चांद पर होगी भारत-चीन की यारी, क्या गुल खिला रहा है रूस दंग रह जाएगी दुनिया

Lunar Nuclear Power Plant: चांद को लेकर रूस की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है. रूस चाहता है कि चांद पर एक परमाणु ऊर्जा संयत्र बनाया जाए. कथित तौर पर भारत ने रूस के साथ इस परियोजना में जुड़ने में दिलचस्पी दिखाई है. रूस की यह परियोजना चीन के साथ चंद्रमा पर बेस बनाने के साथ जुड़ा है. रूस के राज्य परमाणु निगम, रोसाटॉम (Rosatom) के नेतृत्व में इस परियोजना को बनाया जाना है.

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Lunar Nuclear Power Plant: चांद पर कई रहस्य छिपे हुए हैं. इन रहस्यों का पता लगाने के लिए कई देश लगे हुए हैं. ऐसे में रूस एक नया रिकॉर्ड बनाने जा रहा है. दरअसल रूस चंद्रमा में न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने वाला है. इतना ही नहीं इस परियोजना पर भारत भी रूस के साथ मिलकर काम करने वाला है. भारत ने रूस की इस परियोजना पर अपनी गहरी रुचि दिखाई है. रूस की इस परियोजना के जरिए चंद्रमा में बनने वाले बेस को ऊर्जा की आपूर्ति करेगा. खास बात यह है कि रूस और भारत के साथ चीन भी इसमें शामिल होने वाला है. तो आइए एक परियोजना के बारे में विस्तार से जानते हैं. 

मिली जानकारी के मुताबिक रूस की सरकारी परमाणु निगम रोसाटॉम इस परियोजना का नेतृत्व कर रहा है. चंद्रमा में बनने वाले पहले इस परमाणु ऊर्जा संयंत्र से आधा मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा और यह बिजली चंद्रमा में बने बेस को भेजी जाएगी.

साल 2036 तक पूरा हो जाएगा काम

एक रिपोर्ट के मुताबिक रोसाटॉम के प्रमुख एलेक्सी लिखाचेव ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ-साथ इस परियोजना में चीन और भारत ने खासी रूचि दिखाई है. रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस ने ऐलान किया है कि चंद्रमा में परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने पर काम चल रहा है. रूस और चीन संयुक्त रूप से इस पर जुटे हैं. यह 2036 तक पूरा हो जाएगा. इसे चंद्रमा में स्थापित किया जाएगा.

भारत के लिए क्यों खास है यह प्लांट?

बता दें कि चंद्रमा में बनने वाला रूस का पहला परमाणु संयंत्र भारत के लिए भी खास है. भारत की योजना 2040 तक इंसान को चंद्रमा में भेजने की है. ऐसे में यह प्लांट वहां उर्जा जरूरतों को पूरा कर सकता है. 2021 में रूस और चीन ने साझे तौर पर अंतरराष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन बनाने की घोषणा की थी.

अधिकांश देश करेंगे इसका इस्तेमाल

कहा जा रहा है कि यह स्टेशन 2035 और 2045 के बीच कभी भी शुरू हो सकता है. इस स्टेशन का उद्देश्य वैज्ञानिक अनुसंधान करना है. अधिकांश देश इसका इस्तेमाल कर सकेंगे. मगर हो सकता है कि अमेरिका के कुछ सहयोगियों को इसका लाभ न मिले. ऐसे में रूस का सहयोगी होने के नाते भारत इसका फायदा उठा सकता है. First Updated : Monday, 09 September 2024