अमेरिकी रणनीति में भारत बना भरोसेमंद साझेदार, चीन को मात देने की तैयारी
आज जब चीन सामरिक अलगाव और पश्चिमी देशों के अविश्वास का सामना कर रहा है, भारत वैश्विक मंच पर मजबूती से उभर कर नहीं, बल्कि एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित हो चुका है. पश्चिमी शक्तियां स्थिरता, पारदर्शिता और भरोसेमंद साझेदारी की तलाश में हैं, और भारत इन सभी मानकों पर खरा उतर रहा है. अब भारत विश्व व्यवस्था को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.

वैश्विक व्यापार में इस समय बड़े बदलाव हो रहे हैं. अमेरिका द्वारा कुछ टैरिफ पर 90 दिनों की रोक लगाना और साथ ही चीन पर टैरिफ 125% तक बढ़ाना केवल आर्थिक निर्णय नहीं, बल्कि रणनीतिक दिशा का संकेत है. यह कदम चीन पर निर्भरता कम करने और भरोसेमंद सहयोगियों की तलाश की अमेरिकी नीति को दर्शाता है. ऐसे में भारत को एक स्थायी और भरोसेमंद व्यापारिक साझेदार के रूप में देखा जा रहा है.
जब कई देश इन बदलते हालात से निपटने की तैयारी कर रहे हैं, भारत पहले से तैयार दिखता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने पीएलआई योजनाओं, इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और व्यापारिक सुधारों के ज़रिए खुद को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का केंद्र बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं. भारत ने कई देशों के साथ व्यापार समझौते किए हैं और अपने निर्यात को विविधता दी है, जिससे आज की परिस्थितियों में उसकी स्थिति मजबूत हुई है.
90 दिन का अवसर: व्यापारिक साझेदारी की नई राह
अमेरिका द्वारा दी गई 90 दिनों की यह छूट भारत के लिए तीन प्रमुख क्षेत्रों में काम करने का मौका है:
बाजार पहुंच और टैरिफ में पारदर्शिता: भारत को अमेरिका से अपने प्रमुख उत्पादों पर शुल्क कम करने की मांग करनी चाहिए.
डिजिटल और निवेश सहयोग: भारत खुद को टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में साझेदार के रूप में स्थापित कर सकता है.
रक्षा और रणनीतिक एकता: मजबूत रक्षा सहयोग से आर्थिक विश्वास बढ़ेगा.
टैरिफ चुनौती नहीं, रणनीतिक ट्रिगर है
हाल ही में भारत को भी टैरिफ दबाव का सामना करना पड़ा, लेकिन मोदी सरकार ने बिना प्रतिशोध के संतुलित प्रतिक्रिया दी. रेपो रेट में कटौती और नीतिगत स्थिरता ने यह दिखाया कि भारत न केवल संकट का सामना कर सकता है, बल्कि उसे अवसर में बदल भी सकता है.


