Khalistan विवाद और भारत के साथ पंगा: ट्रूडो के राजनीतिक कैरियर का बेड़ागर्क
कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो का खालिस्तान समर्थकों के प्रतिन नरम रवेया उनके सियासी करियर के लिए भारी साबित हो सकता है. भारत के साथ संबंधों में बढ़ते तनाव और खालिस्तानी गतिविधियों पर उदासीनता ने ट्रूडो की छवि को इंटरनेशनल मंच पर कमजोर कर दिया है. भारतीय समुदाय के विरोध और व्यापारिक रिश्तों पर असर के चलते उनका नेतृत्व सवालों के घेरे में है. ऐसे में ट्रूडो की राजनीतिक स्थिति डगमगाती नजर आ रही है.
नई दिल्ली: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो एक राजनीतिक संकट का सामना कर रहे हैं. इसके कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ सकता है. अपनी लिबरल पार्टी में अलग-थलग पड़ते जा रहे ट्रूडो पर आरोप लगाया गया है कि वे गिरती अर्थव्यवस्था और अपनी पार्टी के भीतर असंतोष सहित बढ़ती घरेलू चुनौतियों से ध्यान हटाने के लिए भारत के खिलाफ आरोपों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
पिछले एक साल में सीन केसी और केन मैकडोनाल्ड सहित कई हाई-प्रोफाइल लिबरल पार्टी के सांसदों ने ट्रूडो के नेतृत्व से असंतुष्टि का हवाला देते हुए सार्वजनिक रूप से उनसे पद छोड़ने की मांग की है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि 20 से ज़्यादा लिबरल सांसदों ने उनके इस्तीफ़े की मांग करते हुए एक प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं.
उनकी आर्थिक रणनीति शामिल
दिसंबर में क्रिस्टिया फ्रीलैंड का उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा ट्रूडो की सरकार के लिए एक बड़ा झटका था. फ्रीलैंड का इस्तीफा कथित तौर पर नीतिगत असहमतियों के कारण हुआ. इसमें ट्रूडो का संभावित अमेरिकी टैरिफ से निपटना और उनकी आर्थिक रणनीति शामिल थी.
मैं अपने देश से प्यार करता हूं-ट्रूडो
ट्रूडो ने दिसंबर में कहा कि ज़्यादातर परिवारों की तरह, कभी-कभी छुट्टियों के दौरान हमारे बीच झगड़े होते हैं. लेकिन बेशक, ज़्यादातर परिवारों की तरह, हम इससे निपटने का रास्ता खोज लेते हैं. आप जानते हैं, मैं इस देश से प्यार करता हू. वह इस पार्टी से बहुत प्यार करते हैं.
दो उपचुनावों में हुई हार
फ्रीलैंड, जिन्होंने अपने त्यागपत्र में ट्रूडो और उनके "राजनीतिक हथकंडों" की आलोचना की थी, इस भावना से सहमत नहीं थीं. फ्रीलैंड के इस्तीफे के बाद, ट्रूडो मीडिया ब्रीफिंग या सार्वजनिक कार्यक्रमों से गायब हो गए और अपना ज़्यादातर समय स्की रिसॉर्ट में बिताया. आंतरिक उथल-पुथल के अलावा, लिबरल पार्टी को हाल ही में हुए दो उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा. न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) के नेता जगमीत सिंह जैसे प्रमुख सहयोगियों ने कहा है कि वे सरकार को गिराने के लिए कनाडाई संसद में प्रस्ताव पेश करेंगे. वर्तमान में शीतकालीन अवकाश पर चल रही कनाडाई संसद 27 जनवरी को अपनी कार्यवाही फिर से शुरू करेगी.
संघीय चुनाव से कमजोर होगी पार्टी
अगर ट्रूडो इस्तीफा देते हैं, तो लिबरल पार्टी की मुख्य चुनौती जन अपील वाला नेता खोजना होगा. कनाडा में, कोई अंतरिम नेता पार्टी के स्थायी नेतृत्व के लिए चुनाव नहीं लड़ सकता. डोमिनिक लेब्लांक, मेलानी जोली, फ्रेंकोइस-फिलिप शैम्पेन और मार्क कार्नी जैसे नाम संभावित दावेदारों के रूप में सामने आए हैं. लेकिन नेतृत्व की दौड़ की समयसीमा इस साल के अंत में होने वाले संघीय चुनावों से पहले पार्टी को कमजोर बना सकती है.
पार्टी को करना पड़ेगा जोखिम का सामना
कनाडा के लिबरल नेता को एक विशेष सम्मेलन के माध्यम से चुना जाता है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें महीनों लग सकते हैं. अगर लिबरल्स को स्थायी नेता मिलने से पहले चुनाव की घोषणा कर दी जाती है, तो पार्टी को बैलेट बॉक्स में जोखिम का सामना करना पड़ेगा. ट्रूडो की राजनीतिक मुश्किलें तब सामने आईं जब पियरे पोलिएवर के नेतृत्व वाली विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी को जनमत सर्वेक्षणों में भारी बढ़त हासिल हुई. पोलिएवर ने आर्थिक निराशा का फायदा उठाते हुए ट्रूडो के कार्बन टैक्स को खत्म करने और कनाडा के आवास संकट को दूर करने की कसम खाई है. कुछ सर्वेक्षणों में कंजर्वेटिव को लिबरल्स पर दोहरे अंकों की बढ़त दिखाई गई है.
ट्रूडो की भारत संबंधी चाल
ट्रूडो द्वारा सितंबर 2023 में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की संलिप्तता के आरोप के बाद से नई दिल्ली और ओटावा के बीच तनाव बढ़ रहा है. निज्जर को कनाडा में एक सिख मंदिर के बाहर गोली मार दी गई थी. भारत ने इस आरोप को "बेतुका" बताते हुए खारिज कर दिया. ट्रूडो के इस दावे की कि भारत आपराधिक गतिविधियों को प्रायोजित करता है, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी आलोचना हुई है.
खालिस्तानियों को शह देने का आरोप
इसके बाद भारत ने कनाडा के छह राजनयिकों को निष्कासित कर दिया और ओटावा में अपने राजदूत को वापस बुला लिया. क्योंकि कनाडा ने निज्जर मामले में भारतीय अधिकारियों से "रुचि के व्यक्ति" के रूप में पूछताछ करने का प्रयास किया था. टोरंटो के पास एक हिंदू मंदिर पर हमले सहित कनाडा में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों ने दोनों देशों के बीच संबंधों को और भी खराब कर दिया. भारत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा घोषित आतंकवादी निज्जर की हत्या से किसी भी तरह के संबंध को लगातार खारिज किया है. ट्रूडो प्रशासन पर राजनीतिक लाभ के लिए खालिस्तानी समर्थकों को शह देने का आरोप लगाया है।
सिख वोट बेस आकर्षित करने का प्रयास
जी-20 शिखर सम्मेलन जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बैठकों सहित अनेक आदान-प्रदानों के बावजूद, कनाडा इस हत्या में भारत को जोड़ने वाला कोई निर्णायक सबूत देने में विफल रहा है. आलोचकों का तर्क है कि ये आरोप कनाडा में खालिस्तानी सिख वोट बेस के एक हिस्से को आकर्षित करने का प्रयास है. इसे कुछ लोग राजनीति से प्रेरित मानते हैं. हालांकि, यह रणनीति उल्टी साबित हुई है, कई कनाडाई इसे राष्ट्रीय मुद्दों से ध्यान भटकाने वाला मानते हैं.