भारत ने फिलिस्तीन के हक में उठाया बड़ा कदम, इजरायल से कब्जा छोड़ने की मांग की!
संयुक्त राष्ट्र में भारत ने 157 देशों के साथ मिलकर फिलिस्तीन के पक्ष में वोट दिया है. प्रस्ताव में इजरायल से 1967 में कब्जाए गए फिलिस्तीनी क्षेत्रों और सीरियाई गोलन हाइट्स को खाली करने की मांग की गई. साथ ही, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति की बात कही गई. यह मुद्दा क्यों खास है? भारत का यह कदम पश्चिम एशिया में शांति स्थापित करने और अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दिखाता है. आखिर क्या है इस प्रस्ताव में खास? और किसने विरोध किया? जानिए पूरी कहानी.
India Stands With Palestine: संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत ने एक बार फिर फिलिस्तीन का समर्थन किया है. भारत उन 157 देशों में शामिल था, जिन्होंने एक प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें इजरायल से 1967 में कब्जाए गए फिलिस्तीनी इलाकों को छोड़ने और क्षेत्र में न्यायपूर्ण व स्थायी शांति स्थापित करने की बात कही गई.
यह प्रस्ताव सेनेगल ने पेश किया था और इसे महासभा में भारी बहुमत से पारित कर दिया गया. हालांकि, इजरायल, अमेरिका, और हंगरी जैसे 8 देशों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि कुछ देशों ने मतदान से दूरी बनाई.
क्या है प्रस्ताव में?
इस प्रस्ताव में पूर्वी यरुशलम सहित 1967 के बाद कब्जाए गए फिलिस्तीनी क्षेत्रों को खाली करने और फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार को मान्यता देने की बात कही गई है. इसके अलावा, प्रस्ताव में दो-राष्ट्र समाधान की भी पुष्टि की गई, जिसमें इजरायल और फिलिस्तीन को 1967 की सीमाओं के आधार पर शांति और सुरक्षा के साथ सह-अस्तित्व का अधिकार दिया गया है.
गाजा पट्टी का जिक्र
इस प्रस्ताव में गाजा पट्टी को फिलिस्तीन का अभिन्न हिस्सा माना गया है. इसमें गाजा के जनसांख्यिकीय या क्षेत्रीय बदलाव की किसी भी कोशिश को खारिज किया गया है. यह क्षेत्र 1967 के कब्जे वाले इलाकों का हिस्सा है और इसे फिलिस्तीन राज्य का महत्वपूर्ण भाग माना गया है.
सीरियाई गोलन पर भी प्रस्ताव पारित
महासभा में एक और प्रस्ताव में भारत ने इजरायल से कब्जे वाले सीरियाई गोलन हाइट्स से हटने की मांग का समर्थन किया. यह क्षेत्र 1967 के छह दिवसीय युद्ध में इजरायल ने सीरिया से छीन लिया था. संयुक्त राष्ट्र इसे सीरिया का हिस्सा मानता है.
गोलन हाइट्स दक्षिण-पश्चिम सीरिया में स्थित एक चट्टानी इलाका है, जो दमिश्क से लगभग 60 किलोमीटर दूर है. महासभा में इस प्रस्ताव के पक्ष में 97 वोट पड़े, जबकि 64 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.
भारत का समर्थन क्यों महत्वपूर्ण?
भारत हमेशा से फिलिस्तीन के अधिकारों के पक्ष में रहा है. इस बार का समर्थन भी दिखाता है कि भारत अंतरराष्ट्रीय कानून और न्यायपूर्ण शांति को प्राथमिकता देता है. साथ ही, यह पश्चिम एशिया में स्थिरता और सुरक्षा के लिए भारत के दृष्टिकोण को भी दर्शाता है. संयुक्त राष्ट्र में भारत का यह रुख दिखाता है कि वह फिलिस्तीन और इजरायल के विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने का पक्षधर है. भारत का मानना है कि फिलिस्तीन और इजरायल का सह-अस्तित्व ही इस क्षेत्र में स्थायी शांति का रास्ता खोल सकता है.