Bangladesh: बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर जारी हिंसा के बीच सरकार का तख्तापलट हो चुका है. प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा देने के बाद देश छोड़ दिया है. वहीं देश की कमान अब सेना का हाथों में है. इस बीच आज हम आपको बताएंगे ऐसे क्या हालात रहे की शेख हसीना को देश छोड़कर दूसरे देश की शरण लेनी पड़ी. कहानी यह है कि बीते दिन सोमवार को बांग्लादेश में संकट ढाका के आस-पास तक ही केंद्रित था और स्थिति तेजी से बिगड़ती जा रही थी. इस दौरान लाखों की संख्या में प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास गोनोबोबोन की ओर बढ़ रहे थे, उनकी एक ही मांग थी, प्रधानमंत्री शेख हसीना का इस्तीफा.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, प्रदर्शनकारियों की भीड़ तेज़ी से आगे बढ़ रही थी, इसलिए अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि वे हसीना के घर से सिर्फ़ 45 मिनट की दूरी पर हैं. ऐसे में शेख हसीना को एक मुश्किल फैसला करना थ. क्या उन्हें अपने नजदीकी लोगों की सलाह माननी चाहिए और अपने लोगों पर बल प्रयोग करने से बचना चाहिए या फिर भाग जाना चाहिए? इस बीच 2009 से बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज हसीना ने आखिरकार सत्ता छोड़ने का फैसला किया. लेकिन इस फैसले से पहले उन्हें कई घंटों तक मनाने, फोन कॉल और बैठकों का दौर चला.
यह बांग्लादेश में शेख हसीना के आखिरी घंटों, दुविधा, हालातों और अंतिम फैसले की कहानी है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें भारत भागना पड़ा. ढाका स्थित समाचार पत्र प्रथम आलो की रिपोर्ट के अनुसार, बल प्रयोग या अन्य तरीकों से सत्ता बरकरार रखने के प्रयास में शेख हसीना अंत तक अपने हालात पर कायम रहीं. रिपोर्ट के अनुसार, देश से भागने से पहले उसने सोमवार को सुबह 10:30 बजे से लगभग एक घंटे तक विभिन्न कानून प्रवर्तन और रक्षा बलों के टॉप अधिकारियों पर भारी दबाव बनाया. हालांकि, उस समय तक, गोनोभोबोन की ओर जाने वाली ढाका की सड़कें देश के इतिहास में शायद अब तक देखी गई सबसे बड़ी भीड़ से भर चुकी थीं.
रविवार को कम से कम 98 बांग्लादेशियों की दुखद हत्या के बाद छात्र नेताओं ने एक दिन पहले ही गोनोभोबोन पर धावा बोलने की कसम खा ली थी. इस दौरान शेख हसीना ने सुरक्षा बलों से अधिक बल प्रयोग करने का आग्रह किया. पिछले तीन सप्ताह से शेख हसीना भारी आर्म्स फोर्स और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं का उपयोग करने के बावजूद छात्र-नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों और बड़े सार्वजनिक अशांति को दबाने में असमर्थ रही हैं.
इस बीच कई स्रोतों का हवाला देते हुए, प्रथम अलो की रिपोर्ट में शेख हसीना के इस्तीफे से पहले के अंतिम चार घंटों और अंततः भारत जाने की सलाह दी गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, कुछ अवामी लीग नेताओं ने, जिनमें उनके एक शीर्ष सहयोगी भी शामिल थे, रविवार रात उन्हें सत्ता सेना को ट्रांसफर करने के लिए मनाने की कोशिश की. हालांकि , उस समय वह सलाह स्वीकार करने में राजी नहीं थी. इसके बजाय, हसीना ने सोमवार से और कड़ा कर्फ्यू लगाने का आदेश दे दिया, जिसके तहत बांग्लादेश में इंटरनेट सेवाओं सहित सभी चीजें बंद कर दी गईं.
यह घटना उस दिन के बाद हुई जब बांग्लादेश में अराजकता फैल गई थी और सुरक्षाकर्मी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे थे. भोर में कर्फ्यू लागू करने के प्रयासों के बावजूद, प्रदर्शनकारियों ने सुबह 9 बजे तक विभिन्न स्थानों पर इसका उल्लंघन करना शुरू कर दिया. एक घंटे बाद, लाखों लोग ढाका की सड़कों और गलियों में उतर आए थे. विभिन्न एजेंसियों के उच्च स्तरीय सूत्रों ने प्रथम अलो को बताया कि सुबह करीब 10.30 बजे तीनों सैन्य बलों, सेना, नौसेना और वायु सेना के प्रमुखों और पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) को प्रधानमंत्री के निवास गोनोभोबोन में बुलाया गया.
इस दौरान शेख हसीना ने हालात को कंट्रोल करने में सुरक्षा बलों की असमर्थता पर निराशा जाहिर की तथा सवाल किया कि वे उन प्रदर्शनकारियों के साथ सख्त क्यों नहीं थे जो कानून प्रवर्तन और सैन्य वाहनों पर चढ़ रहे थे और उन पर रंग पोत रहे थे. उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने इन अधिकारियों पर भरोसा किया था और उन्हें शीर्ष पदों पर नियुक्त किया था. ऐसे में पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) ने तब उन्हें बताया किहालात इतने बिगड़ चुके है कि पुलिस के लिए लंबे समय तक इतना सख्त रुख बनाए रखना संभव नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि शीर्ष अधिकारियों ने समझाने की कोशिश की कि स्थिति को केवल बल से नियंत्रित नहीं किया जा सकता, लेकिन शेख हसीना इसे मानने को तैयार नहीं थीं.
इस दौरान यह देखते हुए कि वे हसीना को हालात की गंभीरता नहीं समझा सके, कुछ अधिकारियों ने उनकी छोटी बहन रेहाना से एक अलग कमरे में मुलाकात की. उन्होंने रेहाना से स्थिति की गंभीरता से हसीना को अवगत कराने का आग्रह किया, जिसके बाद रेहाना ने अपनी बड़ी बहन से बात की, लेकिन फिर भी शेख हसीना अडिग और असंतुष्ट बनी रही. इसके बाद एक सीनियर ऑफिसर हसीना के बेटे साजिद वाजेद जॉय से भी बात की, जो विदेश में रहते हैं, लेकिन बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के आधिकारिक सलाहकार हैं. रिपोर्ट के अनुसार, जॉय ने इसके बाद अपनी मां हसीना से बात की, जिसके बाद वह इस्तीफा देने के लिए सहमत हो गईं.
First Updated : Tuesday, 06 August 2024