पाकिस्तान की चतुर चाल, दो दुश्मनों को बिठाया एक साथ, जानें खनिज सम्मेलन के बहाने क्या है प्लान?
पाकिस्तान ने खनिज निवेश सम्मेलन के जरिए एक कूटनीतिक दांव चला है, जिसमें उसने अमेरिका और चीन जैसे दो कट्टर प्रतिद्वंद्वियों को एक ही मंच पर लाकर खनिज क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने की कोशिश की है. इस्लामाबाद में आयोजित "पाकिस्तान माइनरल समिट" का उद्देश्य न सिर्फ निवेश आकर्षित करना था, बल्कि बलूचिस्तान की खनिज संपदा को भुनाकर आर्थिक संकट से उबरने की रणनीति भी है.

पाकिस्तान ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर हलचल मचा दी है. खनिज निवेश को बढ़ावा देने के नाम पर पाकिस्तान ने दो कट्टर प्रतिद्वंद्वियों अमेरिका और चीन को एक ही मंच पर ला खड़ा किया है. इस्लामाबाद में आयोजित "पाकिस्तान माइनरल समिट" का मकसद न सिर्फ विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना था, बल्कि अपने राजनीतिक समीकरणों को भी नए सिरे से साधना था.
पाकिस्तान की इस पहल को एक कूटनीतिक चाल के तौर पर देखा जा रहा है, जहां एक तरफ वह अमेरिका-चीन दोनों के साथ रिश्तों में संतुलन बनाना चाहता है, वहीं दूसरी ओर बलूचिस्तान की खनिज संपदा को भुनाने के लिए बड़े निवेशकों की तलाश में है. इस मंच के जरिए पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने खुद को संभावनाओं से भरे एक खनिज हब के रूप में पेश किया है.
पाकिस्तान ने दिया कूटनीतिक संदेश
खनिज सम्मेलन का उद्घाटन पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री इशाक डार ने किया. उन्होंने अपने भाषण में कहा, "पाकिस्तान रणनीतिक रूप से वैश्विक खनन महाशक्ति के रूप में उभरने की स्थिति में है." सम्मेलन में अमेरिका, चीन और सऊदी अरब के प्रतिनिधिमंडल शामिल हुए. इससे यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान दोनों महाशक्तियों के साथ रिश्ते संतुलित रखने की रणनीति पर काम कर रहा है.
बलूचिस्तान की खनिज संपदा पर नजर
पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रांत खनिजों का खजाना माना जाता है. यहां स्थित रेको डिक खदान दुनिया की सबसे बड़ी तांबे और सोने की खदानों में से एक है. लेकिन इस क्षेत्र में लंबे समय से अशांति और अलगाववाद की आग जल रही है. पाकिस्तान सरकार का कहना है कि उसने उग्रवाद पर काफी हद तक काबू पा लिया है, लेकिन प्रतिबंधित बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) अब भी सुरक्षा बलों और चीनी नागरिकों पर हमले कर रही है.
बीएलए का विरोध और चीनी निवेश पर खतरा
BLA चीनी निवेश और प्रोजेक्ट्स का खुलकर विरोध करता रहा है. हाल ही में उन्होंने मांग की कि _"सभी चीनी-वित्त पोषित परियोजनाओं को बंद किया जाए और चीनी नागरिक पाकिस्तान छोड़ दें." ऐसे माहौल में पाकिस्तान द्वारा अमेरिका और चीन दोनों को सम्मेलन में बुलाना इस बात का संकेत है कि वह किसी एक खेमे में नहीं बंधना चाहता.
पाकिस्तान का असली मकसद
पाकिस्तान के इस सम्मेलन के पीछे असली मकसद है बलूचिस्तान की खनिज संपदा का दोहन करना, जिसके लिए उसे न तो पूंजी है और न ही तकनीक. ऐसे में अमेरिका, चीन और सऊदी अरब जैसे देशों को शामिल कर वह निवेश आकर्षित करना चाहता है. इस निवेश से न केवल आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को राहत मिलेगी, बल्कि बलूचिस्तान में विदेशी प्रोजेक्ट्स के जरिए वहां की अशांति पर भी अंकुश लगाने की उम्मीद है.
क्या खनिज सम्मेलन से पाक को मिलेगा नया मोर्चा?
इस सम्मेलन के जरिए पाकिस्तान ने दो अहम बातें दुनिया को बताने की कोशिश की है. पहली, वह अमेरिका और चीन दोनों से दूरी नहीं चाहता है वहीं और दूसरी, वह बलूचिस्तान जैसे अशांत क्षेत्रों को आर्थिक विकास के ज़रिए स्थिर करने की नीति अपना रहा है. अब देखना यह होगा कि क्या दुनिया इस रणनीति पर भरोसा करती है या पाकिस्तान की छवि एक बार फिर सवालों के घेरे में आ जाएगी.


