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बाबा वेंगा भी नहीं बता पाई ये खौफनाक भविष्यवाणी, 2080 में दुनिया पर गहराने वाला है परमाणु संकट!

Nuclear Energy Crisis: बाबा वेंगा की कई भविष्यवाणियां अब तक सच साबित हो चुकी हैं, लेकिन आने वाला संकट इतना खतरनाक है कि शायद उनकी दृष्टि भी इससे चूक गई. यूरेनियम की घटती उपलब्धता और बढ़ती मांग ने दुनिया के बड़े देशों अमेरिका, चीन, ईरान और भारत को एक नए और भयावह मोड़ पर ला खड़ा किया है.

Shivani Mishra
Edited By: Shivani Mishra

Nuclear Energy Crisis: बुल्गारिया की मशहूर भविष्यवक्ता बाबा वेंगा ने दुनिया के कई बड़े हादसों की सटीक भविष्यवाणी की थी. लेकिन अब दुनिया जिस दिशा में बढ़ रही है, वह संकट इतना गहरा होता जा रहा है कि शायद बाबा वेंगा की दृष्टि भी इसे पूरी तरह पहचान नहीं पाई. उन्होंने कहा था कि साल 2025 से दुनिया का अंत शुरू हो जाएगा और मौजूदा हालातों को देखते हुए यह चेतावनी अब और भी भयावह लगने लगी है.

यूरेनियम एक ऐसा तत्व जो न केवल परमाणु हथियारों का आधार है बल्कि भविष्य की ऊर्जा जरूरतों का भी प्रमुख स्त्रोत बन चुका है. ये तेजी से दुर्लभ होता जा रहा है. अमेरिका, ईरान, चीन, रूस और भारत जैसे देश यूरेनियम पर निर्भर हैं, लेकिन अब इसके भंडार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. आने वाले वर्षों में यह संकट वैश्विक असंतुलन और संभावित युद्धों का कारण बन सकता है.

2050 तक यूरेनियम की भारी मांग

न्यूक्लियर एनर्जी एजेंसी और इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी की एक संयुक्त रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि अगर परमाणु ऊर्जा की मांग ऐसे ही बढ़ती रही तो यूरेनियम के भंडार 2080 तक खत्म हो सकते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, 2050 तक सभी देशों की परमाणु क्षमताओं में बढ़ोतरी की उम्मीद है, और ऐसे में यूरेनियम की मांग भी तीन गुना तक बढ़ सकती है.

यूरेनियम की खोज और खनन में भारी निवेश की आवश्यकता

1 जनवरी 2023 तक दुनिया में कुल 79,34,500 टन यूरेनियम संसाधन उपलब्ध बताए गए हैं, जिन्हें निकाला जा सकता है. लेकिन इस संसाधन को उपयोग में लाने के लिए नई खोज, खनन तकनीक और प्रोसेसिंग पर बड़ा निवेश जरूरी है. रेड बुक बताती है कि मौजूदा यूरेनियम को 40 से 260 डॉलर प्रति किलोग्राम की कीमत पर निकाला जा सकता है. इसे 'येलोकेक' यानी U3O8 के रूप में जाना जाता है.

कोविड के बाद बढ़ा यूरेनियम पर खर्च

कोविड-19 महामारी के बाद यूरेनियम की खोज और खनन में निवेश में बड़ी बढ़ोतरी हुई है. 2022 में यह खर्च 800 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया, और 2023 में प्रारंभिक आंकड़े इसे 840 मिलियन डॉलर तक बताते हैं. इसी अवधि में उत्पादन में 4% की बढ़ोतरी दर्ज की गई, और यह ट्रेंड आगे भी जारी रहने की उम्मीद है.

ऑस्ट्रेलिया बना यूरेनियम संसाधनों का केंद्र

ऑस्ट्रेलिया के पास दुनिया के 24% से 28% यूरेनियम संसाधन हैं, जिसमें से अधिकांश दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के ओलंपिक डैम डिपॉजिट में हैं. इस क्षेत्र में यूरेनियम का खनन तांबे के सह-उत्पाद के रूप में किया जाता है. कजाकिस्तान 2022 में दुनिया का सबसे बड़ा यूरेनियम उत्पादक रहा, जो कुल वैश्विक उत्पादन का 43% था.

मुट्ठीभर देशों के हाथों में यूरेनियम का नियंत्रण

2022 में दुनिया का 90% यूरेनियम केवल छह देशों कजाकिस्तान, कनाडा, नामीबिया, ऑस्ट्रेलिया, उज्बेकिस्तान और रूस में उत्पादित हुआ. भारत, चीन और नाइजर भी इस सूची में शामिल हैं, जिससे साफ है कि दुनिया के अधिकांश यूरेनियम संसाधन कुछ ही देशों के हाथों में केंद्रित हैं. हाल ही में चीन, तुर्की और अमेरिका में नए भंडार मिलने की खबरें सामने आई हैं.

यूरेनियम संवर्धन और परमाणु हथियार निर्माण

U-235 को 90% तक समृद्ध करने पर 20 किलोग्राम यूरेनियम एक परमाणु हथियार के लिए पर्याप्त होता है. इस प्रक्रिया में लगभग 20% सामग्री का नुकसान होता है. यूरेनियम संवर्धन के लिए पहले इसे गैस में बदला जाता है, फिर सेंट्रीफ्यूज के जरिए U-235 को U-238 से अलग किया जाता है.

परमाणु ऊर्जा बनी भविष्य की जरूरत

परमाणु ऊर्जा को कम कार्बन और लगातार उपलब्ध बिजली के स्रोत के रूप में देखा जा रहा है. यही कारण है कि 2023 में दुबई में हुए Cop28 सम्मेलन में 25 देशों ने 2050 तक परमाणु उत्पादन को तीन गुना करने का संकल्प लिया. माइक्रोसॉफ्ट और अमेजन जैसी कंपनियां भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित डेटा सेंटर्स के लिए परमाणु ऊर्जा में निवेश कर रही हैं.

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11 April 2025, 02:07 PM IST

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