Explainer: अपनी राजनीति को चमकाने के लिए कनाडा को पाकिस्तान बना रहे जस्टिन ट्रूडो 

भारत और कनाडा के संबंध पाकिस्तान जैसे बिगड़ैल पड़ोसी के साथ के समीकरणों के समान हो गए हैं। आज कनाडा, भारत के प्रति जिस भाषा और रुख को अपनाता है, उसे कूटनीतिक स्तर पर उसी तरह देखा जा रहा है जैसे कि भारत पाकिस्तान के साथ व्यवहार करता है। प्रधानमंत्री ट्रूडो द्वारा अपनी राजनीति को चमकाने के लिए उठाए गए कदम दीर्घकाल में उनके और कनाडा के लिए आत्मघाती साबित हो सकते हैं।

Lalit Sharma
Lalit Sharma

Explainer: भारत और कनाडा के बीच रिश्तों में पिछले कुछ समय से बढ़ती तल्खी ने दोनों देशों को एक गंभीर संकट की ओर धकेल दिया है। भारत ने अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाने और कनाडा के छह राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश देकर स्थिति को और भी गंभीर बना दिया। इसके जवाब में कनाडा ने भी भारतीय राजनियकों के खिलाफ ऐसा ही कदम उठाया। इस लेख में हम इन घटनाओं के पीछे के कारणों, राजनीतिक संदर्भ और भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा करेंगे।

हालिया घटनाक्रम

भारत-कनाडा संबंधों में खटास की शुरुआत पिछले साल सितंबर में हुई थी, जब कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने आरोप लगाया कि खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय सरकार का हाथ है। भारत ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि ट्रूडो अपनी धरती पर भारत-विरोधी गतिविधियों को रोकने में असफल रहे हैं। कनाडा में बढ़ती अतिवादी गतिविधियों के बीच भारतीय राजनयिकों को धमकियां मिल रही थीं। ट्रूडो सरकार ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम देकर नजरअंदाज किया। अब, जब भारत ने कड़े कदम उठाए हैं, तो कनाडा के भीतर इस मुद्दे पर चर्चाएं और भी तेज हो गई हैं।

ट्रूडो की नीतियां और उनके प्रभाव

जस्टिन ट्रूडो की नीतियों ने भारत-कनाडा संबंधों को नुकसान पहुंचाया है। घरेलू राजनीति के दबाव में आकर उन्होंने सिख अलगाववादियों के प्रति सहिष्णुता दिखाई है, जिससे दोनों देशों के बीच के संबंध और भी खराब हो गए हैं। ट्रूडो ने भारत के साथ अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में एक नया रुख अपनाया है, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को गहरी चोट लगी है।

नकारात्मक परिवर्तन आया

पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर के शासनकाल में भारत-कनाडा संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया गया था, लेकिन ट्रूडो के आगमन के साथ ही स्थिति बदल गई। उन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने के लिए खालिस्तान समर्थक दलों से समर्थन प्राप्त किया, जिससे भारत के प्रति कनाडाई दृष्टिकोण में नकारात्मक परिवर्तन आया।

सिख अलगाववाद का मामला

कनाडा में सिख अलगाववाद की जड़ें बहुत पुरानी हैं, और यह केवल ट्रूडो के शासन में नहीं शुरू हुआ। हालांकि, ट्रूडो की सरकार ने इस समस्या को बढ़ावा देने का कार्य किया है। सिख अलगाववादियों के प्रति सहिष्णुता और उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के कारण भारत सरकार की चिंताएं बढ़ी हैं। इस स्थिति को देखते हुए, भारत ने बार-बार कनाडा से अनुरोध किया कि वह इन अतिवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाए। लेकिन ट्रूडो सरकार ने इन अनुरोधों को नजरअंदाज किया है।

कनाडाई सरकार का दृष्टिकोण

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर जो आरोप लगाए हैं, उनमें कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। यही कारण है कि पश्चिम के अन्य सहयोगी देश भी इस मुद्दे पर कनाडा का समर्थन करने से कतराते हैं। कनाडा की यह स्थिति भारत के प्रति असंतुलित और पूर्वाग्रही नजर आती है। भारत सरकार ने कनाडाई अधिकारियों को पहले ही चेतावनी दी थी कि कनाडा में संगठित अपराधियों की गतिविधियां बढ़ रही हैं, लेकिन ट्रूडो सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

भविष्य की संभावनाएं

भारत-कनाडा संबंधों में वर्तमान तनाव को देखते हुए यह स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच सुधार की संभावनाएं सीमित हैं। ट्रूडो की सरकार ने जो रुख अपनाया है, उससे ऐसा लगता है कि आने वाले समय में दोनों देशों के संबंधों में और गिरावट आ सकती है।

कनाडा में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की बढ़ती संख्या और उनकी भारतीय संस्कृति के प्रति लगाव भी इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यदि कनाडा की सरकार इस मुद्दे को समय पर नहीं संभालती, तो भविष्य में उसे अपने भीतर ही इससे उत्पन्न समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

अपने ही जाल में बुरी तरह फंसेंगे जस्टिन ट्रूडो

भारत और कनाडा के बीच के संबंधों में जो तनाव बढ़ रहा है, उसका प्रभाव केवल द्विपक्षीय संबंधों पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी पड़ सकता है। ट्रूडो की नीतियों ने कनाडा को एक असुरक्षित स्थिति में ला दिया है, जिससे न केवल भारत को बल्कि कनाडा को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण है कि कनाडा के लोग इस मुद्दे को समझें और ट्रूडो की सरकार के निर्णयों की समीक्षा करें।

संवाद से ही हल होंगी समस्याएं

अंततः, यह आवश्यक है कि दोनों देश अपने ऐतिहासिक संबंधों को पुनर्स्थापित करें और आगे बढ़ने का एक सही रास्ता खोजें। इस तनावपूर्ण स्थिति के बीच, उम्मीद है कि दोनों पक्ष संवाद के माध्यम से अपने मतभेदों को हल कर पाएंगे और एक मजबूत और स्थायी संबंध की ओर बढ़ेंगे।

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26 October 2024, 05:20 PM IST

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