढूंढना" कहते हैं. इस रस्म में एक बड़े बर्तन में दूध, हल्दी, गुलाब की पंखुड़ियां, केसर और पानी मिलाकर रखा जाता है. फिर, उसमें अंगूठी डाली जाती है और दूल्हा-दुल्हन को उस अंगूठी को ढूंढना होता है. यह रस्म शादी के बाद दूल्हा-दुल्हन के रिश्ते को मजबूत करने के लिए मानी जाती है.

पूर्वजों की पूजा

उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में शादी के बाद, रात को पूर्वजों की पूजा करने की परंपरा होती है. इसमें दूल्हे से जूते, गोबर जैसी चीजों की पूजा करवाई जाती है, जिसे शुभ माना जाता है. इसे इस विश्वास के साथ किया जाता है कि इससे दूल्हा-दुल्हन की शादीशुदा जिंदगी खुशहाल और समृद्ध रहती है. इन परंपराओं और रस्मों के जरिए भारतीय शादियां अपनी अलग ही पहचान बनाती हैं. ये न केवल शादी को खास बनाती हैं, बल्कि परिवार और समाज के रिश्तों को भी मजबूत करती हैं. First Updated : Wednesday, 13 November 2024