
कई देशों में लोग छोड़ रहे अपना धर्म, दो धर्मों को हो रहा भारी नुकसान, जानें क्या है भारत का हाल?
सर्वेक्षण के अनुसार, ईसाई धर्म अब भी दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है, लेकिन इसका अनुसरण करने वालों की संख्या में कमी आ रही है. इस्लाम भी कुछ देशों में प्रमुख धर्म है, जैसे कि बांग्लादेश और इंडोनेशिया में. दूसरी ओर, बौद्ध धर्म भी जापान, श्रीलंका और थाईलैंड में प्रमुख धर्म बना हुआ है, लेकिन इस धर्म को भी नुकसान हो रहा है.

Pew Research Religion: हाल के एक सर्वेक्षण में पता चला है कि दुनिया भर के कई देशों में लोग अपने जन्म के समय के धर्मों को छोड़कर किसी अन्य धर्म को अपनाने के बजाय धार्मिक रूप से असंबद्ध हो रहे हैं. अमेरिका के वॉशिंगटन स्थित प्यू रिसर्च सेंटर के इस सर्वेक्षण में 36 देशों के 80,000 वयस्कों पर अध्ययन किया गया. इसके परिणामों से यह स्पष्ट हुआ कि खासतौर पर ईसाई धर्म और बौद्ध धर्म को सबसे अधिक नुकसान हुआ है, क्योंकि इन धर्मों के अनुयायी बड़ी संख्या में धर्म छोड़ रहे हैं.
सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि कुल वयस्कों में से लगभग हर पांचवां व्यक्ति या उससे अधिक ने उस धर्म को छोड़ दिया है जिसमें वे पले-बढ़े थे. खासतौर पर पूर्वी एशिया, पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में लोग अपने पारंपरिक धर्मों को छोड़ रहे हैं. उदाहरण स्वरूप, दक्षिण कोरिया में 50% वयस्क, नीदरलैंड में 36%, अमेरिका में 28% और ब्राजील में 21% वयस्कों ने अपने बचपन के धर्म से खुद को अलग कर लिया है.
धर्म छोड़ने वाले सभी धर्म से दूर हो रहे
दिलचस्प बात यह है कि अधिकतर लोग किसी भी धर्म से जुड़ने के बजाय 'धार्मिक रूप से असंबद्ध' हो रहे हैं. इसका मतलब है कि वे नास्तिक, अज्ञेयवादी या किसी विशेष धर्म को नहीं मानते. उदाहरण के लिए, स्वीडन में 29% लोग जो ईसाई धर्म में पले-बढ़े थे, अब खुद को धार्मिक रूप से नास्तिक मानते हैं.
ईसाई और बोद्ध धर्म को सबसे अधिक नुकसान
कुछ देशों में बौद्ध धर्म के अनुयायी भी धर्म से विमुख हो रहे हैं. जापान और दक्षिण कोरिया में बड़ी संख्या में लोग बौद्ध धर्म को छोड़ चुके हैं और अब वे किसी भी धर्म से खुद को नहीं जोड़ते. हालांकि, कुछ देशों में धार्मिक परिवर्तनों की दिशा उल्टी भी हो रही है. दक्षिण कोरिया में, जहां पहले किसी धर्म में विश्वास नहीं रखने वाले लोग धर्म अपना रहे हैं, 9% लोग अब ईसाई धर्म को अपना रहे हैं.
यह सर्वेक्षण दर्शाता है कि 'धार्मिक रूप से असंबद्ध' लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जो इस धार्मिक परिवर्तन का सबसे बड़ा लाभ उठा रहे हैं. ऐसे लोग न तो किसी धर्म को मानते हैं और न ही किसी से जुड़ते हैं.