Tulsi Gabbard: Trump की खुफिया सलाहकार बनने से पहले विवादों के बीच क्यों घिरीं?

डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में तुलसी गब्बार्ड को अपने राष्ट्रीय खुफिया निदेशक के रूप में नियुक्त किया है, लेकिन यह कदम विवादों से घिर गया है. गब्बार्ड, जो कभी डेमोक्रेट थीं और अब रिपब्लिकन पार्टी में शामिल हो चुकी हैं, अमेरिका के विदेश नीति में हस्तक्षेप के खिलाफ रही हैं. उनके रूस, सीरिया और ईरान पर उठाए गए रुख ने उन्हें आलोचनाओं का सामना कराया है. क्या गब्बार्ड अपनी नई जिम्मेदारी निभा पाएंगी या उनका रुख अमेरिका के लिए समस्या बनेगा? जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर.

Aprajita
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Tulsi Gabbard: अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में तुलसी गब्बार्ड को अपनी खुफिया टीम का हिस्सा बनाया है. इस नियुक्ति ने दुनिया भर में हलचल मचा दी है. तो आखिर तुलसी गब्बार्ड कौन हैं और उनकी यह नियुक्ति क्यों विवादों में घिरी है? आइए जानते हैं इस खबर को विस्तार से.

तुलसी गब्बार्ड 43 वर्षीय अमेरिकी राजनीतिज्ञ और अमेरिकी कांग्रेस की पहली हिंदू सदस्य थीं. वह हवाई राज्य से कांग्रेस सदस्य के रूप में चार कार्यकाल तक कार्यरत रही हैं और इराक युद्ध की अनुभवी भी हैं. 2022 में, उन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़कर स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपनी राह चुनी थी और अंततः ट्रम्प के समर्थन से रिपब्लिकन पार्टी में शामिल हो गईं. उनकी यह यात्रा राजनीति में एक नई दिशा का संकेत देती है, लेकिन साथ ही कई विवादों के केंद्र में भी रही है.

गब्बार्ड की नियुक्ति और विवाद

डोनाल्ड ट्रम्प ने गब्बार्ड को राष्ट्रीय खुफिया निदेशक (DNI) के रूप में नियुक्त किया है. यह पद अमेरिकी खुफिया समुदाय का प्रमुख होता है और इसके तहत कई एजेंसियां काम करती हैं. हालांकि, गब्बार्ड का खुफिया समुदाय में कोई सीधा अनुभव नहीं है और इससे पहले वह केवल अमेरिका की सेना में सेवा दे चुकी हैं. इसके बावजूद, ट्रम्प ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौंप दी है, जो कुछ लोगों के लिए चौंकाने वाला कदम है.

गब्बार्ड का रुख विशेष रूप से अमेरिकी विदेश नीति और हस्तक्षेप पर आलोचनाओं का शिकार रहा है. उन्होंने रूस, ईरान और सीरिया जैसे देशों से संबंधित मामलों में अमेरिका के हस्तक्षेप को अक्सर आलोचना की है. 2022 में, उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध पर कहा था कि यूक्रेन को तटस्थ देश के रूप में रहना चाहिए. इसके अलावा, उन्होंने सीरिया में अमेरिका के हस्तक्षेप का विरोध किया और ईरान के खिलाफ अमेरिकी सैन्य कार्रवाई को गलत ठहराया था.

उनकी नियुक्ति पर प्रतिक्रिया

गब्बार्ड की नियुक्ति पर कई लोगों ने सवाल उठाए हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं और कुछ रिपब्लिकन नेताओं ने भी उनकी नियुक्ति को असंवेदनशील और विवादास्पद करार दिया है. कई लोगों का कहना है कि गब्बार्ड की नीतियां रूस और सीरिया के पक्ष में ज्यादा झुकी हुई हैं और वह अमेरिकी खुफिया समुदाय के सिद्धांतों के विपरीत जा सकती हैं.

भारत से गब्बार्ड का संबंध

गब्बार्ड के भारत के साथ घनिष्ठ संबंध भी चर्चा का विषय रहे हैं. उन्होंने भारत सरकार के साथ मिलकर काम किया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी कई मुलाकातें हो चुकी हैं. इसके अलावा, गब्बार्ड ने भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कुछ हिंदू समर्थक संगठनों से भी दान प्राप्त किया है, जिसने उनके भारत के प्रति झुकाव को लेकर सवाल खड़े किए हैं.

गब्बार्ड की नियुक्ति का अमेरिका पर प्रभाव

गब्बार्ड की नियुक्ति से अमेरिका की विदेश नीति में कुछ बदलाव देखने को मिल सकते हैं. उनके रूस, सीरिया और ईरान के मामलों में हस्तक्षेप विरोधी रुख को देखते हुए, यह माना जा रहा है कि ट्रम्प प्रशासन की विदेश नीति में कुछ नए मोड़ आ सकते हैं. हालांकि, इस नियुक्ति पर कुछ विश्लेषकों का मानना है कि गब्बार्ड के पास खुफिया मामलों का अनुभव कम होने के कारण उनके द्वारा लिए गए फैसले अप्रत्याशित हो सकते हैं.

गब्बार्ड की नियुक्ति का भविष्य में अमेरिकी खुफिया और विदेश नीति पर गहरा असर पड़ सकता है. हालांकि, यह तो समय ही बताएगा कि उनकी यह नियुक्ति कितनी सफल होती है, लेकिन एक बात साफ है कि गब्बार्ड की विवादास्पद नीतियों के कारण यह नियुक्ति देश और दुनिया के सामने कई नए सवाल खड़े कर रही है.

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14 November 2024, 09:03 PM IST

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