ग़ैरक़ानूनी थी ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की फाँसी की सज़ा, 45 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया दूसरा फैसला
Zulfikar Ali Bhutto: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की फाँसी पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फ़ैसला सुनाते हुए ग़ैरक़ानूनी करार दिया है. पढ़िए पूरी रिपोर्ट
Zulfikar Ali Bhutto: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो (Zulfikar Ali Bhutto) को फांसी दिए जाने के मामले की एक बार फिर सुनवाई. मामले पर 9 जजों की बेंच ने इत्तेफाक राये से फैसला देते हुए कहा कि जुल्फिकार अली भुट्टो को फेयर ट्राइयल का मौका नहीं दिया गया था. चीफ़ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बैंच ने कहा कि इतिहास में कुछ ऐसे मामले हैं जिनसे यह आभास हुआ है कि न्यायपालिका ने डरकर अपना फैसला सुनाया है, अतीत की गलतियों को स्वीकार किए बिना कोई भी सही दिशा में आगे नहीं बढ़ सकता है.
अदालत ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि जुल्फिकार अली भुट्टो का मुकदमा पारदर्शी नहीं था, उनकी सजा संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों के अनुरूप नहीं थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जुल्फिकार अली भुट्टो की सजा के फैसले को बदलने के लिए कोई कानूनी तंत्र नहीं है, संविधान और कानून में भुट्टो मामले में फैसले को रद्द करने के लिए ऐसी कोई व्यवस्था प्रदान नहीं की गई है. लेकिन हमारी राय यह कि भुट्टो को निष्पक्ष सुनवाई का हक़ नहीं मिला.
यह फैसला आसिफ अली जरदारी द्वारा 2011 में उनके राष्ट्रपति रहने के दौरान दायर राष्ट्रपति रेफ्रेंस के जवाब में दिया गया था. रेफ्रेंस में पीपीपी संस्थापक ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की मौत की सजा पर फिर से विचार करने के लिए कहा गया था. इस केस की सुनवाई लाहौर हाई कोर्ट में सैन्य तानाशाह जिला-उल-हक के शासनकाल में हुई थी. यही कारण है कि वर्तमान अदालत ने उस वक़्त की अदालत पर डरकर फ़ैसला सुनाने जैसी बात कही है.
क्या है पूरा मामला:
पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अप्रैल 2011 में जुल्फिकार अली भुट्टो की मौत की सजा के खिलाफ एक रेफ्रेंस दाखिल किया था. जिस पर पहली सुनवाई 2 जनवरी 2012 को उस समय के चीफ़ जस्टिस इफ्तिखार चौधरी की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट में हुई थी. यह सुनवाई 11 जजों की लार्जर बेंच ने की थी. हालाँकि, मामला हाल ही में फिर से सुनवाई के लिए निर्धारित किया गया था और 12 दिसंबर को मौजूदा चीफ़ जस्टिस काजी फायज ईसा की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने मामले की फिर से सुनवाई शुरू की. दाखिल की गई रेफ्रेंस 5 सवालों पर आधारित थी.
➤ पहला सवाल यह है कि क्या जुल्फिकार भुट्टो की हत्या का मुकदमा संविधान के मुताबिक बुनियादी मानवाधिकारों के अनुरूप था?
➤ दूसरा सवाल यह है था कि क्या जुल्फिकार भुट्टो को मौत की सजा देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला अदालत की मिसाल के तौर पर सुप्रीम कोर्ट समेत सभी हाई कोर्ट्स में पर लागू होगा?
➤ तीसरा सवाल यह है कि क्या ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को मौत की सज़ा देना सही फैसला था? क्या जुल्फिकार अली भुट्टो को मौत की सजा देने का फैसला पक्षपातपूर्ण नहीं था?
➤ चौथे सवाल में पूछा गया है कि क्या जुल्फिकार अली भुट्टो को दी गई मौत की सजा कुरान के आदेशों की रोशनी में सही है.
➤ पांचवां सवाल यह है कि क्या जुल्फिकार अली भुट्टो के खिलाफ दिए गए सबूत और गवाहों के बयान उन्हें दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त थे?
कौन थे ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो:
ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री रहे हैं .वो 1973 से लेकर 1977 तक पीएम के पद रहे हैं. इससे पहले भुट्टो को जनरल अय्यूब खान के शासनकाल में विदेश मंत्री के पद थे लेकिन अय्यूब खान और भुट्टो के बीच मतभेद हुए और भुट्टो ने अपनी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी बनाकर खड़ी कर दी. 1977 के आम चुनावों में धांधली के कारण देश में गृह युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए थे. 5 जुलाई 1977 को जनरल मुहम्मद जिया-उल-हक ने मार्शल लॉ लागू कर दिया. इसी साल सितंबर के महीने में भुट्टो को नवाब मुहम्मद अहमद खान की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. 18 मार्च 1978 को हाई कोर्ट ने उन्हें मौत की सजा सुनाई. 6 फरवरी 1979 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया. 4 अप्रैल को उन्हें रावलपिंडी जेल में फांसी दे दी गई. सिंध में, 4 अप्रैल को सार्वजनिक अवकाश भी रहता है.