खालिस्तानी प्रोपगेंडा ने तोड़ी साख! भारत से भिड़ने के बाद... क्या जल्द खत्म होगा ट्रूडो की कुर्सी का खेल?
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडोलिबरल पार्टी के नेता के पद से इस्तीफे दे सकते हैं. दरअसल, ट्रूडो ने लगातार खालिस्तानी राजनीति को बढ़ावा दिया, जिसके कारण उनकी साख कमजोर होती गई. महंगाई, बेरोजगारी जैसे अहम मुद्दों पर विपक्ष ने उन्हें घेर लिया, जबकि ट्रंप के निशाने पर भी वे लगातार रहे. इन चुनौतियों से जूझते हुए ट्रूडो को अपना पद छोड़ने का फैसला करना पड़ा.
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो आज अपनी कुर्सी छोड़ सकते हैं, जब यह खबर सामने आई, तो लोगों के साथ-साथ राजनीतिक जगत में हलचल मच गई. रिपोर्ट के अनुसार, ट्रूडो कभी भी अपने लिबरल पार्टी के नेता के पद से इस्तीफा दे सकते हैं.
कनाडा के प्रमुख अखबार द ग्लोब एंड मेल ने बताया कि ट्रूडो लिबरल पार्टी के नेता के पद से हटने की योजना बना रहे हैं. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि वे कब इस्तीफे की घोषणा करेंगे, लेकिन संभावना है कि यह बुधवार को राष्ट्रीय कॉकस बैठक से पहले ये हो जाएगा.
2015 की ऐतिहासिक जीत से अब तक का सफर
ट्रूडो ने 2013 में लिबरल पार्टी के नेता का पद संभाला और 2015 में धुआंधार प्रचार करते हुए 338 में से 184 सीटें जीती. यह पार्टी के लिए ऐतिहासिक जीत थी, क्योंकि 2011 में पार्टी केवल 34 सीटें ही जीत सकी थी. इसके बाद, 2019 और 2021 के चुनावों में भी ट्रूडो ने जीत हासिल की, लेकिन उनकी लोकप्रियता और नीतियों पर पकड़ धीरे-धीरे कमजोर होती गई.
खालिस्तानी प्रोपगेंडा और भारत विरोधी गतिविधियां
जस्टिन ट्रूडो पर आरोप है कि उन्होंने कनाडा में खालिस्तानी तत्वों को बढ़ावा दिया और भारत विरोधी गतिविधियों को नजरअंदाज किया. भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को आपत्तिजनक तरीके से प्रदर्शित करने पर कनाडाई पुलिस चुप रही. कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हुए हमलों पर भी पुलिस ने कोई सख्त कार्रवाई नहीं की. ट्रूडो ने खुद स्वीकार किया था कि कनाडा में खालिस्तानी तत्व मौजूद हैं, लेकिन उन्हें सिख समुदाय का प्रतिनिधि नहीं बताया.
हरदीप सिंह निज्जर विवाद ने बिगाड़े रिश्ते
सितंबर 2023 में ट्रूडो ने संसद में भारत सरकार पर कनाडाई नागरिक और आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र के पास पर्याप्त कारण हैं. लेकिन ट्रूडो के इन आरोपों का अब तक कोई ठोस सबूत नहीं मिला.
इस विवाद के बाद दोनों देशों के संबंध बेहद खराब होते चले गए. भारत और कनाडा ने एक-दूसरे के अधिकारियों की संख्या कम की. कनाडा ने फास्ट-ट्रैक वीजा प्रक्रिया खत्म कर दी, जिससे भारतीय छात्रों को बड़ा नुकसान हुआ.
लोकप्रियता में गिरावट और आंतरिक विरोध
ट्रूडो की विवादित नीतियों और कमजोर प्रशासन ने उनकी लोकप्रियता को बुरी तरह प्रभावित किया. Ipsos सर्वे के अनुसार, 73% कनाडाई नागरिक चाहते थे कि ट्रूडो इस्तीफा दें. यहां तक कि लिबरल पार्टी के 43% समर्थक भी उन्हें नेता के रूप में नहीं देखना चाहते थे. कनाडा में महंगाई, बेरोजगारी, और ट्रूडो की टैक्स नीतियों से जनता नाराज थी.
लिबरल पार्टी में विद्रोह
दिसंबर 2024 में लिबरल पार्टी के दर्जनों सांसदों ने एक बैठक में सहमति जताई कि ट्रूडो को पद छोड़ देना चाहिए. पार्टी के 51 सांसदों ने स्पष्ट कर दिया कि ट्रूडो का समय अब खत्म हो गया है.
मंत्रिमंडल से इस्तीफों की लहर
2024 के आखिर के महीनों में ट्रूडो के मंत्रिमंडल में इस्तीफों की लहर देखी गई.
19 सितंबर: परिवहन मंत्री पाब्लो रोड्रिग्ज ने इस्तीफा दिया
20 नवंबर: अल्बर्टा के सांसद रैंडी बोइसोनॉल्ट ने इस्तीफा दिया
15 दिसंबर: आवास मंत्री सीन फ्रेजर ने इस्तीफे की घोषणा की
16 दिसंबर: उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने इस्तीफा दिया
जिस वजह से, इन इस्तीफों ने ट्रूडो की स्थिति को और कमजोर कर दिया