क्या है अमेरिका का Gay Bomb? दुश्मन फौज को हराने की चली थी अजीबोगरीब चाल
1990 में अमेरिकी वायुसेना ने एक ऐसा हथियार बनाने पर विचार किया था, जिसे ‘गे बम’ नाम दिया गया. इस बम का उद्देश्य था दुश्मन की फौज पर ऐसा रसायनिक हमला करना, जिससे वे एक-दूसरे की ओर आकर्षित हो जाएं और युद्ध की बजाय अपनी यौन प्राथमिकताओं में उलझकर लड़ाई से हटा जाएं.

क्या कोई देश अपने दुश्मनों को युद्ध के मैदान में हराने के लिए उनके यौन झुकाव से खेल सकता है? यह एक विचित्र विचार जान पड़ता है, लेकिन 1990 के दशक में अमेरिकी वायुसेना ने वाकई में इस तरह का हथियार बनाने पर विचार किया था. इसे ‘गे बम’ कहा गया था, जो एक असामान्य प्रस्ताव था, जिसमें दुश्मन सैनिकों को एक-दूसरे की ओर आकर्षित करने वाला रसायन छिड़कने की योजना बनाई गई थी, ताकि वे युद्ध लड़ने के लिए मानसिक रूप से सक्षम न रहें.
हालांकि, यह योजना कभी हकीकत में नहीं बदली, लेकिन इसका खुलासा होते ही यह दुनियाभर में सनसनी बन गई. आइए जानते हैं, आखिर यह विवादास्पद सैन्य प्लान क्या था और क्यों इसे इतिहास के सबसे अजीब हथियारों में से एक माना जाता है.
गुप्त अमेरिकी योजना
अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी सेना ने दुश्मन सैनिकों को मानसिक रूप से कमजोर करने के लिए कई योजनाएं बनाई थीं. इनमें से एक सबसे अजीब योजना ‘गे बम’ थी. यह प्रस्तावित हथियार दुश्मन सैनिकों के बीच यौन आकर्षण बढ़ाने का था, ताकि वे युद्ध के लिए मानसिक रूप से सक्षम न रहें.
यह चौंकाने वाला खुलासा 1994 में हुआ, जब अमेरिकी वायुसेना के वैज्ञानिकों ने राइट-पैटरसन एयर फ़ोर्स बेस पर ‘गैर-घातक हथियारों’ की सूची में इस बम का प्रस्ताव रखा. वैज्ञानिकों का दावा था कि इस बम में ऐसे रसायन होंगे जो पुरुष सैनिकों के बीच यौन आकर्षण को बढ़ाएंगे, जिससे उनका मानसिक संतुलन बिगड़ेगा.
गे बम कैसे काम करता था?
‘गे बम’ का विचार था कि इसे दुश्मन सेना के शिविरों में गिराकर वहां सेक्सुअल फीलिंग्स को उकसाया जाएगा, जिससे सैनिक एक-दूसरे की ओर आकर्षित हो जाएं. इससे उनका युद्ध पर ध्यान केंद्रित नहीं रहेगा और उनका लड़ने का जज़्बा खत्म हो जाएगा. इस स्थिति में अमेरिकी सेना को बिना किसी हिंसा के जीत मिल जाएगी.
वॉशिंगटन पोस्ट और बीबीसी आर्काइव्स के अनुसार, अमेरिकी वायुसेना की Wright Lab ने 2004 में इस विषय पर एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसे सनशाइन प्रोजेक्ट नामक एक वैज्ञानिक निगरानी समूह ने उजागर किया. रिपोर्ट में कहा गया था कि इस बम में फेरोमोन्स जैसे रसायन शामिल किए जाएंगे, जो सैनिकों की यौन प्राथमिकताओं को प्रभावित कर सकते हैं. कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह योजना वैज्ञानिक रूप से अव्यवस्थित और पूर्वाग्रहों पर आधारित थी.
क्यों आई यह योजना?
1990 के दशक में अमेरिकी सेना ऐसे हथियारों की खोज में थी जो दुश्मन को मारने की बजाय उन्हें मानसिक रूप से युद्ध के लिए अयोग्य बना दें. इसी समय ‘गे बम’ का विचार आया. यह योजना सामने आते ही मानवाधिकार संगठनों और एलजीबीटीक्यू+ समुदायों ने इसकी आलोचना की, क्योंकि यह वैज्ञानिक रूप से असंभव और भेदभावपूर्ण था. अब तक किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन से यह साबित नहीं हुआ है कि किसी रसायन से लोगों की यौन प्राथमिकताएं बदल सकती हैं. इस तरह से, ‘गे बम’ का विचार पूरी तरह से वास्तविकता से परे था.