'श्रीलंका अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होने देगा', दिसानायके ने एक बार फिर पीएम मोदी को दिलाया भरोसा
प्रधानमंत्री मोदी की वर्तमान यात्रा के दौरान भारत और श्रीलंका ने पहली बार एक महत्वाकांक्षी रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. यह रक्षा समझौता रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है और यह भारतीय शांति सेना द्वारा द्वीप राष्ट्र में हस्तक्षेप के लगभग चार दशक बाद हुआ है.

श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता में एक बार फिर कहा कि श्रीलंका भारत के खिलाफ अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं होने देगा. श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने यह टिप्पणी ऐसे समय की है, जब दोनों देशों के संबंधों में गिरावट देखी गई है. दरअसल, अगस्त 2022 में हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनी मिसाइल और उपग्रह ट्रैकिंग जहाज 'युआन वांग' के डॉकिंग के बाद नई दिल्ली और कोलंबो दोनों ही आमने-सामने थे. अगस्त 2023 में एक और चीनी युद्धपोत कोलंबो बंदरगाह पर पहुंचा था.
भारत और श्रीलंका ने रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए
प्रधानमंत्री मोदी की वर्तमान यात्रा के दौरान भारत और श्रीलंका ने पहली बार एक महत्वाकांक्षी रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. यह रक्षा समझौता रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है और यह भारतीय शांति सेना द्वारा द्वीप राष्ट्र में हस्तक्षेप के लगभग चार दशक बाद हुआ है. यह रक्षा समझौता श्रीलंका में चीन की बढ़ते दखल के बाद भारत की चिंताओं के मद्देनजर किया गया है.
श्रीलंका को हुआ गलती का अहसास
बता दें कि श्रीलंका में चीन का लगातार दखल बढ़ रहा था, पिछले कुछ सालों में बीजिंग लगातार भारत को उकसाने की कार्रवाई कर रहा था. चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगास से भारत की जासूसी के लिए अपने सबसे आधुनिक जासूसी जहाजों को तैनात किया. इसके बाद भारत और श्रीलंका के रिश्तों में गिरावट देखने को मिली. हालांकि, बाद में श्रीलंका ने अपनी गलती में सुधार करते हुए कहा था कि श्रीलंका की जमीन का इस्तेमाल भारत की सुरक्षा में सेंध लगाने के खिलाफ नहीं करने देगा. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि श्रीलंका जब संकट के दौर से गुजर रहा था, तब भारत ने भारी संख्या में आर्थिक और मानवीय सहायता की थी.
मुसीबत में साथी बना भारत
भारत ने यह मदद ऐसे समय की, जब श्रीलंका में आर्थिक संकट आया था. बीजिंग और वर्ल्ड बैंक समेत कई वैश्विक संस्थाओं ने कोलंबो की सहायता करने से इनकार कर दिया था. श्रीलंका में लोग अपनी ही सरकार के खिलाफ सड़कों पर आ गए. कीमतें आसमान छूने लगीं थी. लोग त्राहिमाम कर रहे थे. इस बीच भारत सरकार ने श्रीलंका को फौरी तौर पर आर्थिक सहायता भेजी. इसके बाद लगातार मानवीय मदद भी पहुंचाई गई.
क्या बीजिंग के प्रभाव से मुक्त हुआ श्रीलंका?
हाल के वर्षों में बीजिंग ने बेल्ट एंड रोड वैश्विक विकास कार्यक्रम के लिए अपने आक्रामक प्रयास के माध्यम से देश में अपना प्रभाव डाला है. चीन को कभी श्रीलंका में अपने मुफ्त ऋण और बुनियादी ढांचे के निवेश के कारण बढ़त हासिल थी. हाल में भारत और श्रीलंका के बीच कुछ अहम समझौते हुए हैं, जिससे एक बार फिर दोनों देशों के रिश्तों में सुधार देखने को मिल रहा है.