ट्रंप की वापसी के बाद ईरान-अमेरिका में पहली मुलाकात, ओमान में शुरू हुई परमाणु वार्ता
अमेरिका और ईरान के बीच 2025 में परमाणु कार्यक्रम को लेकर फिर से बातचीत शुरू हुई है. यह बातचीत मस्कट, ओमान में हो रही है और ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद दोनों देशों की पहली सीधी मुलाकात है. 2015 के JCPOA परमाणु समझौते से अमेरिका 2018 में ट्रंप के कार्यकाल में बाहर हो गया था, जिसके बाद ईरान ने यूरेनियम संवर्धन बढ़ा दिया.

2025 की शुरुआत होते ही पश्चिम एशिया की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में वॉशिंगटन और तेहरान के बीच परमाणु कार्यक्रम को लेकर फिर से बातचीत शुरू हो गई है. ओमान की राजधानी मस्कट में शनिवार, 12 अप्रैल को दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने पहली बार आमने-सामने बातचीत की. इस बैठक को ट्रंप के सत्ता में लौटने के बाद अमेरिका-ईरान के रिश्तों में पहला बड़ा बदलाव माना जा रहा है.
इस ऐतिहासिक मुलाकात के बाद अब अगली वार्ता 19 अप्रैल को तय की गई है. हालांकि यह बातचीत आसान नहीं होगी क्योंकि मामला केवल परमाणु हथियारों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पश्चिम एशिया की स्थिरता, इस्राइल की सुरक्षा और वैश्विक शक्ति संतुलन जैसे कई गंभीर मुद्दे जुड़े हुए हैं.
ओमान बना बातचीत का पुल
ओमान, जो पहले भी अमेरिका और ईरान के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा चुका है, ने इस बार भी मस्कट को बातचीत की जगह बनाया. अमेरिकी मिडिल ईस्ट एन्वॉय स्टीव विटकॉफ और ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराकची के बीच हुई यह सीधी बातचीत, बराक ओबामा सरकार के बाद पहली बार हुई है. ईरानी स्टेट टीवी ने इस मुलाकात को सकारात्मक बताया. व्हाइट हाउस ने भी इसे "बहुत ही सकारात्मक और रचनात्मक" करार दिया और कहा कि स्पेशल एन्वॉय विटकॉफ की सीधी बातचीत आज एक ऐसा कदम है जो आपसी लाभ की दिशा में हमें आगे ले जा सकता है.
आखिर क्यों नहीं रख सकता ईरान परमाणु हथियार?
ईरान न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी (NPT) का सदस्य है, जो किसी भी देश को परमाणु तकनीक का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों जैसे ऊर्जा, चिकित्सा और कृषि तक सीमित करने की अनुमति देता है. हालांकि ईरान लगातार दावा करता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम नागरिक उपयोग के लिए है, लेकिन 2002 में उसके गुप्त न्यूक्लियर फैसिलिटीज का खुलासा होने के बाद पश्चिमी देश और IAEA उस पर भरोसा नहीं कर पा रहे.
2015 का JCPOA समझौता
ज्वाइंट कॉम्प्रिहेन्सिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA)नाम का समझौता 2015 में ईरान और अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन और जर्मनी के बीच हुआ था. इसके तहत ईरान ने अपने यूरेनियम भंडार को सीमित करने, सेंट्रीफ्यूज की संख्या घटाने और IAEA को नियमित निरीक्षण की अनुमति देने पर सहमति दी थी.
बदले में उस पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हटा दिए गए थे. लेकिन 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से बाहर निकाल लिया और फिर से कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए.
ईरान का परमाणु कार्यक्रम कहां पहुंचा?
JCPOA के टूटने के बाद ईरान ने कई प्रतिबंधों की अनदेखी शुरू कर दी. मार्च 2025 तक IAEA की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान के पास 275 किलोग्राम यूरेनियम 60% शुद्धता तकसमृद्ध किया हुआ है, जबकि परमाणु हथियार बनाने के लिए इसे 90% तक पहुंचाना होता है. अमेरिका मानता है कि ईरान एक हफ्ते में इतना यूरेनियम समृद्ध कर सकता है जो एक बम के लिए काफी हो, लेकिन हथियार को तैयार करने में 1 से 1.5 साल लग सकते हैं.
क्यों ट्रंप ने 2015 का परमाणु समझौता तोड़ा?
ट्रंप का मानना था कि JCPOA एक "बुरा सौदा" है क्योंकि यह स्थायी नहीं था और ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम या क्षेत्रीय दखल को शामिल नहीं करता था. उनके फैसले को इस्राइल और सऊदी अरब का भी समर्थन मिला जिन्होंने कहा कि ईरान उस समय भी गुपचुप परमाणु कार्यक्रम चला रहा था और प्रतिबंधों में मिली राहत का उपयोग अपने सैन्य विस्तार में कर रहा था.
अब नया सौदा क्यों चाहता है अमेरिका?
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन अब एक "बेहतर सौदा" चाहता है जो सिर्फ परमाणु कार्यक्रम को ही नहीं बल्कि ईरान की मिसाइल क्षमताओं और क्षेत्रीय गतिविधियोंको भी नियंत्रित करे. इस्राइल का रुख इस पर साफ है. इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा “ईरान के परमाणु ठिकानों को अमेरिका की निगरानी में नष्ट किया जाना चाहिए. अन्यथा सैन्य कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प है.
क्या ईरान सब कुछ छोड़ देगा?
तेहरान ने संकेत दिए हैं कि वह प्रतिबंधों में राहत के बदले कुछ समझौते करने को तैयार है, लेकिन अपने पूरे परमाणु कार्यक्रम को खत्म करना संभव नहीं मानता. 60% यूरेनियम समृद्ध करने के बाद अब वो हथियार निर्माण से सिर्फ एक कदम दूर है. ईरान की सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने भी गद्दाफी की मौत को उदाहरण बनाकर अमेरिका पर भरोसा न करने की बात कही है.
बात बनेगी या बिगड़ेगी?
ईरान के साथ परमाणु समझौते की दिशा में चल रही ये नई बातचीत इस बात का संकेत है कि दोनों देश एक बार फिर कूटनीति के रास्ते पर लौटने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन भरोसे की कमी, बीते अनुभव और मौजूदा जमीनी हकीकत इस राह को बेहद चुनौतीपूर्ण बना रहे हैं. अगर यह कोशिश असफल होती है, तो मध्य पूर्व में अस्थिरता और परमाणु हथियारों की दौड़ का खतरा और बढ़ सकता है.


