मरने से पहले शी जिनपिंग की आखिरी तीन इच्छाएं-क्या चीन भारत के रास्ते पर चलेगा?

अपने कार्यकाल दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कई अहम फैसले लिए, लेकिन उनकी तीन इच्छाएं ऐसी हैं जो अभी तक पूरी नहीं हुईं और वह दुनियां भर में चर्चा का विषय बनी हुईं हैं. क्या चीन भारत जैसी लोकतांत्रिक राह अपनाएगा, या फिर अपने पारंपरिक सत्ताबादी ढांचे को ही मजबूत करेगा. उनकी ये इच्छाएं न केवल चीन की आंतरिक राजनीति बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी प्रभावित कर सकती हैं. आइए उनकी इच्छाओं के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं.  

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

इंटरनेशनल न्यूज. चीन में फुटबॉल का खेल एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, लेकिन हाल के वर्षों में यह विभिन्न चुनौतियों और विवादों का सामना कर रहा है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने फुटबॉल को विश्व स्तर पर स्थापित करने का सपना देखा था, लेकिन यह सपना अभी तक पूरा नहीं हो सका. चीन की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम का प्रदर्शन विश्व कप क्वालिफाइंग मैचों में निराशाजनक रहा है। जापान के सैतामा में हुए एक मुकाबले में जापान ने चीन को 7-0 से हराया, जो चीन की सबसे बड़ी हारों में से एक थी। इसके अलावा, चीन को ओमान, उज्बेकिस्तान, हांगकांग और ऑस्ट्रेलिया जैसी टीमों से भी हार का सामना करना पड़ा है.

फुटबॉल में सुधार के प्रयास और अधूरी इच्छाएं

2012 में सत्ता में आने के बाद, शी जिनपिंग ने चीन को फुटबॉल में एक महाशक्ति बनाने का लक्ष्य रखा। उन्होंने तीन मुख्य इच्छाएं व्यक्त कीं: चीन विश्व कप के लिए क्वालिफाई करे, विश्व कप की मेजबानी करे, और अंततः विश्व कप जीते। हालांकि, एक दशक बाद भी ये इच्छाएं पूरी नहीं हो सकी हैं.

कम्युनिस्ट पार्टी का नियंत्रण और फुटबॉल का विकास

चीन में फुटबॉल का विकास कम्युनिस्ट पार्टी के नियंत्रण के तहत हुआ है। 2015 की एक सरकारी रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि चीनी फुटबॉल एसोसिएशन (CFA) को कानूनी स्वायत्तता दी जानी चाहिए और इसे खेल के सामान्य प्रशासन (GAS) से स्वतंत्र होना चाहिए। शी जिनपिंग ने भी माना कि यदि चीन को फुटबॉल में सफल होना है, तो पार्टी को लीक से हटकर कदम उठाने होंगे.

फुटबॉल खेलने वालों की संख्या में कमी

चीन की विशाल आबादी के बावजूद, फुटबॉल खेलने वाले पंजीकृत खिलाड़ियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इंग्लैंड में लगभग 13 लाख पंजीकृत खिलाड़ी हैं, जबकि चीन में यह संख्या 100,000 से भी कम है। यूरोप और दक्षिण अमेरिका में फुटबॉल की जड़ें गहरी हैं, जहां खेल सड़कों और पार्कों से उभरता है, जबकि चीन में यह मुख्यतः बड़े शहरों तक सीमित रहा है.

फुटबॉल में निवेश की चुनौतियां

महामारी और आर्थिक मंदी के कारण चीन में फुटबॉल क्लबों को वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। सरकारी समर्थन वाली कंपनियों ने अपने निवेश वापस ले लिए, जिससे 40 से अधिक पेशेवर क्लब बंद हो गए। निजी कंपनियों ने भी फुटबॉल में निवेश कम कर दिया, जिससे कई प्रमुख टीमों का पतन हुआ.

भ्रष्टाचार और फुटबॉल का पतन

चीन में फुटबॉल भ्रष्टाचार के मामलों से भी ग्रस्त रहा है। 2024 में, चीनी फुटबॉल एसोसिएशन ने मैच फिक्सिंग और जुआ खेलने के आरोप में 38 खिलाड़ियों और 5 क्लब अधिकारियों पर आजीवन प्रतिबंध लगाया। इनमें पूर्व चीनी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी जिन जिंगडाओ और गुओ तियानयू शामिल थे। इसके अलावा, 44 व्यक्तियों को रिश्वतखोरी और जुआ से संबंधित अपराधों के लिए आपराधिक दंड का सामना करना पड़ा। ​

भारत में फुटबॉाल की स्थिति 

भारत की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम बी विश्व कप में अब तक हिस्सा नहीं ले पाई. 1950 में भारत ने क्वालीफाई किया था, लेकिन कुछ कारणों से चीम ब्राजील नहीं जा सकी. इसके बाद से भारत को टूर्नामेंट में कई प्रविष्टि नहीं मिली. क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता, भ्रष्टाचार और लापरवाही जैसे कारणों के से फुटबॉल को अपेक्षित समर्थन नहीं मिल पाया. चीन और भारत दोनों के लिए फुटबॉल में सुधार और विकास की जरूरत है, ताकि वे इंटरनेशनल स्तर पर अपनी उपस्तिथि मजबूत कर सकें. 

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27 March 2025, 03:14 PM IST

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