इंटरनेशनल न्यूज. दक्षिण कोरिया के गंगवा द्वीप पर हर रात खून जमा देने वाली आवाज़ें गूंज रही हैं, जो उत्तर कोरिया के नए सैन्य अभियान का हिस्सा हैं. यह आवाजें गोलियों की तड़तड़ाहट, चीखें और बमों के धमाके जैसी हैं, जो स्थानीय निवासियों को भय और मानसिक तनाव का शिकार बना रही हैं। 56 वर्षीय किम युन-सुक, जो पहले प्राकृतिक ध्वनियों से घिरी रहती थीं, अब रात में ऐसी भयानक आवाज़ों से जाग जाती हैं, जो जैसे एक हॉरर फिल्म के साउंडट्रैक से निकलकर सीधे उनके कानों में आ रही हो. किम कहते हैं कि प्रकृति की शांति अब कहीं खो गई है, हम बस शोर सुन रहे हैं.
उत्तर कोरिया का बढ़ता दबाव
यह अभियान दोनों कोरियाई देशों के बीच बढ़ते तनाव का नया उदाहरण है. उत्तर कोरिया ने पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली मिसाइलों का परीक्षण किया है और अब दक्षिण कोरिया पर कचरे से भरे गुब्बारों से बमबारी भी की है. जुलाई से उत्तर कोरिया की सीमा पर लाउडस्पीकरों से युद्ध की आवाज़ें लगातार प्रसारित हो रही हैं. गंगवा द्वीप का उत्तरी बिंदु, जो पीले सागर में स्थित है, उत्तर कोरिया से सिर्फ दो किलोमीटर दूर है, और यहां रात के समय युद्ध की आवाज़ें गूंजती रहती हैं.
ध्वनि को लेकर विशेषज्ञों की चिंता
विशेषज्ञों का कहना है कि ये आवाज़ें मानसिक यातना देने का एक तरीका हैं. सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय के इतिहासकार रोरी कॉक्स के अनुसार शोर के माध्यम से यातना देना एक सामान्य सैन्य रणनीति है, क्योंकि यह शारीरिक निशान नहीं छोड़ता, लेकिन मानसिक रूप से व्यक्ति को कमजोर कर देता है. इस शोर का स्तर 80 डेसिबल तक पहुंच जाता है, जो नींद और मानसिक स्थिति पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है.
सिरदर्द और आंखों में दर्द जैसी समस्याएं होने लगीं
37 वर्षीय एन मी-ही ने बताया कि शोर के कारण उन्हें सिरदर्द और आंखों में दर्द जैसी समस्याएं होने लगी हैं, जबकि बच्चों को नींद में तकलीफ हो रही है. इसके परिणामस्वरूप उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा है, और उनकी स्थिति दिनों-दिन बदतर होती जा रही है. एन ने सियोल के सांसदों से समाधान की गुहार लगाई और रोते हुए बताया कि वे इस मानसिक पीड़ा से राहत पाने के लिए किसी भी मदद की उम्मीद करती हैं.
ध्वनियों का उद्देश्य और इसके असर
ध्वनि विशेषज्ञों के अनुसार, ये शोर दक्षिण कोरिया की जनता को परेशान करने के लिए जानबूझकर प्रसारित किए जा रहे हैं. ह्वांग क्वोन-इक, एक ध्वनि इंजीनियर ने कहा कि ये ध्वनियां 70 और 80 के दशक की दक्षिण कोरियाई हॉरर फिल्मों जैसी लगती हैं. ऐसा लगता है कि इनका उद्देश्य सिर्फ प्रचार नहीं, बल्कि दक्षिण कोरिया के नागरिकों को मानसिक रूप से परेशान करना है.
सुरक्षा में कमी
गंगवा द्वीप के निवासियों का कहना है कि दक्षिण कोरियाई सरकार सीमा पर कमजोर नागरिकों की सुरक्षा करने में नाकाम रही है. 60 वर्षीय चोई ह्योंग-चान का मानना है कि सियोल के अधिकारियों को इस शोर को महसूस करने के लिए गंगवा आकर कुछ दिन बिताने चाहिए, ताकि वे इस मानसिक यातना को समझ सकें. First Updated : Wednesday, 27 November 2024