भारत की कूटनीति के सामने नतमस्तक China: ताकत, शर्तें और दबदबे से चीन को आई झुकने की नौबत
America से टकराव के बीच चीन ने भारत को साधने की नई चाल चली है। Trading tension से जूझ रहा चीन अब भारत में निवेश बढ़ाने को तैयार हो गया है। हैरानी की बात यह है कि चीन ने भारतीय सरकार की सभी शर्तें भी मान ली हैं।

International News: दुनिया भर की निगाहें जब America and President Donald ट्रंप पर थीं कि वे चीन को आर्थिक रूप से कमजोर करेंगे, तब असली बाज़ी भारत ने चुपचाप अपने पाले में कर ली। चीनी कंपनियां, जो लंबे समय से भारत में निवेश के लिए शर्तों को मानने से बचती रही थीं, अब उन सभी नियमों को स्वीकार करने को तैयार हैं। हायर (Haier) और शंघाई हाईली (Shanghai Highly) जैसी बड़ी कंपनियां भारत सरकार की सख्त शर्तों पर समझौता कर चुकी हैं। इनमें सबसे अहम शर्त है कि वे ज्वाइंट वेंचर में सिर्फ अल्पमत हिस्सेदारी (Minority Stake) रखेंगी।
अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाए जाने के बाद चीन की कंपनियों को बड़ा आर्थिक झटका लगा। ऐसे में उन्हें भारत में नई संभावनाएं दिखने लगीं। 2020 की सीमा पर हुई हिंसा के बाद भारत ने चीन के प्रति अपनी नीति काफी सख्त कर दी थी। लेकिन अब चीन की कंपनियों को इस बात का एहसास हुआ कि अगर वे भारतीय बाजार से भी हाथ धो बैठीं, तो वैश्विक स्तर पर उनका वजूद खतरे में आ सकता है।
हायर और हाईली ने बदली रणनीति
हायर, जो भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार में तीसरे नंबर पर है, अब अपने भारतीय कारोबार में 51 से 55 फीसदी हिस्सेदारी बेचने को तैयार है। पहले वह सिर्फ 26 फीसदी बेचने की योजना में थी। वहीं शंघाई हाईली ने टाटा ग्रुप की वोल्टास के साथ फिर से बातचीत शुरू कर दी है और अब वह माइनॉरिटी हिस्सेदारी पर राज़ी हो चुकी है। इतना ही नहीं, वह तकनीकी साझेदारी के लिए भी तैयार है, जिसके तहत वह अपने उपकरणों की उत्पादन तकनीक भारत को ट्रांसफर करेगी।
पीएलआई स्कीम ने दिखाई राह
भारत सरकार की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना भी इस बदलाव का बड़ा कारण रही। इससे भारत में निर्माण लागत चीन के मुकाबले प्रतिस्पर्धात्मक हो गई है। चीनी कंपनियां अब भारत में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स लगाने के लिए तैयार हैं ताकि वे न केवल भारतीय मांग पूरी कर सकें, बल्कि अन्य देशों में भी निर्यात कर सकें।
China को झुकाया बिना युद्ध के
Government of India ने साफ संकेत दे दिया है कि वह केवल उन्हीं ज्वाइंट वेंचर्स को मंजूरी देगी, जिनमें बहुलांश हिस्सेदारी Indian companies की होगी, बोर्ड भी भारतीय रहेगा और जो देश की तकनीकी व औद्योगिक तरक्की में योगदान देंगे। यह रणनीति बिना किसी सीधा टकराव लिए चीन को झुकाने का बेहतरीन उदाहरण बन गई है। अब जब ड्रैगन भारतीय ज़मीन पर निवेश के लिए तैयार है, तो यह भारत की कूटनीतिक और आर्थिक सोच की जीत है—वो भी बिना किसी टैरिफ वॉर के।


