Explainer: दुनिया की तबाही का कारण बन रहे फोन? हर साल खतरा हो रहा डबल, जानिए कैसे पहुंचा रहे नुकसान

Explainer: दुनियाभर में 1600 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिनमें से लगभग एक तिहाई यानी 530 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोन हर साल कूड़े में फेंक दिए जाते हैं.

Shabnaz Khanam
Shabnaz Khanam

Explainer: दुनिया जितनी आगे बढ़ रही है उसमें उतने ही विकास होते जा रहे हैं, जो एक तरह से लोगों की जिंदगी को आसान भी बना रही है. लेकिन दूसरी तरफ ये आसानी जीवन के लिए कई मुश्किलें भी पैदा कर रही हैं. आम भाषा में कहा जा सकता है कि जीवन को आसान बनाने के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद गंभीर समस्याएं भी पैदा कर रहे हैं. भारत जैसे देशों में इन उत्पादों के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण की सुविधाओं की कमी और हर महीने बाजार में आने वाले उत्पादों की नई श्रृंखला के कारण इलेक्ट्रॉनिक कचरा भी तेजी से बढ़ रहा है. इस इलेक्ट्रॉनिक कबाड़ को ई-कचरा भी कहा जाता है. अभी तक यह पश्चिमी देशों की समस्या थी, लेकिन अब यह भारत के लिए भी गंभीर खतरा बनती जा रही है. 

मोबाइल फोन का इस्तेमाल

दुनिया इतनी तेजी से आगे बढ़ रही है कि इंसान चांद तक पहुंच गया है. इस कामयाबी में टेक्नोलॉजी का सबसे ज्यादा योगदान रहा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, दुनियाभर में लगभग 1600 करोड़ से ज्यादा लोग फोन का इस्तेमाल करते हैं. इसमें से हर साल लोग 530 करोड़ से ज्यादा मोबाईल फोन को फेंद देते हैं. अंतरराष्ट्रीय अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण फोरम ने एक रिपोर्ट में कहा था कि इन फेंके गए फोन को एक के ऊपर एक रख दिया जाए तो ये 50 किलोमीटर पहुंच जाएगी, जो कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से भी 120 गुना ऊंचा होगा. रिपोर्ट में बताया गया कि हर साल एक इंसान लगभग 8 किलो ई-वेस्ट का कारण बन रहा है, जो सालभर में 61.3 लाख टन तक पहुंच जाएगा. 

भारत में हर साल कितना ई-वेस्ट?

दुनिया भर में ई-वेस्ट को लेकर बहुत चौकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं, इसी के साथ अकेले भारत में ई-वेस्ट को देखें तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने दिसंबर 2020 में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें बताया गया कि 2019-20 में देश में लगभग 10.1 लाख टन इलेक्टॉनिक कचरा निकला गया. 2017-18 में ये आंकड़ा 25,325 टन था. दूसरी तरफ एक रिपोर्ट ये भी आई कि यहां पर रिसाईकल तो बाद में किया जाएगा, इसके पहले देश में बड़ी मात्रा में ई-कचरा इकट्ठा किया जाना चाहिए जो कि नहीं किया जा रहा है. 

ई-वेस्ट
ई-वेस्ट

रिसाइकल को लेकर भारत की स्थिति

दुनिया भर में रिसाइकल को लेकर अलग अलग दरें होती हैं, लेकिन आंकड़ों की बात करें तो अंतरार्ष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ 17% ई-वेस्ट ही इकठ्ठा होता है जिसको रिसाइकिल किया जाता है. वहीं, भारत की बात करें तो यहां पर ई-कचरा को लेकर लोगों में जागरुकता की कमी है. केवल 2019 में इलेक्ट्रानिक कचरे को रिसाइकल नहीं करने की वजह से 4.3 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ, ये नुकसान की रकम कई देशों की जीडीपी से भी कहीं ज्यादा है. 

ई-कचरा मिट्टी पर नकारात्मक प्रभाव डालता है

सबसे पहले, ई-कचरा किसी क्षेत्र की मिट्टी पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है. जैसे ही ई-कचरा टूटता है, यह जहरीली भारी धातुएँ छोड़ता है. ऐसी भारी धातुओं में सीसा, आर्सेनिक और कैडमियम शामिल हैं. जब ये विषाक्त पदार्थ मिट्टी में चले जाते हैं, तो वे इस मिट्टी से उगने वाले पौधों और पेड़ों को प्रभावित करते हैं. इस तरह से ये विषाक्त पदार्थ मानव के खाने की चीजों में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे बच्चों की पैदाईश पर भी बुरा असर पड़ सकता है.ई-वेस्ट का दुनिया पर प्रभाव

ई-कचरे का पानी पर प्रभाव 

ई-कचरा जिसका निवासियों या व्यवसायों द्वारा अनुचित तरीके से निपटान किया जाता है, भूजल में विषाक्त पदार्थों के प्रवेश का कारण बनता है. यह भूजल ही कई सतही जलधाराओं, तालाबों और झीलों का आधार है. कई जानवर पीने के लिए इस पानी का इस्तेमाल करते हैं इस तरह से ये जानवरों को बीमार बना सकते हैं, और ग्रहीय पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा कर सकते हैं. ई-कचरा उन मनुष्यों को भी प्रभावित कर सकता है जो इस पानी पर निर्भर हैं. सीसा, बेरियम, पारा और लिथियम जैसे विषाक्त पदार्थों को भी कैंसरकारी माना जाता है. 

हवा पर नकारात्मक प्रभाव  

जब ई-कचरे का निपटान लैंडफिल में किया जाता है, तो इसे आमतौर पर साइट पर भस्मक द्वारा जला दिया जाता है. यह प्रक्रिया वायुमंडल में हाइड्रोकार्बन छोड़ सकती है, जो उस हवा को प्रदूषित करती है जिस पर कई जानवर और मनुष्य निर्भर हैं. इसके अलावा, ये हाइड्रोकार्बन ग्रीनहाउस गैस प्रभाव में योगदान दे सकते हैं. दुनिया के कुछ हिस्सों में, हताश लोग पैसे के लिए ई-कचरे को बचाने के लिए लैंडफिल को छानते हैं. फिर भी, इनमें से कुछ लोग तांबा निकालने के लिए तारों जैसे अवांछित हिस्सों को जला देते हैं, जिससे वायु प्रदूषण भी हो सकता है. 

दूषित हवा
दूषित हवा

आने वाले समय में क्या होगी हालत?

भले ही ई-कचरे से होने वाले नुकसान अभी सबके सामने नहीं आ रहे हैं लेकिन वो दिन दूर नहीं जब इसका असर इंसानी जीवन पर आमतौर पर पड़ता दिखाई देने लगेगा. यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी की ओर से जारी ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 रिपोर्ट में कहा गया है कि 'साल 2030 तक इस वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक कचरे में तकरीबन 38 फीसद तक वृद्धि हो जाएगी. अब आप औप हम सिर्फ अंदाजा ही लगा सकते हैं कि भविष्य में यह कितना ज्यादा खतरनाक रूप ले सकता है.

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13 December 2023, 09:37 AM IST

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