Explainer: भारत का 'ऑपरेशन कैक्टस' मालदीव पर है कर्ज, जानिए कैसे राजीव गांधी ने बचाया उनका देश
Explainer: मालदीव में और भारत के रिश्तों में खटास आती जा रही है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब मालदीव के साथ मुश्किल वक्त में सिर्फ भारत ही खड़ा था.
Explainer: मालदीव के कुछ नेताओं ने जब से भारत और पीएम मोदी पर अपमानजनक टिप्पणी की है तभी से दोनों देशों में तनाव बढ़ता जा रहा है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब मालदीव में सैन्य विद्रोह के बाद तख्तापलट की कोशिश को भारतीय सेनाओं ने रोक दिया था.
भारत की तरह ब्रिटिश की थी मालदीव पर हुकूमत
भारत की तरह पहले यहां भी ब्रिटिश शासन था. 26 जुलाई 1965 को मालदीव ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र हो गया. इसके बाद तीन साल तक यहां राजशाही का शासन रहा. मालदीव गणराज्य की स्थापना वर्ष 1968 में हुई थी. इब्राहिम नासिर मालदीव के पहले राष्ट्रपति थे.
नासिर देश के पैसे लेकर सिंगापुर भागे?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिस समय में राष्ट्रपति इब्राहिम नासिर को संकट से उबरने के तरीके निकालने चाहिए थे, वह देश छोड़कर भाग गए. खबरों की मानें तो कहा जाता है कि साल 1978 में इब्राहिम नासिर देश से लाखों डॉलर चुराकर सिंगापुर भाग गए थे. जानकारी के मुताबिक, ये मिलियन डॉलर सरकारी खजाने से निकाले गए थे. 1978 में मालदीव में तीसरी बार चुनाव कराए गए. उस दौरान मौमून अब्दुल गयूम को नया राष्ट्रपति बनाया गया.
सुधरने लगे थे हालात
गयूम ने अपने प्रयासों से मालदीव की आर्थिक स्थिति बदल दी. समय के साथ गयूम की लोकप्रियता भी बढ़ती जा रही थी, लेकिन उनके राजनीतिक विरोधियों को ये सब हजम नहीं हो रहा था. राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान गयूम पर देश में राजनीतिक कैदियों को रिहा करने जैसे कई बड़े आरोप भी लगे.
बात 1988 की है...
यह साल 1988 था जब मालदीव बुरी तरह संकट में था. नवंबर का महीना था और मालदीव की राजधानी की सड़कों पर नकाबपोश हथियारबंद हत्यारे खुलेआम घूम रहे थे. 3 नवंबर को योजनाबद्ध घुसपैठियों ने मालदीव की राजधानी पर दोतरफा हमला किया. उस समय वहां के राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम थे. खतरा देखकर गय्यूम एक सुरक्षित जगह पर छिप गये और वहीं से कई देशों से मदद मांगी. अमेरिका, ब्रिटेन, श्रीलंका, भारत और पाकिस्तान जैसे देशों को आपातकालीन संदेश भेजे गए, लेकिन भारत को छोड़कर कोई भी देश सीधे मदद के लिए आगे नहीं आया.
इस दिन भारत आने वाले थे मालदीव के राष्ट्रपति
नकाबपोश हथियारबंद सेनाएं जिस दिन मालदीव पर कब्जा करने के अंदर घुसी थी वो दिन भारत के लिए खास था, क्योंकि इसी दिन मालदीव के राष्ट्रपति को भारत आना था. इस वक्त भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे. दरअसल राजीव गांधी को कहीं जाना था जिसकी वजह से मालदीव के राष्ट्रपति को फन्होंने फोन करके अपना दौरा किसी और दिन रखने को कहा, जिसके बाद वो भारत नहीं आए. तब तक मालदीव को हथियाने की साजिश कर रहे लोगों को यही पता था कि गयूम देश में नहीं हैं.
प्रेसिडेंट हाउस पर कब्जे की साजिश
आतंकी प्रेसिडेंट हाउस पर कब्जे की सोच के साथ आतंकी आगे बढ़े, इस दौरान आतंकियों ओर अपने कदम बढ़ा रहे थे. राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए नेशनल सिक्योरिटी के एडवाइजर उनको एक सेफ हाउस में ले जाया गया, लेकिन इस दौरान आतंकियों ने बाकी कई नेताओं को बंदी बना लिया था. मुसीबत को देखते हुए ही राष्ट्रपति गयूम ने अलग अगल देशों से मदद की गुहार लगाई. रिपोर्ट्स के मुताबिक, राष्ट्रपति ने अमेरिका, इंग्लैंड, पाकिस्तान, श्रीलंका, सिंगापुर से मदद मांगी, लेकिन कोई भी उस समय मदद के लिए तैयार नहीं हुआ. इसमें सिर्फ भारत ने ही अपनी सेना मालदीव भेजी थी.
ऑपरेशन कैक्टस की शुरुआत
भारत ने मालदीव के लिए अपनी सेना भेजी, जिसको ऑपरेशन कैक्टस का नाम दिया गया. ये ऑपरेशन 3 नवंबर 1988 को शुरू हुआ. तब IL-76 परिवहन विमान ने 50वीं स्वतंत्र पैराशूट ब्रिगेड, पैराशूट रेजिमेंट की 6वीं बटालियन और 17वीं पैराशूट फील्ड रेजिमेंट की एक टुकड़ी को पहुंचाया गया. इसके लिए फ्लाइट आगरा से शुरू कराई गई थीं. इसमें सबसे बढ़ी समस्या ये थी जवानों की लैंडिंग कहां कराई जाए, क्योंकि एयरपोर्ट पर भी आतंकियों का कब्जा था.
भारत के पास नहीं था कोई मैप
सेना भेजने के लिए भारत के पास ना तो समय था और ना ही कोई जानकारी. जवानों के प्लेन की लैंडिंग के लिए एक सेफ एयरपोर्ट चाहिए था, लेकिन सरकार के पास इस बात की जानकारी नहीं थी कि कहां पर आतंकी नहीं हैं. इसके बाद फिर भी हुलहुले आयरलैंड पर लैंड कराने का फैसला लिया गया, भारत को एक आइडिया था कि वहां पर शायद कोई आतमकी मौजूद ना हो.
कुछ ही घंटो में मास्टरमाइंड को पकड़ा
भारतीय सेना जब मालदीव पहुंची तब पहले से ही वहां पर गोलीबारी चल रही थी. भारतीय सैना ने अपना मोर्चा संभाला, और मदह 18 घंटों की लड़ाई में ही उन्होंने मालदीव पर कब्जा होने से बचा लिया. जो आतंकियों की कैद में नेता थे उनको आजाद कराकर इस हमले का मास्टरमाइंड अब्दुल्ला लूतूफी को भी इंडियन नैवी ने गिरफ्तार कर लिया.
अगर बात की जाए तो मालदीव आज जो इतना बड़ा टूरिस्ट प्लेस बना हुआ है वो भारत की उस एक मदद की वजह से है. उस वक्त दूसरे देशों ने मालदीव के साथ जो किया अगर भारत भी उसी तरह कदम पीछे ले लेता तो शायद मालदीव की कहानी कुछ और होती.