नेस्ले विवाद के बाद स्विटजरलैंड ने भारत से छीना 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' का दर्जा, जानें क्या होगा असर

स्विट्जरलैंड ने नेस्ले विवाद के बाद भारत का 'सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र' का दर्जा रद्द कर दिया है. इस कदम से भारतीय कंपनियों पर स्विट्जरलैंड में टैक्‍स का बोझ बढ़ेगा. भारत ने कोलंबिया और लिथुआनिया के साथ कर संधियों पर हस्ताक्षर किए थे, जो कुछ तरह की आय पर कम कर दरें प्रदान करती थीं

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

स्विट्जरलैंड ने नेस्ले के खिलाफ अदालती फैसले के बाद भारत का मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा निलंबित कर दिया है. इससे स्विट्जरलैंड में काम करने वाली भारतीय कंपनियों पर टैक्स का बोझ बढ़ेगा. 1 जनवरी, 2025 से उन्हें ज्यादा टैक्स देना होगा. यह फैसला भारत और स्विट्जरलैंड के बीच हुए दोहरे कराधान समझौते (डीटीएए) के एमएफएन प्रावधान को निलंबित करता है. स्विट्जरलैंड ने एक बयान जारी कर इस फैसले की जानकारी दी.

स्विट्जरलैंड के वित्त विभाग ने 11 दिसंबर को अपने एक बयान में MFN दर्जा वापस लेने की जानकारी देते हुए कहा कि यह कदम भारत के सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल आए एक फैसले के संदर्भ में उठाया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अगर किसी देश के 'आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन'(OECD) में शामिल होने से पहले भारत सरकार ने उस देश के साथ कर संधि पर हस्ताक्षर किए हैं तो MFN प्रावधान अपने-आप लागू नहीं होता है.

बढ़ जाएगा कर

भारत ने कोलंबिया और लिथुआनिया के साथ कर संधियों पर हस्ताक्षर किए थे, जो कुछ तरह की आय पर कम कर दरें प्रदान करती थीं. ये दोनों देश बाद में ओईसीडी का हिस्सा बन गए. स्विटजरलैंड ने 2021 में कहा था कि कोलंबिया और लिथुआनिया के ओईसीडी सदस्य बनने का मतलब है कि भारत-स्विट्जरलैंड कर संधि पर MFN प्रावधान के तहत लाभांश पर पांच प्रतिशत की दर ही लागू होगी, न कि समझौते में उल्लिखित 10 प्रतिशत की दर. हालांकि अब MFN का दर्जा हट जाने के बाद स्विट्जरलैंड एक जनवरी, 2025 से रिफंड का दावा करने वाले भारतीय कर निवासियों और विदेशी कर क्रेडिट का दावा करने वाले स्विस कर निवासियों के लिए लाभांश पर 10 प्रतिशत कर लगाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने क्‍या दिया था आदेश?

यह फैसला पिछले साल भारत के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद आया है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि डीटीएए को तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि इसे आयकर अधिनियम के तहत अधिसूचित न किया जाए. इस फैसले का मतलब था कि नेस्ले जैसी स्विस कंपनियों को लाभांश पर अधिक कर देना होगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को पलट दिया था. उस आदेश ने यह सुनिश्चित किया था कि विदेशी संस्थाओं में या उनके लिए काम करने वाली कंपनियों और व्यक्तियों पर दोहरा कराधान न हो.

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14 December 2024, 08:20 AM IST

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