कार्बन मोनोऑक्साइड गैस: साइलेंट किलर, जॉर्जिया में 11 भारतीयों की ले गई जान

Carbon monoxide gas: जॉर्जिया के एक रिसॉर्ट में 11 भारतीय नागरिकों की मौत हो गई. इन मौतों का कारण कार्बन मोनोऑक्साइड गैस बनी. इस गैस को न तो देखा जा सकता है, न ही सूंघा जा सकता है और न ही चखा जा सकता है. यह गैस सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंचकर खून में हीमोग्लोबिन से मिल जाती है, जिससे ऑक्सीजन का स्तर घटने लगता है. जिससे शरीर के अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है और व्यक्ति की मौत हो जाती है.

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Carbon monoxide gas: हाल ही में जॉर्जिया के गुडौरी स्थित एक रिसॉर्ट में 11 भारतीय नागरिकों की मौत हो गई. जांच में पता चला कि यह मौतें कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) गैस के कारण हुईं. अब सवाल उठता है कि यह गैस इतनी खतरनाक क्यों है? और क्यों वहां मौजूद लोगों को इसकी मौजूदगी का पता नहीं चला? हम यहां समझेंगे कि कार्बन मोनोऑक्साइड गैस कितनी खतरनाक होती है और इसका असर कैसे होता है.

कार्बन मोनोऑक्साइड क्या है?

कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) एक रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन गैस है, जो बिना किसी संकेत के शरीर में प्रवेश कर जाती है. यह गैस इंसान के शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति को रोक देती है. जब यह गैस फेफड़ों के जरिए शरीर में प्रवेश करती है, तो यह खून में मौजूद हीमोग्लोबिन से जुड़ जाती है, जिससे खून में ऑक्सीजन का स्तर घट जाता है. इसका असर तब शुरू होता है जब शरीर को जरूरी ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है.

यह गैस सीधे दिमाग और दिल पर असर डालती 

कार्बन मोनोऑक्साइड का प्रभाव सबसे पहले दिमाग और दिल पर होता है. इस गैस से संपर्क में आते ही व्यक्ति को सिरदर्द, चक्कर, थकान, और उलझन जैसी समस्याएं होने लगती हैं. गंभीर मामलों में यह गैस मौत का कारण भी बन सकती है. यह गैस खासतौर पर बंद जगहों में बहुत खतरनाक होती है, जैसे जनरेटर या फ्यूल वाले उपकरणों से निकलने वाली गैस. इसलिए, जॉर्जिया में 11 भारतीयों की मौत का कारण भी यही गैस थी. इस गैस को साइलेंट किलर कहा जाता है, क्योंकि इसका असर बिना किसी चेतावनी के होता है.

पहचान पाना क्यों मुश्किल है?

कार्बन मोनोऑक्साइड गैस को न तो देखा जा सकता है, न सूंघा जा सकता है और न ही चखा जा सकता है. इसका गंधहीन होना इसे और भी ज्यादा खतरनाक बना देता है. दूसरी ओर, जैसे नेचुरल गैस में हम हाइड्रोजन सल्फाइड या मर्कैप्टन जैसी गंध डालते हैं ताकि गैस लीक होने पर उसका पता चल सके, लेकिन कार्बन मोनोऑक्साइड में ऐसी कोई गंध नहीं होती. इस वजह से, लोग इसे पहचान नहीं पाते और इसके संपर्क में आ जाते हैं.

कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर

कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर पार्ट्स पर मिलियन (ppm) में मापा जाता है. 1 से 70 ppm के स्तर तक इसके प्रभावों का कोई खास असर नहीं दिखता, लेकिन जैसे ही यह 150 से 200 ppm तक पहुंचता है, यह व्यक्ति के लिए जानलेवा हो सकता है. इस स्तर पर व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ, चक्कर आना, और गंभीर सिरदर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं, और यदि समय रहते इलाज न मिले तो मौत भी हो सकती है.

सर्दियों में क्यों ज्यादा मौतें होती हैं?

सर्दियों में लोग गर्म रहने के लिए बंद कमरे में हीटर, अंगीठी, या फ्यूल से चलने वाले उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे कार्बन मोनोऑक्साइड गैस का खतरा बढ़ जाता है. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, ठंड में लोग इन उपकरणों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, जिससे गैस का स्तर बढ़ जाता है. उदाहरण के लिए, अगर अंगीठी कमरे में जलती छोड़ दी जाए, तो उसकी गैस से कमरे में कार्बन मोनोऑक्साइड भर सकती है, और कई बार लोग सोते समय इसके संपर्क में आकर अपनी जान गंवा देते हैं.

पर्यावरण पर असर

हालांकि कार्बन मोनोऑक्साइड का सीधा असर पर्यावरण पर नहीं होता, यह अप्रत्यक्ष रूप से क्लाइमेट चेंज पर असर डालती है. यह गैस वायुमंडल में रासायनिक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न करती है, जो ओजोन गैस बनाती हैं. ओजोन गैस क्लाइमेट चेंज के लिए जिम्मेदार एक प्रमुख गैस मानी जाती है. First Updated : Tuesday, 17 December 2024