इस महिला की बहादुरी ने उसे बना दिया सोवियत संघ की नायिका
लेडी डेथ के नाम से मशहूर ल्यूडमिला पावलिचेंको एक सोवियत स्नाइपर थीं. उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपने अद्भुत साहस और निशानेबाजी से दुश्मनों को चौंका दिया. इतिहास की छात्रा के रूप में अपनी यात्रा शुरू करने वाली ल्यूडमिला ने युद्ध के मैदान में असाधारण प्रदर्शन कर 309 नाजी सैनिकों को मार गिराया. उनकी बहादुरी ने उन्हें सोवियत संघ की नायिका बना दिया. युद्ध के बाद, वे व्हाइट हाउस का दौरा करने वाली पहली सोवियत महिला बनीं, जहां उन्होंने अपनी उपस्थिति से वैश्विक स्तर पर पहचान बनाई.
अब आपको ल्यूडमिला की पूरी कहानी बताते हैं.ल्यूडमिला का जन्म यूक्रेन के बेलाया त्सेरकोव में हुआ था. जब नाजी जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला किया, उस समय ल्यूडमिला कीव विश्वविद्यालय में इतिहास की पढ़ाई कर रही थी. युद्ध की स्थिति को देखते हुए, उन्होंने रेड आर्मी में शामिल होने का फैसला किया. हालांकि, उनकी साफ-सुथरी उपस्थिति और मैनीक्योर किए हुए नाखूनों को देखकर भर्ती अधिकारी ने उन्हें नर्स बनने की सलाह दी.
निशानेबाजी से अधिकारियों को किया प्रभावित
ल्यूडमिला ने अपने निशानेबाजी कौशल को साबित करने के लिए गर्व से प्रमाणपत्र दिखाया, लेकिन अधिकारी फिर भी उन्हें गंभीरता से लेने को तैयार नहीं थे. अंत में उन्होंने रेड आर्मी यूनिट के एक औचक परीक्षण में हिस्सा लिया. उन्हें बंदूक सौंपी गई और उन्होंने दो रोमानियाई सैनिकों को तुरंत मार गिराया. इस प्रदर्शन ने उनकी क्षमता को साबित कर दिया, और उन्हें रेड आर्मी की 25वीं कैपेयेक राइफल डिवीजन में शामिल कर लिया गया.
ओडेसा में दिखाया अद्भुत साहस
युद्ध के शुरुआती 75 दिनों में, पावलिचेंको ने ओडेसा में 187 नाजी सैनिकों को मार गिराया. उनकी घातक निशानेबाजी की खबर रेड आर्मी में तेजी से फैल गई और उन्हें और कठिन मिशनों पर भेजा गया.
सेवस्तोपोल की लड़ाई और काउंटर-स्नाइपिंग
सेवस्तोपोल की लड़ाई के दौरान, ल्यूडमिला को काउंटर-स्नाइपिंग जैसे खतरनाक काम सौंपे गए. उन्हें दुश्मन के स्नाइपर्स का आमने-सामने सामना करना पड़ा. कई बार उनकी मुठभेड़ पूरे दिन और रात तक चली, लेकिन हर बार उन्होंने जीत हासिल की. उनकी ख्याति इतनी बढ़ गई कि जर्मनी ने उन्हें रेडियो लाउडस्पीकर के जरिए रिश्वत देने का प्रयास किया.
जर्मन प्रस्ताव ठुकरा बनी रेड आर्मी की प्रेरणा
जर्मनी ने उन्हें धन और अधिकारी का पद देने की पेशकश की, लेकिन पावलिचेंको ने इसे ठुकरा दिया. उनकी वीरता और समर्पण को देखते हुए, रेड आर्मी ने उन्हें लेफ्टिनेंट के पद पर पदोन्नत किया.
व्हाइट हाउस तक पहुंची 'लेडी डेथ'
1942 में, एक बमबारी के दौरान घायल होने के बाद, पावलिचेंको को अस्पताल में भर्ती कराया गया. उनकी वीरता की कहानियां अमेरिका तक पहुंच गई. अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने उन्हें व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया. वह व्हाइट हाउस जाने वाली पहली सोवियत महिला बनी.
आपको बता दें कि साल 1945 में युद्ध समाप्त होने के बाद, पावलिचेंको सोवियत संघ लौटी और स्नाइपर्स को प्रशिक्षित करने का काम किया. उनकी कहानी आज भी साहस और प्रतिबद्धता का प्रतीक है.