4 'अच्छे-बुरे' काम, जिनसे हमेशा जुड़ा रहेगा इब्राहिम रईसी का नाम
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी अब इस दुनिया में नहीं रहे. हेलीकॉप्टर हादसे में उनकी मौत हो गई है. इस मौके पर हम आपको उनकी जिंदगी के कुछ अहम पहलुओं पर नजर डाल रहे हैं. पढ़िए
Ebrahim Raisi: ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलीकॉप्टर हादसे में मौत हो गई है. रविवार को हादसा पेश आया और सोमवार को इब्राहिम रईसी की लाश जंगलों में मिली. सारी दुनिया इस घटना पर अफसोस का इजहार कर रही है. साथ ही इब्राहिम रईसी की जिंदगी पर भी एक नजर डाल रही है. इस खबर में हम आपको इब्राहिम रईसी के उन कामों के बारे में बताएंगे जिनके लिए उन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता है.
खामेनेई के थे उत्तराधिकारी
63 वर्षीय इब्राहिम रईसी एक रूढ़िवादी नेता थे जो 2021 में ईरान के राष्ट्रपति बने. इससे पहले वो चीफ जस्टिस के पद पर भी रह चुके हैं. इसके अलावा तीन दशकों तक देश की कानूनी व्यवस्था से जुड़े रहने के साथ-साथ कई अहम पदों पर जिम्मेदारियां निभाई हैं. इब्राहिम रईसी को ईरान के सर्वोच्च नेता का करीबी माना जाता था जिसकी वजह से उन्हें खामेनेई के उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जाता रहा था.
इब्राहिम रईसी का जन्म 1960 में ईरान के मशहद में हुआ था. शिया परिवार में जन्मे इब्राहिम रायसी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा क़ोम शहर के एक मदरसे से हासिल की. 1979 में, उन्होंने ईरान में क्रांति और ईरान के शाह के खिलाफ प्रदर्शनों में भी अहम किरदार अदा किया था.
2017 में हारे 2021 में जीते
महज 25 साल की उम्र में इब्राहिम रईसी को ईरान की न्यायपालिका में प्रोसिक्यूटर के तौर पर नियुक्त किया गया और उन्होंने तेहरान में डिप्टी प्रोसिक्यूटर के तौर पर भी काम किया. इब्राहिम रईसी ने 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में भी हिस्सा लिया था, लेकिन हसन रूहानी से हार गए थे. वह 38 फीसदी वोट पाने में कामयाब रहे. 2021 में फिर चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की. 2021 में ऐसे समय में उन्होंने राष्ट्रपति का पद संभाला जब ईरान अपने विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिकी पाबंदियों की वजह से गंभीर सामाजिक संकट के साथ-साथ आर्थिक दबाव में था.
'तेहरान का कसाई':
2019 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इब्राहिम रईसी पर पाबंदी लगा दी थी क्योंकि उनकी देख रेख में कई ऐसा मुजरिमों को भी फांसी की सजा दे दी गई थी जिनकी उम्र कम थी. इसी तरह, उस समय ईरान में कैदियों को यातना समेत अन्य कठोर सजाएं बहुत आम थीं. हालाँकि मारे गए लोगों की तादाद की कभी पुष्टि नहीं की गई, एमनेस्टी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कम से कम लोगों की तादाद 5 हजार के आसपास है. इस घटना के बाद उन्हें 'तेहरान का कसाई' भी कहा जाने लगा था. न्यायपालिका के प्रमुख के तौर पर रईसी एक ऐसी सिस्टम को चला रहे थे जिसकी कैदियों और कार्यकर्ताओं के परिवारों ने सख्त आलोचना की है. उनका आरोप था कि वह दोहरी नागरिकों और पश्चिम से संबंध रखने वाले लोगों को टार्गेट करते हैं. साथ ही मनमाने ढंग से कैदियों को सामूहिक फांसी देने का आरोप था.
हिजाब पर विवाद:
रईसी व्यक्तिगत रूप से ईरानी दमन के दो सबसे काले समयों में शामिल थे. इनमें एक बड़ा कदम था हिजाब का मुद्दा अपने चुनाव के एक साल बाद मौलवी ने आदेश दिया कि अधिकारी महिलाओं की पोशाक से जुड़े कानून को सख्त कर दें. हालांकि इसके खिलाफ ना सिर्फ ईरान बल्कि दुनिया के कई देशों में सख्त प्रदर्शन हुए. लेकिन रईसी सरकार झुकने को तैयार नहीं थी. वो अड़ी रही और महिलाओं की गिरफ्तारियां जारी रहीं. सितरंबर 2022 में ईरानी-कुर्द महिला मेहसा अमिनी की हिरासत में मौत से ईरान में विरोध प्रदर्शन की लहर देखी गई. राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों ने 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से ईरान के मौलवी शासकों के लिए सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक थी. इन प्रदर्शनों में सैकड़ों लोग मारे गए, जिनमें दर्जनों सुरक्षाकर्मी भी शामिल थे, जो प्रदर्शनकारियों पर हुई भीषण कार्रवाई का हिस्सा थे. कई महीनों तक चले विरोध प्रदर्शन ने ईरान को एक बड़ा झटका दिया, महिलाओं ने विरोध में अपने हिजाब उतार दिए उन्हें जला दिया और अपने बाल भी तक भी कटवा दिए थे.
इजरायल पर दागे मिसाइल:
7 अक्टूबर को शुरू हुई गाजा जंग ने एक बार फिर इलाके में तनाव बढ़ा दिया और अप्रैल 2024 में ईरान ने सीधे इजरायल पर 300 से ज्यादा मिसाइलें और ड्रोन दागे.हमले में इजरायली डिफेंस सिस्टम और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया. ईरानी मीडिया के मुताबिक यह हमला 1 अप्रैल को दमिश्क में ईरानी दूतावास पर हुए हमले के जवाब में किया गया था. जिसमें ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के नेता समेत 12 लोगों की मौत हो गई थी. जब इज़राइल ने ईरानी हमले के जवाब में ईरानी हवाई अड्डे पर मिसाइल हमला किया तो इब्राहिम रईसी ने कहा कि ईरानी हमले ने "हमारे राष्ट्र के दृढ़ संकल्प को साबित किया." रईसी ने हाल ही में फिलिस्तीनियों के लिए ईरान के समर्थन पर जोर दिया, जो 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से उसकी विदेश नीति का केंद्र बिंदु भी है.
सऊदी अरब से बहाल हुए रिश्ते:
सऊदी अरब और ईरान के बीच चला आ रहा विवाद भी इब्राहिम रईसी के कार्यकाल के दौरान खत्म हुआ. कई वर्षों तक चले इस विवाद के बाद चीन की वजह से दोनों देश एक साथ आए. कहने को तो दोनों ही मुल्क मुस्लिम हैं लेकिन सऊदी अरब सुन्नी और ईरान शिया प्रभुत्व वाला देश है. दोनों की दुश्मनी का खत्म होना क्षेत्र के लिए बहुत खुशी शांति की बात थी.