डेंजर में डॉलर! रिकॉर्ड टूटने का डर, अमेरिका में महंगाई पर भारत को लाभ कैसे?
US Dollar Crisis: मंदी से निपटने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व यानी अमेरिका के रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में बदलाव किए हैं. इसका असर देश ही नहीं दुनिया भर में देखने को मिल रहा है. यूरो पैसिफिक एसेट मैनेजमेंट के प्रमुख अर्थशास्त्री पीटर शिफ ने इसपर आशंका भी जताई है. जिसमें डॉलर के डाउन जाने की बात कही जा रही है. आइये इसका क्या असर हो सकता है?
US Dollar Crisis: अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने बाजार में मुद्रास्फीति से निपटने के लिए नियमित ब्याज दरों को बढ़ा दिया है. इसके बाद से घरेलू बाजार में हर चीज की कीमतों में स्थिरता को लेकर गंभीर चिंता पैदा हो गई है. इस बीच, यूरो पैसिफिक एसेट मैनेजमेंट के प्रमुख अर्थशास्त्री पीटर शिफ ने बड़ी गंभीर स्थितियों की ओर इशारा किया है. इकोनॉमिक्स टाइम के अनुसार, उन्होंने फेड की फ्यूचर के लिए बन रही रणनीति पर संदेह जताया है. शिफ के अनुसार, इसका असर डॉलर में पड़ेगा और ये डाउन भी जा सकता है.
बता दें दुनिया में ज्यादातर व्यापार डॉलर के मुकाबले ही होता है. इस कारण इसमें आने वाला उतार चढ़ाओ पूरी दुनिया को प्रभावित करता है. इसके साथ ही दुनिया भर के देशों में पड़े रिजर्व पर भी इसका अच्छा और बुरा प्रभाव पड़ता है. आयात और निर्यात के भाव बदल जाते हैं.
पीटर शिफ ने क्या कहा?
अर्थशास्त्री पीटर शिफ ने कहा कि अगर फेड समय रहते पर्याप्त कदम नहीं उठाया तो डॉलर संकट पैदा हो सकता है. शिफ के अनुसार, फेड की रणनीति में बदलाव से डॉलर इंडेक्स में परिवर्तन हो सकते हैं. 2025 तक अमेरिकी डॉलर की गिरावट जारी रह सकती है. ऐसा हुआ तो बड़ा आर्थिक संकट पैदा होगा और ब्याज दरें बढ़ेंगी. इसके बाद अमेरिकी डॉलर का भाव निचले स्तर तक गिर सकता है. ये हालात 2020 वाली स्थिती से भी बड़े हो सकते हैं.
क्या होगा असर?
अगर डॉलर के रेट गिरते हैं तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था नाजुक स्थिति में आ सकती है. उपभोक्ता कीमतों में तेजी से वृद्धि होगी. डॉलर की कमजोरी का असर घरेलू बाजार पर पड़ेगा और संयुक्त राज्य में विदेशों से आई वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाएंगी.
इससे फायदा किसे होगा?
कमजोर डॉलर का फायदा भी हो सकता है. इससे वो देश लाभ ले सकते हैं जो अमेरिका से भारी मात्रा में आयात करते हैं. क्योंकि, कमजोर अमेरिकी डॉलर की स्थिति अमेरिकी निर्यात को सस्ता बना देगी. इससे मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया (इसमें भारत भी शामिल है), ऑस्ट्रेलिया जैसे इलाकों के देश लाभ ले सकते हैं. इससे अमेरिकी निर्यात और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बढ़ सकता है. हालांकि, इसके पुख्ता असर काफी जटिल हैं.
रिकॉर्ड टूटने का डर
अभी भी अमेरिकी डॉलर में गिरावट देखी जा रही है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ये 2025 और उससे आगे भी जारी रह सकती है. इससे एक वित्तीय संकट का खतरा पैदा हो जाएगा. इससे पहले अमेरिकी डॉलर ने 2020 में रिकॉर्ड निचले स्तर को छुआ था. 2024 के अंत में इसके फिर से बड़ी गिरावट देखने को मिली थी.