ग्रीनलैंड पर अमेरिकी हमले की तैयारी, स्पेशल फोर्स और नौसेना का बड़ा रोल

अमेरिका के ग्रीनलैंड में कई गुप्त बेस होने की संभावना है, पिछले दिनों नासा ने ग्रीनलैंड में अमेरिका के एक अंडरग्राउंड बेस होने की पुष्टि की थी. ये बेस ग्रीनलैंड पर कब्जे में अहम भूमिका निभा सकते हैं.

Dimple Yadav
Edited By: Dimple Yadav

डोनाल्ड ट्रंप के 'ग्रेटर अमेरिका' मिशन ने ग्रीनलैंड को लेकर नई हलचल मचा दी है. अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड को अमेरिका में शामिल करने की योजना बनाई है और उन्होंने इसके लिए सैन्य कार्रवाई की धमकी भी दी है. आइए जानते हैं कि ग्रीनलैंड पर अमेरिका का खतरा कितना गंभीर हो सकता है.

इस वक्त ग्रीनलैंड में अमेरिकी सैनिक तैनात हैं. ग्रीनलैंड में अमेरिका का थुले एयर बेस है, जिसे अब पिटुफिक स्पेस फोर्स बेस कहा जाता है. यह अमेरिका का सबसे उत्तरी सैन्य अड्डा है, जो ग्रीनलैंड के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित है. यह बेस अमेरिकी सामरिक रणनीतियों का एक अहम हिस्सा है. थुले बेस पर 600 से ज्यादा अमेरिकी सैनिक तैनात हैं, और यह अमेरिकी वायु सेना और अंतरिक्ष बल के लिए एक रणनीतिक हब है.

थुले बेस की सैन्य और तकनीकी क्षमताएं

  • आधुनिक रडार सिस्टम: यह बेस अमेरिका की मिसाइल डिफेंस प्रणाली का एक अहम हिस्सा है और बैलिस्टिक मिसाइलों का पता लगाने में सक्षम है.
  • सैटेलाइट कम्युनिकेशन: यह बेस अमेरिकी सैन्य और अंतरिक्ष अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण संचार केंद्र है.
  • हथियार और उपकरण: थुले बेस में उन्नत एंटी-मिसाइल सिस्टम, लंबी दूरी के रडार, और अत्याधुनिक सर्विलांस टेक्नोलॉजी है. यहां 600 से ज्यादा सैनिकों के साथ विशेष बलों और लड़ाकू विमानों की तैनाती भी की जा सकती है.
  • ग्रीनलैंड में अमेरिकी सैन्य अड्डे और ठिकाने
  • इसके अलावा, ग्रीनलैंड में अमेरिका के कुछ और गुप्त बेस हो सकते हैं जिनकी जानकारी सार्वजनिक नहीं है. नासा ने हाल ही में ग्रीनलैंड में एक अंडरग्राउंड बेस के होने की पुष्टि की थी. थुले बेस, ग्रीनलैंड के आसपास के अमेरिकी सैन्य ठिकानों से जुड़ा हुआ है, जैसे आइसलैंड का केफ्लाविक बेस, जो ग्रीनलैंड के पास स्थित है.

अमेरिका के अन्य ठिकाने और रणनीतिक मदद

ग्रीनलैंड पर कब्जा सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका के आसपास के क्षेत्रों में कई सैन्य ठिकाने हैं. आइसलैंड का केफ्लाविक एयर बेस, नॉर्वे में अमेरिकी ठिकाने और कनाडा में कई अमेरिकी सैन्य बेस ग्रीनलैंड में सैन्य कार्रवाई के लिए मदद कर सकते हैं. इसके अलावा, अमेरिका और कनाडा के बीच नॉराड (NORAD) समझौता भी ग्रीनलैंड पर अमेरिकी सैन्य अभियान को समर्थन दे सकता है.

ग्रीनलैंड पर अमेरिका का कब्जा कैसे हो सकता है?

अगर अमेरिका ग्रीनलैंड को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लेना चाहे, तो वह निम्नलिखित कदम उठा सकता है:

  • रणनीतिक एयर स्ट्राइक और साइबर हमले: थुले एयर बेस और आसपास के सैन्य ठिकानों से एयर स्ट्राइक की जा सकती है. साइबर हमलों से ग्रीनलैंड और डेनमार्क की रक्षा प्रणालियों को कमजोर किया जा सकता है.
  • स्पेशल फोर्स ऑपरेशन: महत्वपूर्ण स्थानों पर विशेष बलों की तैनाती की जा सकती है और ग्रीनलैंड की संप्रभुता पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है.
  • नौसैनिक घेराबंदी: ग्रीनलैंड के चारों ओर नौसेना तैनात कर, डेनमार्क या नाटो को मदद भेजने से रोका जा सकता है.
  • स्थायी कब्जा: थुले एयरबेस के जरिए ग्रीनलैंड के सामरिक और आर्थिक संसाधनों पर स्थायी नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है.

ग्रीनलैंड की सुरक्षा के लिए अमेरिका-डेनमार्क का समझौता
1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ग्रीनलैंड की सुरक्षा के लिए अमेरिका और डेनमार्क के बीच एक समझौता हुआ था. इसके तहत, अमेरिका को ग्रीनलैंड में सैन्य ठिकाने बनाने और उसकी सुरक्षा का जिम्मा दिया गया था. 1951 में यह समझौता नाटो के साथ मिलकर लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य सोवियत संघ के प्रभाव को आर्कटिक क्षेत्र में रोकना था.

ग्रीनलैंड और डेनमार्क का विरोध

ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री मुते बोएडे ने ट्रंप की योजना को "कभी न पूरा होने वाला सपना" कहा है. ग्रीनलैंड सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि वे अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता से समझौता नहीं करेंगे और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से अपने अधिकारों की रक्षा करेंगे. डेनमार्क ने भी ट्रंप की धमकी का विरोध किया है और कहा है कि वे नाटो के सहयोग से ग्रीनलैंड की रक्षा करेंगे.

नाटो और EU की स्थिति

नाटो और यूरोपीय यूनियन (EU) की स्थिति अमेरिका के खिलाफ कमजोर नजर आती है. नाटो अमेरिका के प्रभाव में है और संभवतः कोई ठोस कदम नहीं उठाएगा. अगर रूस ने ऐसा कदम उठाया होता, तो नाटो तुरंत सैन्य हस्तक्षेप करता. यूरोपीय यूनियन भी केवल कूटनीतिक विरोध कर सकता है, क्योंकि अमेरिका के खिलाफ सैन्य कार्रवाई या सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाना EU के लिए मुश्किल होगा.

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08 January 2025, 03:42 PM IST

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