नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग! पूर्व माओवादी गुरिल्ला ने लिया नया मोड़.... क्या दुर्गा प्रसाई लिखेंगे राजनीति का नया इतिहास?

नेपाल में राजशाही समर्थकों का आंदोलन फिर से उफान पर है और अब एक पूर्व माओवादी गुरिल्ला दुर्गा प्रसाई इसे लीड कर रहे हैं. क्या नेपाल फिर से हिंदू राज्य बनेगा और राजा की वापसी होगी? जानिए इस राजनीतिक हलचल के पीछे की पूरी कहानी और प्रसाई की बढ़ती ताकत. क्या नेपाल का भविष्य राजशाही में है? पूरी खबर पढ़ें और जानें!

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Edited By: Aprajita

Nepal: नेपाल में एक बार फिर राजशाही के पक्ष में आवाजें उठने लगी हैं. यह देश पहले ही 2008 में माओवादी आंदोलन के बाद गणराज्य बन चुका था लेकिन अब एक पूर्व माओवादी गुरिल्ला, दुर्गा प्रसाई, राजा को वापस लाने और नेपाल को हिंदू राज्य बनाने की लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं. इस आंदोलन के चलते काठमांडू की सड़कों पर हंगामा मच गया है. क्या यह एक नई शुरुआत है या फिर पुरानी बहस का पुनरुद्धार?

राजशाही समर्थकों की बढ़ती संख्या

नेपाल में हाल के महीनों में राजशाही के पक्ष में प्रदर्शन तेज हो गए हैं. मार्च 2025 में काठमांडू में आयोजित एक बड़ी रैली में चार लाख लोगों ने हिस्सा लिया, जिसमें नारे लग रहे थे, टराजा वापस आओ, देश बचाओ!' ये प्रदर्शनकारियों के लिए राजशाही की वापसी की उम्मीदों का संकेत है. यह एक बड़े बदलाव की शुरुआत है जहां लोग फिर से राजा को सत्ता में देखना चाहते हैं, खासकर उस देश में जहां पिछले 17 साल में 13 सरकारें आईं.

पूर्व माओवादी गुरिल्ला दुर्गा प्रसाई का नया नेतृत्व

यहां तक कि पूर्व माओवादी गुरिल्ला दुर्गा प्रसाई अब इस आंदोलन का चेहरा बन गए हैं. 2008 में माओवादी विद्रोह के बाद उन्होंने भी सत्ता का हिस्सा बनने की कोशिश की थी. प्रसाई अब न केवल राजशाही के पक्ष में हैं, बल्कि उन्होंने नेपाल को एक हिंदू राज्य बनाने का भी संकल्प लिया है. उनका मानना है कि राजशाही और हिंदू धर्म नेपाल के लिए स्थिरता और समृद्धि का रास्ता हो सकता है.

राजशाही का विरोध और माओवादी का समर्थन

2008 में माओवादी आंदोलन ने नेपाल की सदियों पुरानी राजशाही को समाप्त कर दिया था. उस समय राजा ज्ञानेंद्र शाह को सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था. लेकिन अब वही माओवादी गुरिल्ला, दुर्गा प्रसाई, राजा की वापसी के लिए आंदोलन चला रहे हैं. प्रसाई के इस कदम ने एक नई राजनीतिक बहस को जन्म दिया है. नेपाल में भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट के कारण लोग राजशाही की वापसी की उम्मीद कर रहे हैं, और यही कारण है कि प्रसाई के आंदोलन में उन्हें जबरदस्त समर्थन मिल रहा है.

प्रसाई की कहानी: माओवादी से राजभक्त बने नेता

दुर्गा प्रसाई का जीवन बहुत ही दिलचस्प है. उन्होंने शुरुआत में नेपाली कांग्रेस के साथ राजनीति की, फिर माओवादी आंदोलन में शामिल हो गए और संघर्ष के दौरान माओवादी विद्रोहियों का समर्थन किया. बाद में उन्होंने केपी ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएन-यूएमएल) से भी संबंध बनाए, लेकिन भ्रष्टाचार और सरकारी विफलताओं के चलते उन्होंने गणराज्य के खिलाफ एक मजबूत आवाज उठाई.

क्या प्रसाई नेपाल की राजनीति को फिर से बदल पाएंगे?

दुर्गा प्रसाई ने पिछले कुछ सालों में कई रैलियों और प्रदर्शन के जरिए राजशाही की भावनाओं को नया जीवन दिया है. उनका कहना है कि नेपाल का लोकतंत्र विफल हो चुका है और अब समय है कि नेपाल को फिर से एक हिंदू राज्य बना दिया जाए. वे राजशाही के पक्ष में आंदोलन चला रहे हैं, और साथ ही ओली सरकार को उखाड़ फेंकने की धमकी भी दे रहे हैं.

फरवरी 2023 में उन्होंने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के साथ मिलकर राजशाही को बहाल करने की कसम खाई. अब वे नेपाल के राजनीति में एक अहम नाम बन चुके हैं. हालांकि, उनके रास्ते में कई मुश्किलें हैं, क्योंकि कट्टर गणतंत्रवादी और पुराने राजतंत्र समर्थक उनके खिलाफ हैं.

आखिरकार क्या होगा नेपाल का भविष्य?

नेपाल के राजनीतिक इतिहास में राजशाही और गणतंत्र के बीच की जंग हमेशा जारी रही है. अब, दुर्गा प्रसाई जैसे नेता एक बार फिर से राजशाही की वापसी की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, उनके आंदोलन को कई राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि नेपाल की राजनीति में एक बार फिर से राजशाही को लेकर बहस तेज हो गई है. प्रसाई ने 2022 में जबसे चुनावी टिकट से वंचित होने के बाद गणराज्य-विरोधी रुख अपनाया, तबसे वे एक नई दिशा में चल रहे हैं. क्या वे नेपाल को एक हिंदू राज्य बना पाएंगे? क्या नेपाल फिर से राजशाही की ओर लौटेगा? इन सवालों के जवाब के लिए हमें और इंतजार करना होगा.

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31 March 2025, 04:14 PM IST

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