यूक्रेन को कुछ नहीं मिला...खनिज अमेरिका ले जाएगा और जीते हुए इलाके रूस– जानें कैसे जेलेंस्की ने यूक्रेन को संकट में डाल दिया!
यूक्रेन की बर्बादी की कहानी कोई एक दिन में नहीं लिखी गई. नाटो की सदस्यता का सपना, रूस से सीधा टकराव और अमेरिका-यूरोप पर भरोसा... इन सबका नतीजा क्या निकला? न नाटो मिला न दुर्लभ खनिज बचे और ऊपर से रूस ने यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया. अब अमेरिका भी अपना खेल खेल रहा है खनिज और परमाणु प्लांट पर उसकी नजर है. तो क्या ज़ेलेंस्की की जिद ने ही यूक्रेन को इस हालत में ला दिया? जानिए पूरी कहानी...

Ukraine: रूस और यूक्रेन के बीच 2022 से खुली जंग चल रही है, लेकिन इस पूरे विवाद की शुरुआत 2014 में हो चुकी थी, जब रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया और डोनबास क्षेत्र (डोनेट्स्क और लुहान्स्क) में रूस समर्थित अलगाववादियों को समर्थन दिया. 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर बड़ा हमला किया, तो जेलेंस्की ने अमेरिका और नाटो पर भरोसा कर लड़ाई को आगे बढ़ाया. लेकिन अब इस युद्ध में यूक्रेन की हालत सबसे ज्यादा खराब हो गई है.
किसे हुआ फायदा किसे हुआ नुकसान?
अगर इस युद्ध का निष्कर्ष निकाला जाए, तो साफ तौर पर रूस को फायदा हुआ, अमेरिका को हुआ, यूरोप को भी कुछ हद तक फायदा मिलेगा, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान यूक्रेन को हुआ. जेलेंस्की की जिद के चलते यूक्रेन के कई शहर तबाह हो गए, लाखों लोग मारे गए और उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई.
रूस को क्या मिला?
रूस ने 2022 से अब तक यूक्रेन के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया है. हाल ही में 2024 में उसने 4,168 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया है, जिसमें डोनबास, खेरसॉन, ज़ापोरिज्जिया न्यूक्लियर प्लांट, अवदीवका जैसे इलाके शामिल हैं. इससे रूस को सैन्य और रणनीतिक रूप से बड़ी बढ़त मिल गई है.
यूक्रेन क्यों पहुंचा इस स्थिति तक?
इस युद्ध के पीछे सबसे बड़ा कारण था नाटो की सदस्यता. यूक्रेन लगातार नाटो में शामिल होने की कोशिश करता रहा, लेकिन रूस इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता था. जेलेंस्की के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने रूस के खिलाफ सख्त रुख अपनाया और नाटो से हाथ मिलाने की कोशिश की. पुतिन ने कई बार चेतावनी दी, लेकिन जेलेंस्की नहीं माने. इसका नतीजा ये हुआ कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया और यूक्रेन को भारी नुकसान झेलना पड़ा.
अब अमेरिका की नजर दुर्लभ खनिजों पर!
अब जब युद्धविराम की बातें हो रही हैं, तो अमेरिका अपनी रणनीति में लग चुका है. उसने यूक्रेन को अरबों डॉलर की मदद दी, लेकिन अब वह इसकी भरपाई करना चाहता है. यूक्रेन में मौजूद दुर्लभ खनिजों, जैसे लिथियम, कोबाल्ट, टंगस्टन पर उसकी नजर है. ये खनिज इलेक्ट्रॉनिक्स, बैटरियों और सैन्य तकनीक में इस्तेमाल होते हैं. इसके अलावा, अमेरिका यूक्रेन के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को भी अपने हाथ में लेना चाहता है.
युद्धविराम से किसे होगा फायदा?
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस युद्धविराम को लेकर एक्टिव हो गए हैं और जेलेंस्की व पुतिन से बातचीत कर रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि शर्तें क्या होंगी? ऐसा माना जा रहा है कि रूस अपने कब्जे वाले इलाके नहीं छोड़ेगा, अमेरिका यूक्रेन से खनिज ले जाएगा और यूक्रेन को कुछ नहीं मिलेगा. नाटो की सदस्यता का सपना भी अधूरा ही रह गया. अब सवाल ये है कि क्या जेलेंस्की की गलत नीतियों की वजह से यूक्रेन बर्बाद हो गया?
अब यूक्रेन के पास क्या बचा?
इस युद्ध ने यूक्रेन को पूरी तरह से तबाह कर दिया है. न सिर्फ इसके शहर बर्बाद हुए हैं, बल्कि इसका बुनियादी ढांचा भी पूरी तरह नष्ट हो गया है. लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं, अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई है और अब अमेरिका-यूरोप भी यूक्रेन को अकेला छोड़ रहे हैं. ऐसा लगता है कि इस जंग में जीत रूस की हो रही है, अमेरिका अपने फायदे में लगा है और यूक्रेन के हिस्से आई है सिर्फ बर्बादी!