डोनाल्ड ट्रंप के 'ग्रेटर अमेरिका' मिशन ने ग्रीनलैंड को लेकर नई हलचल मचा दी है. अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड को अमेरिका में शामिल करने की योजना बनाई है और उन्होंने इसके लिए सैन्य कार्रवाई की धमकी भी दी है. आइए जानते हैं कि ग्रीनलैंड पर अमेरिका का खतरा कितना गंभीर हो सकता है.
इस वक्त ग्रीनलैंड में अमेरिकी सैनिक तैनात हैं. ग्रीनलैंड में अमेरिका का थुले एयर बेस है, जिसे अब पिटुफिक स्पेस फोर्स बेस कहा जाता है. यह अमेरिका का सबसे उत्तरी सैन्य अड्डा है, जो ग्रीनलैंड के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित है. यह बेस अमेरिकी सामरिक रणनीतियों का एक अहम हिस्सा है. थुले बेस पर 600 से ज्यादा अमेरिकी सैनिक तैनात हैं, और यह अमेरिकी वायु सेना और अंतरिक्ष बल के लिए एक रणनीतिक हब है.
ग्रीनलैंड पर कब्जा सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका के आसपास के क्षेत्रों में कई सैन्य ठिकाने हैं. आइसलैंड का केफ्लाविक एयर बेस, नॉर्वे में अमेरिकी ठिकाने और कनाडा में कई अमेरिकी सैन्य बेस ग्रीनलैंड में सैन्य कार्रवाई के लिए मदद कर सकते हैं. इसके अलावा, अमेरिका और कनाडा के बीच नॉराड (NORAD) समझौता भी ग्रीनलैंड पर अमेरिकी सैन्य अभियान को समर्थन दे सकता है.
अगर अमेरिका ग्रीनलैंड को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लेना चाहे, तो वह निम्नलिखित कदम उठा सकता है:
ग्रीनलैंड की सुरक्षा के लिए अमेरिका-डेनमार्क का समझौता
1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ग्रीनलैंड की सुरक्षा के लिए अमेरिका और डेनमार्क के बीच एक समझौता हुआ था. इसके तहत, अमेरिका को ग्रीनलैंड में सैन्य ठिकाने बनाने और उसकी सुरक्षा का जिम्मा दिया गया था. 1951 में यह समझौता नाटो के साथ मिलकर लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य सोवियत संघ के प्रभाव को आर्कटिक क्षेत्र में रोकना था.
ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री मुते बोएडे ने ट्रंप की योजना को "कभी न पूरा होने वाला सपना" कहा है. ग्रीनलैंड सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि वे अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता से समझौता नहीं करेंगे और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग से अपने अधिकारों की रक्षा करेंगे. डेनमार्क ने भी ट्रंप की धमकी का विरोध किया है और कहा है कि वे नाटो के सहयोग से ग्रीनलैंड की रक्षा करेंगे.
नाटो और यूरोपीय यूनियन (EU) की स्थिति अमेरिका के खिलाफ कमजोर नजर आती है. नाटो अमेरिका के प्रभाव में है और संभवतः कोई ठोस कदम नहीं उठाएगा. अगर रूस ने ऐसा कदम उठाया होता, तो नाटो तुरंत सैन्य हस्तक्षेप करता. यूरोपीय यूनियन भी केवल कूटनीतिक विरोध कर सकता है, क्योंकि अमेरिका के खिलाफ सैन्य कार्रवाई या सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाना EU के लिए मुश्किल होगा. First Updated : Wednesday, 08 January 2025